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________________ कारकल / 157 में 1319 ई. में हुआ था। उपर्युक्त बसदि का प्रवेशद्वार त्रिशाखा प्रकार का है। उसमें नीचे पूर्णकुम्भ और सिरदल पर तीर्थंकर की मूर्ति है। द्वार लगभग 15 फुट ऊँचा है । मन्दिर में जाने के लिए सोपान-जंगला है। इसका द्वार भी लगभग पन्द्रह फुट ऊँचा है। सिरदल पर भी पद्मासन में तीर्थंकर मूर्ति है। नीचे द्वारपाल प्रदर्शित हैं । गर्भगृह में तीर्थंकर नेमिनाथ की लगभग सात फुट ऊँची पद्मासन मूर्ति है जो 600 से अधिक वर्ष पुरानी बताई जाती है। प्रभावली पाषाण की है। मति के पीछे का फलक मकर-तोरण और कीर्तिमुख युक्त है। मूर्ति का आसन पाषाण का है। मूर्ति की पॉलिश अभी भी चमकदार है। गर्भगृह का द्वार पीतल का है । एक दूसरे प्रकोष्ठ में कांस्य की की छोटी-छोटी मूर्तियाँ हैं। वे भी 600 वर्ष पुरानी बताई जाती हैं। एक तीसरे कोष्ठ में काले पाषाण की आदिनाथ की लगभग चार फुट ऊँची मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा में मकर-तोरण और कीर्तिमुख सहित है । ब्रह्मयक्ष की मूर्ति भी है । मन्दिर की छत पर कमल-पुष्पों का सुन्दर-अंकन है। प्रदक्षिणा-पथ की संयोजना भी है। प्रवेश-मण्डप में 12 स्तम्भ हैं । प्रवेश करते ही दाहिनी ओर क्षेत्रपाल और उसी ओर 'जिनवाणी' है (एक भामण्डल सामने लगा है) । यही है 'श्री नेमिनाथ श्रुतभण्डार' । मन्दिर के सामने 12 स्तम्भों का भद्रमण्डप भी है। उससे आगे गोपुर यहाँ फाल्गुन मास में पूर्णिमा के दिन रथोत्सव होता है। आदिनाथ मन्दिर-नेमिनाथ बसदि से दाहिनी ओर अहाते में ही यह एक छोटा मन्दिर है। इसमें पंचधातु की लगभग चार फुट ऊँची आदिनाथ की प्रतिमा है। सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर और नीचे पूर्णकुम्भ हैं। यहाँ के दो स्तम्भों पर सुन्दर नक्काशी है । मन्दिर लगभग बारह फुट चौड़ा है। चन्द्रप्रभ मन्दिर—यह आदिनाथ मन्दिर के सामने है। इसमें भी पंचधातु की चन्द्रप्रभ की चार फुट ऊँची प्रतिमा है । शेष विवरण आदिनाथ मन्दिर के समान है। स्पर्शमला पहाड़ी-नेमिनाथ बसदि के पीछे 'स्पर्शमला पहाड़ी' है। अनुश्रुति है कि हाथी के पैर की जंजीर इसके पत्थर के सम्पर्क में आने से सोने की हो गई थी। यहाँ एक सुरंग भी है। नेमिनाथ बसदि-यह बसदि अवश्य देखने योग्य है। उसमें ऊपर ताँबा लगा है ताकि वजन कम रहे। शिखर नहीं है। तीन छोटे कलश हैं। नीचे कवेलू लगे हैं। ___अम्मनवर बसदि-यह बसदि मानस्तम्भ के दाहिनी ओर है । इसके प्रवेश-स्तम्भ पर एक शिलालेख है। सामने मानस्तम्भ के पास ध्वजस्तम्भ भी है। प्रवेश-द्वार के सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर मति है। मलनायक पार्श्वनाथ की मति पीतल की है। उसके पीछे मकर-तोरण एवं कीर्तिमख है। एक ही पंक्ति में आदिनाथ से वर्धमान स्वामी तक चौबीस तीर्थंकरों की एक ही आकार की काले पाषाण की कायोत्सर्ग मुद्रा में छत्रत्रयी से युक्त लगभग दो फुट ऊँची प्रतिमाएँ हैं जो बड़ी भव्य लगती हैं। एक कुलिका में सरस्वती की तीन फुट ऊँची प्रतिमा है। प्रभावली पीतल की है। दूसरी ओर पद्मावती की तीन फुट ऊँची मूर्ति है जोकि हुमचा की पद्मावती मूर्ति से बड़ी है। पीतल का दो फुट का नन्दीश्वर भी है। पूर्णकुम्भ और पवित्र ग्रन्थि का भी अंकन है। गर्भगृह से बाहर के कोष्ठ में पीतल के फ्रेम में अनेक कांस्य-मूर्तियाँ हैं । समवसरण
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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