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________________ धर्मस्थल / 189 हेग्गडेजी को 'अभिनव चामुण्डराय' की पदवी से विभूषित किया गया था। प्रसिद्ध शिल्पी श्री गोपालकृष्ण शिनॉय ने कारकल में इसका निर्माण किया था। प्रतिमा कारकल से विशेष रूप से निर्मित ट्रॉली पर लाई गई थी। इसमें लगभग तीन सप्ताह का समय लगा था। उसका वज़न 200 टन के लगभग है । उसे 250 अश्वशक्ति के तीन बुलडोज़र का उपयोग कर लाया गया था। ट्रॉली में 64 पहिए थे। रास्ते में सभी धर्मों, वर्गों के लोगों ने मूर्ति का भव्य स्वागत किया था, तोरणद्वार बनाए थे। लोगों ने जुलूस में शामिल भक्तों को शीतल पेय पदार्थ बाँटे, सड़कें चौड़ी करने में और अस्थायी पुल बनाने में निःशुल्क सहयोग प्रदान किया था। रेलवे विभाग ने भी पुलों के निर्माण में हाथ बँटाया था। बम्बई की हिन्दुस्तान कन्सट्रक्शन कम्पनी ने यह मूर्ति हजारों लोगों के सहयोग से 25 फरवरी 1975 को खड़ी कर दी थी। ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह नवीन विशालकाय मति 39 फीट ऊँची है। कन्धों पर उसकी चौड़ाई 14 फीट है । एक बड़ा चौकोर चबूतरा, उसके भी ऊपर एक चबूतरा है । उसी के लगभग 60 वर्ग फुट ऊपरी भाग पर यह प्रतिमा कमलासन पर कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थापित है। बाहुबली स्वामी के दोनों चरणों के आसपास एक-एक हाथी सूंड से भगवान का पाद-प्रक्षालन करते हुए दिखाए गए हैं। दाहिनी ओर के हाथी के पास एक गाय और एक शेर को साथ-साथ पानी पीते दिखाया गया है । बाईं तरफ के हाथी के पास एक गाय और एक शेरनी अंकित है। शेरनी का शिशु गाय का दूध पी रहा है तो गाय का बछड़ा शेरनी का। धर्म की प्रभावना से सह-अस्तित्व का यहाँ मनोहारी अंकन है । इस मूर्ति का स्वरूपांकन आचार्य जिनसेन (द्वितीय) द्वारा आदिपुराण में वर्णित बाहुबली-चरित्र (पर्व 36) के अनुसार किया गया जान पड़ता है। प्रस्तुत हैं एक-दो श्लोक विरोधिनोऽयमी मुक्तविरोध स्वरमासिताः। तस्योपान्रीसिंहाद्याः शशंसुर्वर्भवं मुनेः ।।165।। (उनके चरणों के समीप हाथी, सिंह आदि विरोधी जीव भी परस्पर का वैर-भाव छोड़कर इच्छानुसार बैठते थे और इस प्रकार वे मुनिराज के ऐश्वर्य को सूचित करते थे।) जरज्जम्बूकमाघ्राय मस्तके व्याघ्रधेनुका। स्वशावनिविशेषं तामपीप्यत् स्तन्यमात्मनः ॥ 166॥ - (हाल की जन्मी हुई सिंही भैंस के बच्चे का मस्तक सूंघकर उसे अपने बच्चे के समान अपना दूध पिला रही थी।) करिण्यो विसिनोपत्रपुटैः पानीयमानयत् । .. तद्योगपीठपर्यन्तभुवः सम्मार्जनेच्छया ॥169॥ (उन मुनिराज के ध्यान करने के आसन के समीप की भूमि को साफ करने की इच्छा से हथिनियाँ कमलिनी के पत्तों का दोना बनाकर उनमें भर-भरकर पानी ला रही थीं।) हाथियों के ही पास दोनों ओर बाहुबली की एक-एक बहिन ब्राह्मी और सुन्दरी उत्कीर्ण हैं । वे बाहुबली के तन पर लिपटी बेलें हटाती हुई दिखाई गई हैं । बाहुबली के दोनों पैरों के बीच में से निकलती बेलें उनकी जाँघों पर लिपटती अंकित हैं जो वास्तविक लगती हैं। उनकी पत्तियों का बहुत सूक्ष्म एवं सुन्दर अंकन है । लताएँ घुटनों से ऊपर जाँघों पर केवल एक ही
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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