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________________ कारकल / 149 चारियों को आठ कम्बल शनि-निवारण के लिए और आवश्यक वस्तुएँ मन्दिर की ओर से दी जाती थीं। यह ब्यौरा शिलालेख में दिया गया है। वर्तमान में यह मन्दिर सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है। किन्तु इसमें आज भी विधिवत् पूजन होती है। चतुर्मुख बसदि की रचना एक विशाल मण्डप के रूप में की गई है । उसका प्रवेशद्वार उन्नतहै। यहाँ चारों ओर स्तम्भयुक्त चार प्रवेशमण्डप हैं। इसी प्रकार चारों ओर बरामदा भी है। चारों ओर मुखद्वार भी हैं। ऊपरी आवरण ढलुआ है और बहुत सुन्दर दिखता है। वह एक के ऊपर एक शिला सँजोकर बनाया गया है। संभवतः एक अटूट चट्टान पर निर्मित यह मन्दिर दूर से ही पर्यटक का ध्यान आकर्षित करता है । इस मन्दिर मे कुल 108 स्तम्भ हैं जिनमें से 40 मन्दिर के अन्दर हैं और 68 उससे बाहर । उसके विशाल 28 स्तम्भों पर विविधतापूर्ण सुन्दर नक्काशी है। गर्भगृह के प्रवेशद्वार के सिरदल पर पद्मासन में तीर्थंकर प्रतिमा उत्कीर्ण है। उसमें तीन तरफ क्रमशः अरहनाथ, मल्लिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमाएँ और चौथी ओर चौबीस तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । श्रुतस्कन्ध, ब्रह्मदेव और पद्मावती की प्रतिमाएं भी हैं । मूर्तियों का आसन उत्कीर्ण है, और उसे प्रत्येक दिशा में तीन-तीन सिंह सँभाले हुए हैं। यह आसन वर्गाकार है। गर्भगृह के चारों ओर गन्धकूट हैं, एक उससे बाहर और तीसरा उससे भी बाहर है। इसी प्रकार दो प्रदक्षिणा-पथ हैं तथा तीसरा प्रदक्षिणा-पथ बाहर से भी है । मन्दिर के दक्षिण द्वार से पहले सोपान-जंगला है जिसपर व्याल अंकित हैं। प्रथम प्रवेशद्वार के सिरदल पर गजलक्ष्मी, उससे ऊपर पद्मासन तीर्थंकर और द्वारपाल भी अंकित हैं। उससे दाहिने स्तम्भ पर गणेश का अंकन है तथा नीचे के दाहिनी ओर के स्तम्भ पर आपस में गुंथे सर्प प्रदर्शित हैं। इस मन्दिर में काले पाषाण की सात फुट ऊँची कायोत्सर्ग तीन मूर्तियाँ हैं। ये तीनों अलगअलग किस्म के पाषाणों से निर्मित हैं। उनके पीछे कोई आधार (Support) नहीं है । उनके हाथ और पैरों के बीच से दरवाज़ा (सामने का) दिखता है। निर्माण की यह एक विशेषता है। दीपावली से एक दिन पहले प्रतिमाओं पर तिल का तेल लगाकर और उन्हें पोंछकर पूजा की जाती है। इसी प्रकार यहाँ एक छोटा-सा दर्पण लगा है जिसमें इस मन्दिर के सामने की पहाड़ी पर खड़ी बाहुबली की मूति दिखाई पड़ती है। पश्चिम द्वार की ओर आठ फुट ऊँचा शिलालेख है। उत्तर में, दीवालों पर राधा-कृष्ण उत्कीर्ण है । एक वर्ग में दो सर्प और संगीत मंडली का उत्कीर्णन है। प्रवेशद्वार के सामने के स्तम्भ पर 'गजवृषभ' का सुन्दर अंकन है-शरीर बैल और हाथी का किन्तु मुख एक ही । यदि इसको हाथ से आधा ढंका जाए तो हाथी और दूसरा भाग आधा ढंका जाए तो वृषभ दिखाई देता है । यहीं पेड़ पर चढ़ता एक आदमी भी उत्कीर्ण है। उसके नीचे कमल युक्त सरोवर है । पूर्व दिशा में भी, नर्तक-दल अंकित है । इस ओर के दो स्तम्भों पर कायोत्सर्ग प्रतिमाएँ भी हैं। दीवाल पर राम, सीता, हनुमान, लक्ष्मण और गरुड़ उत्कीर्ण हैं। इसी प्रकार दो साधु कमण्डलु लिये अंकित हैं । अन्य मतों के पूज्य पुरुषों का भी अंकन उस युग के जैनों की समदर्शिता और सहिष्णुता के ठोस प्रमाण हैं। जैन मन्दिरों में इस प्रकार के अंकन मन्दिर के बाहर ही किए जा सकते थे। मन्दिर के चारों ओर स्तम्भों एवं दीवाल पर नाना प्रकार का सूक्ष्म अंकन है। उसे ध्यान से देखना चाहिए। छत में पुष्प का अंकन मनो
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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