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________________ 188 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) लिए तुलाभार है। वे देवस्वरूप माने जाते हैं । धर्मस्थल जो भी कुछ है इस परिवार की अपनी परम्परागत सम्पत्ति या संस्था है जिसकी सुस्थापित परम्पराएँ बन गई हैं । यहाँ के सर्वधर्म सम्मेलन भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । श्री वीरेन्द्र हेग्गडेजी के समय में ही यहाँ भगवान बाहुबली की 39 फीट ऊँची मूर्ति स्थापित हुई है। जैन स्मारक और अब धर्मस्थल के जैन स्मारकों की यात्रा । चलिए महाद्वार (गेटवे) के पास की छोटी पहाड़ी की ओर । इस द्वार के पास की दस-पन्द्रह सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद नवनिर्मित प्रवेशमण्डप है जिस पर कटनीदार बुर्ज बने हुए हैं। इस मण्डप के सिरदल पर एक उपाध्याय का अंकन है। उनका हाथ उपदेश मुद्रा में उठा हुआ है। इसी मण्डप से सटा हुआ एक छोटा-सा हरा-भरा बगीचा है। उसमें एक शेर और एक गाय आमने-सामने खड़े होकर पानी पीते हुए दिखाए गए हैं । वास्तविक जलकुण्ड में उनका मुँह है। वहीं नागरी में एक बोर्ड है 'पादरक्षा पहनकर मत जाइए'। ___ अब आगे 276 सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। आने-जाने के लिए ये लोहे की छड़ों से विभाजित कर दी गई हैं। बीच-बीच में कन्नड़ में सूचनाएँ हैं। सीढ़ियों के पास से कार आदि ऊपर जाने के लिए एक सड़क भी है। जहाँ ये सीढ़ियाँ समाप्त होती हैं वहाँ सीमेंट कंक्रीट (आर. सी. सी.) का एक विशाल प्रवेश-मण्डप या कटनीदार गोपुर है। इसी मण्डप में स्वर्गीय श्री रत्नवर्मा हेग्गडे, जिन्होंने मूर्ति का निर्माण करवाया था, की खड़ी हुई प्रतिमा और मूति सम्बन्धी कुछ विवरण है। वे सिर पर सफेद मैसूरी पगड़ी, लम्बा काला कोट, और धोती पहने हुए नंगे पाँव हैं। यहीं से दिखाई देती है भगवान बाहुबली की नवीन भव्य प्रतिमा। बाहुबली स्थल का अहाता ऊँची पहाड़ी पर बहुत विशाल है जहाँ आसपास का हरियाली भरा दृश्य, शीतल पवन और शान्त वातावरण हजारों दर्शकों को आनन्दित करता है। बाहुबली की मूर्ति के सामने चौकी से लगभग 30 फीट ऊँचा मानस्तम्भ हैं। उसके चारों ओर यक्षिणियों का अंकन है। एक दिशा में देवी के चार हाथों में गदा, फल आदि हैं। एक हाथ वरद मुद्रा में है। देवी पर पाँच फणों की छाया है। मुकुट में तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं । वाहन कुक्कुट है । एक अन्य दिशा में अष्टभुजादेवी उत्कीर्ण है। तीसरी दिशा में षड्भुजा देवी उत्कीर्ण है। चौथी दिशा की देवी की दो भुजाएँ हैं । एक से वह शिशु का हाथ पकड़े है तो दूसरे से शिशु को गोदी में संभाले हुए है । नीचे सिंह और मुकुट पर तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। ये सब तीर्थंकरों की यक्षिणियाँ या शासन-देवियाँ हैं । मानस्तम्भ पर मालाओं एवं पत्रावली का भी सुन्दर अंकन है। उस पर सबसे ऊपर ब्रह्मदेव हैं । उनके हाथ में गदा है। मुकुट ऊँचा है और वे गले में अनेक मालाएँ धारण किए हुए हैं। 39 फीट ऊंची बाहुबली मूर्ति को प्रतिष्ठा यहाँ स्थापित बाहुबली की मूर्ति (चित्र क्र. 82) की प्रतिष्ठा फरवरी 1982 में हुई थी। प्रतिष्ठापक थे श्री वीरेन्द्र हेगड़े, वर्तमान धर्माधिकारी। इसकी प्रतिष्ठा के अवसर पर
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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