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________________ मूडबिद्री | 167 प्राचीन धवल, जयधवल एवं महाधवल नामक सिद्धान्त-ग्रन्थ बंकापुर से लाकर सुरक्षित रखे गए थे । अब ये मठ में स्थानान्तरित कर दिए गए हैं (देखें चित्र क्र. 73)। बसदि के बाहर एक गद्दीमण्डप है जिसका निर्माण यहाँ के चोल शेट्टी आदि श्रावकों ने 1538 ई. में कराया था। सन् 1924 ई. में यहाँ के तत्कालीन भट्टारकजी ने मन्दिर की छतपर ताँबे का आवरण चढ़वाकर मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। और पंचकल्याणक कराया था। - इस बसदि में पद्मासन में सम्भवत: आदिनाथ की प्रतिमा है और उसके पीछे एक लघुमन्दिर है जिसके तीन ओर 52 तीर्थंकर-मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । यह संख्या नन्दीश्वर द्वीप की टोती है। किन्त उत्कीर्णन चारों ओर होता है। धात के एक कमल जैसी रचना में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की एक मूर्ति भी यहाँ है। उसकी आठ पंखुड़ियों में एक आसीन देवता है। यह रचना ऊपर की मंज़िल में है। यहीं कुछ दुर्लभ प्रतिमाएँ भी हैं जो सिद्धान्त-दर्शन व्यवस्था के अन्तर्गत दिखाई जाती हैं। . . किसी समय भारत में ताड़पत्रों पर शास्त्र लिखने की प्रथा थी । विशेषकर कर्नाटक में लगभग दस हज़ार ग्रन्थ ताड़पत्रों पर लिखे मौजूद हैं ऐसा अनुमान है। ताड़पत्रों पर सुई से कुरेद-कुरेद कर लिखाई की जाती थी। किन्तु धवल, जयधवल और महाधवल ये तीन महानग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें यह पद्धति नहीं अपनाई गई है। ये ग्रन्थ लाख की स्याही बनाकर लेखनी से लिखे गए हैं। उस समय के लेखकों ने सम्भवत: यह नई खोज की थी जो कि इन ग्रन्थों तक ही सीमित रही। लगभग आठ-नौ सौ वर्ष पहले प्राचीन कन्नड़ लिपि में लिखे गए ये ग्रन्थ हमारी अमूल्य धरोहर हैं। इनका प्रकाशन हिन्दी अनुवाद के साथ भी हो गया है। . उपर्युक्त ग्रन्थों में अत्यन्त मनोहर रंगीन चित्र हाशियों में एवं स्वतंत्र रूप से भी बनाए गए हैं। चित्रों के लिए यह आवश्यक नहीं रहा है कि वे विषय से संबंधित ही हों। चित्रों के विषय में सम्मिलित हैं-तीर्थंकर, उपाध्याय मुनि, यक्ष-यक्षी, चँवरधारी, सरस्वती, श्रुतदेवी, श्रावक, प्राकृतिक दृश्य, बादल, वन, लता-वल्लरी, कमल पुष्प (विभिन्न सुन्दर अंकन), मेघाच्छन्न, काश की छाया आदि । अन्य अनेक ग्रन्थों जैसे-कल्पसत्र, कालकाचार्यकथा (14वीं सदी) आदि में भी चित्र हैं। बहुत-से अन्य ग्रन्थों में श्याम-श्वेत चित्र हैं। पाण्डुलिपि पर इन चित्रों के रंग भी प्राकृतिक हैं और विशेष रीति से बनाए गए हैं। काले, नीले, पीले, हरे और लाल रंग प्राकृतिक पदार्थों-पत्थर, मिट्टी, पेड़ों के छिलकों और रसों, काजल, पुष्पों से प्राप्त रंग आदि सामग्री को गोंद में घोलकर चिकने बनाये गये हैं। इसी कारण ये रंग आज भी पक्के हैं। पके और सूखे ताड़पत्रों का उपयोग करने के कारण इनके रंग फीके नहीं पड़े हैं। इन ग्रन्थों में होयसल नरेश विष्णुवर्धन और उनकी पट्टमहिषी परम जिनभक्ता विदुषी कुशल राजनीतिज्ञा, रूप की प्रतिमा शान्तला के चित्र भी हैं। एक मनोहर चित्र में श्रुतदेवी के साथ मयूर का चित्र तथा यक्षिणी महामानसी का हंस वाहन सहित और यक्ष अजित का उसके वाहन कछुए के साथ चित्रण अत्यन्त सुन्दर है। बहुत-से चित्रों का सुन्दर प्रकाशन भी हो चुका है। ये ग्रन्थ और चित्र भी यात्रियों को अवश्य देखने चाहिए।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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