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________________ 156 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) हुई थी कि वह इसे मूडबिद्री ले जायेगा। किन्तु यदि नदी पार करके सूर्यास्त से पहले वहाँ नहीं पहुँच सका तो यह कारकल में ही स्थापित कर दिया जायेगा। इसमें हाथी आदि की सुन्दर नक्काशी है और उत्तम मानस्तम्भों में इसकी गणना होती है। इसके चारों ओर कायोत्सर्ग तीर्थकर प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। इसी के पास एक ध्वजस्तम्भ भी है। चाम बसदि या आदिनाथ बसदि-बाईं ओर यह मन्दिर है। चाम एक नाम है। मन्दिर छोटा है-लगभग 20 फुट चौड़ा । शिखर नहीं है । सोपान-अँगला है। प्रवेशद्वार के सिरदल पर पद्मासन में तीर्थंकर मूर्ति है और नीचे पूर्ण-कुम्भ है । सारा मन्दिर स्थानीय लाल पत्थर का है। ऊपर ग्रेनाइट की छत है । मूलनायक आदिनाथ की लगभग तीन फुट ऊँची प्रतिमा खड्गासन में है। ___ अनन्तनाथ बसदि-श्रवण बसदि की लाइन में यह मन्दिर स्थित है । उसके सामने बारह स्तम्भों का खुला भद्रमण्डप है। सोपान-जंगला भी है। काले पाषाण की तीन फुट ऊँची अनन्तनाथ की खड्गासन प्रतिमा यक्ष-यक्षी तथा अशोक वृक्ष सहित है । मूर्ति की प्रभावली पाषाण की है। मन्दिर की दीवाले स्थानीय लाल पत्थर की हैं । चारों ओर 22 स्तम्भ हैं और तीन ओर से खुला बरामदा है। छत पर टाइल्स और कलश हैं। गुरु बसदि-उपर्युक्त मन्दिर के पास ही है । इसके सामने चार स्तम्भों का भद्रमण्डप है। प्रवेश-मार्ग पर तीन फुट ऊँचे दो सुसज्जित हाथी निर्मित हैं । प्रवेशद्वार के दोनों ओर द्वारपाल हैं। नीचे हंस और पूर्णकुम्भ अंकित हैं। सिरदल पर पद्मासन तीर्थकर मूर्ति है। एक और वेदी में, कांस्य की मकर-तोरण और कीर्तिमुख युक्त चौबीसी है । अन्य तीर्थंकर-प्रतिमाएँ भी हैं । लकड़ी का गन्धकूट भी यहाँ है। पीतल की एक चौकोर चौबीसी भी इस मन्दिर में है। इसके स्तम्भ पाषाण के हैं। पीछे की ओर पत्थर की जाली है। बाहर तीन फुट चौड़ा बरामदा है। स्तम्भों की कुल संख्या 22 है। बरामदे की ढलुआ छत पाषाण की है। ऊपर तीन छोटे-छोटे कलश हैं। छत टाइल्स की है। भट्टारक स्मारक-मन्दिर के दाहिनी ओर एक निषधिका है। यहाँ एक अद्भुत भट्टारक स्मारक है। तीन शिलाओं पर अंकन है। शिलाएँ अलग-अलग हैं मगर जुड़ी हुई हैं। उनके शीर्ष भाग में नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्धमान की मूर्तियाँ पद्मासन में हैं। नीचे 12 मुनियों के चित्र अंकित हैं जिनके नाम हैं (ऊपर की पंक्ति में) : 1. कुमुदचन्द्र, 2. हेमचन्द्र, 3. चारुकीर्ति ण्डतदेव, 4. श्रुतमुनि, 5. धर्मभूषण और 6. पूज्यपाद स्वामी। नीचे की पंक्ति में 1. विमलसूरि, 2. श्रीकीर्ति, 3. सिद्धान्तदेव, 4. चारुकीर्तिदेव, 5. महाकीति और 6. महेन्द्रकीर्ति ।। इस स्मारक में एक पुस्तक दिखाई गई है। उसके पास प्रत्येक ओर बीच में भट्टारक हैं और नीचे दो भट्टारक किसी विषय पर चर्चा करते दिखाए गये हैं । यह स्मारक अपने ढंग का एक ही है। हिरे बसदि या नेमिनाथ बसदि-यह यहाँ का प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिर है। यह मानस्तम्भ के पीछे है। नागरी में नाम भी लिखा हुआ है। मानस्तम्भ तो इसके सामने हो ही गया। सामने ही बलिपीठ और ध्वजस्तम्भ भी हैं । मन्दिर बड़ा भव्य है । चतुर्मुख मन्दिर के बाद, बड़े मन्दिरों में इसकी गणना होती है। यह बसदि पाषाण निर्मित है। इसका निर्माण पाण्ड्य चक्रवर्ती के काल
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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