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________________ 168 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) बडग बसदि-बडग का अर्थ है उत्तर (दिशा)। चूंकि यह मन्दिर उत्तर दिशा में स्थित है इसलिए इसे 'बडग बसदि' कहा जाता है । बताया जाता है कि यह मन्दिर भी अत्यन्त प्राचीन है। इसके मूलनायक हैं चन्द्रनाथ । प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है तथा अमृतशिला से निर्मित है। इसे छोटा चन्द्रनाथ मन्दिर भी कहते हैं। इसके सामने लगभग 40 फुट ऊँचा मानस्तम्भ है। ___ शेट्टर बसदि (शेट्टी का मन्दिर)-यह एक प्राचीन मन्दिर है और इसका निर्माण मूडबिद्री के ही बंगोत्तम शेट्टी नामक श्रावक ने कराया था। उपर्युक्त बसदि सामने से एक साधारण भवन दिखाई पड़ती है। उसकी छत ढलुआ है और उसे ढंकने वाली शिलाएँ ऐसी लगती हैं जैसे लकड़ी के तख्ते एक के ऊपर एक ऊँचे करके जमाए गए हों। मन्दिर पाषाण-निर्मित है। इसके मूलनायक वर्धमान (महावीर) हैं जिनकी काले पाषाण की लगभग तीन फुट ऊँची कायोत्सर्ग मूर्ति यहाँ स्थापित है। इस मन्दिर के निर्माण के सम्बन्ध में यहाँ के एक शिलालेख में एक अनुश्रुति दी गई है। किन्तु मन्दिर के निर्माण के संवत् के सम्बन्ध में शिलालेख मौन है। इसका निर्माता बंगोत्तम शेट्टी किसी समय व्यापार के लिए देशान्तर गया और वहाँ एक जौहरी के साथ व्यापार करने लगा। उस देश के व्यापारी ने जब शेट्टी का रत्नों की परीक्षा का ढंग और उसमें अत्यन्त कुशलता देखी तो उसने शेट्टी को अपने रत्न-व्यापार में साझीदार बनाने का प्रस्ताव किया। शेट्टी ने प्रस्ताव मान लिया और दोनों मिलकर व्यापार करने लगे । एक दिन वहाँ के राजा ने सभी जौहरियों को अपने महल में निमन्त्रित किया। उस देश का जौहरी शेट्री को भी अपने साथ ले गया। राजा ने सभी जौहरियों को नींबू के आकार का एक मोती दिखाया और उनसे पूछा कि यह कौन-सा मोती है और इसका क्या मूल्य है। सभी जौहरी उस मोती को देखकर आश्चर्य में पड़ गए तथा कुछ भी बताने में असमर्थ रहे । शेट्टी ने भी मोती को ध्यान से देखा और बिना किसी हिचक के राजा से कहा, "राजन ! क्षमा करें। यह मोती असली नहीं है। इसके अन्दर एक मेंढक तथा थोड़ा-सा जल है।" यह सुनकर राजा ने सत्यता की जाँच करने के लिए उस मोती को फोड़ने का आदेश दिया तो जौहरी का कथन सत्य निकला। राजा इससे बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने शेट्टी को बहत-सा धन और एक ऊँट भेट में देकर उसे स्वदेश जाने की अनुमति दे दी। शेट्टी जिस समय वर्तमान (शेट्टी) बसदि के पास आया तो ऊँट वहीं लेट गया और पूरी कोशिश करने पर भी वहाँ से आगे नहीं बढ़ा। इस पर शेट्टी ने निश्चय किया कि वह इसी स्थान पर पर एक जैनमन्दिर बनवायेगा। और इस प्रकार निर्माण हुआ शेट्टी बसदि का। इस मन्दिर में बंगोत्तम शेट्टी का एक चित्र भी है। यह भी अनुश्रुति है कि इस मन्दिर में जैन शास्त्रों का अच्छा संग्रह था। हिरिय/हिरे बसदि-यह मन्दिर 'अम्मनवर बसदि' (माँ का मन्दिर) भी कहलाता है। यह दुमंजिला है और यहाँ के अन्य मन्दिरों की ही भाँति सामने से एक साधारण-सा मकान लगता है। छत भी ढलुआ है । यह एक प्राचीन मन्दिर लगता है। यहाँ के एक शिलालेख में उल्लेख है कि शान्त-कांतण्णा नामक शेट्टी ने इसके नमस्कार-मण्डप का जीर्णोद्धार कराया था। शिलालेख का कुछ भाग अस्पष्ट भी है, इस कारण अन्य विवरण उपलब्ध नहीं है। इस मन्दिर के मूलनायक शान्तिनाथ हैं । उनको काले पाषाण की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग तीन
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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