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________________ वेणूर | 175 पार्श्वनाथ की कांस्य प्रतिमा है। यहाँ का शिलालेख घिस गया है। इसलिए इसकी प्राचीनता सम्बन्धी जानकारी प्राप्त नहीं होती। जो भी हो, मूडबिद्री के भट्टारक जी ने इसका जीर्णोद्धार कराया है। दैनिक पूजा के लिए सरकार से भी शायद नाममात्र की सहायता मिलती है। - उपर्युक्त मन्दिर के प्रवेशद्वार के दाहिनी ओर लगभग सौ फुट की दूरी पर अहाता है जहाँ बाहुबली की 35 फुट ऊँची विशाल प्रतिमा है (देखें चित्र क्र. 77) । मूर्ति का ऊपरी पृष्ठ भाग दूर से दिखाई देता है। ___ बाहुबली मूर्ति के अहाते के बाहर, हमें एक विशाल स्तम्भ मिलता है। उस पर मूर्ति के सामने मुख किए हुए या दक्षिण दिशा की ओर मुंह किए ब्रह्म यक्ष की मूर्ति है। यक्ष के एक हाथ में नारियल और दूसरे में दण्ड है । मुकुट ऊँचा है। नीचे ब्रह्मदेव घोड़े पर सवार हैं । अन्य कोई उत्कीर्णन या शिलालेख नहीं है। श्रवणबेलगोल या कारकल की विशाल बाहुबली मूर्तियाँ पहाड़ियों पर प्रतिष्ठापित हैं। किन्तु वेणूर की मूर्ति एक समतल टीले पर स्थित है जो कि गुरपुर नदी (बीस गज चौड़ी और पत्थरों के बीच कलकल कर बहती) के दक्षिण किनारे पर है। नदी के तल से यह टीला लगभग 50 फुट ऊँचा है। सड़क से बाहुबली अहाता दस-बाहर फुट ऊँचा है। उससे ऊपर का अहाता लगभग सात फुट ऊँचा है। इतनी ऊँचाई के कारण यह मूर्ति मीलों दूर से दिखाई देती है। यह अहाता मूर्ति को भव्यता प्रदान करता है। बाहुबली प्रांगण का द्वार बारह-तेरह फुट ऊँचा है। उस पर नीचे पूर्णकुम्भ और सिरदल पर पद्मासन तीर्थकर अंकित हैं। द्वार पर '2500वाँ श्री महावीर निर्वाणोत्सव' अब भी लिखा है । मूर्ति के दर्शन का समय नियत है जिसका यात्रियों को ध्यान रखना चाहिए। समय इस प्रकार है-सुबह 7 से 9 बजे तक और शाम 6 से 7 तक। यात्री यहाँ के जैनबन्धुओं अथवा स्थानीय कार्यालय से अन्य किसी समय के लिए आवश्यकतानुसार अनुरोध कर सकते हैं। ... जैसे ही हम प्राकार के भीतर प्रवेश करते हैं, वैसे ही अपने बायीं ओर 'बिन्नाणि' मन्दिर और दायीं ओर 'अक्कंगल' नामक दो छोटे मन्दिर देखते हैं । विन्नाणि में शान्तिनाथ स्वामी की और दायीं ओर चन्द्रप्रभ स्वामी की मूर्ति है। अक्कंगल का अर्थ 'बहिनें होता है। इनके निकट के शिलालेख में उल्लेख है कि इन मन्दिरों को राजा तिम्मराज अजिल की दो रानियों पाण्डयक्कदेवी और मल्लिदेवी ने 1604 ई. में बनवाया था। बाहुबली मूर्ति के सामने प्रांगण में एक ध्वजस्तम्भ है जिस पर ताँबा चढ़ा है। इस स्तम्भ पर वाषिक रथयात्रा के समय ध्वज फहराया जाता है। उससे आगे पाषाण-निमित एक मण्डप है जिस पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं। सीढ़ियों के अँगले पर दोनों ओर लगभग पाँच फुट ऊँचे दो सुन्दर हाथी बने हैं। सामने दो चबूतरे हैं । उनमें से एक दूसरे से कुछ नीचा है। ऊपर के चबूतरे पर नीचे एक बड़ा और एक छोटा कमल बना है। इन कमलद्वय के आसन पर प्रतिष्ठित है बाहुबली की 35 फुट ऊँची विशाल मूर्ति । मूर्ति के दोनों ओर सात खण्डों (पंक्तियों) के लगभग सात-आठ फुट ऊँचे दीपदान हैं जिनमें दीप द्वारा प्रकाशन की व्यवस्था
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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