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________________ 124 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थं (कर्नाटक) आचार्य - परम्परा जैन आचार्यों की परम्परा की दृष्टि से भी यहाँ के शिलालेख बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । तोरण बागिल के दक्षिणी स्तम्भ पर 1077 ई. के एक शिलालेख से यह परम्परा जानकारी के लिए उदाहरण के रूप में प्रस्तुत की जाती है : वर्धमान स्वामी के तीर्थ में गौतम गणधर हुए । उनके पश्चात् बहुत से त्रिकालज्ञ मुनियों के होने के बाद, क्रमशः कोण्डकुन्दाचार्य, श्रुतकेवली भद्रबाहु, बहुत से आचार्यों के व्यतीत होने के बाद समन्तभद्र स्वामी, सिंहनंद्याचार्य, अकलंकदेव, कनकसेनदेव (जो वादिराज नाम से भी प्रसिद्ध थे), ओडेयदेव (श्री विजयदेव), दयापाल, पुष्पसेन, सिद्धान्तदेव, वादिराजदेव ( ' षट् - तर्कषण्मुख' तथा 'जगदेकमल्ल - वादि' नाम से भी प्रसिद्ध ), कमलभद्रदेव, अजितसेनदेव हुए । अजितसेनदेव के सहधर्मी शब्द- चतुर्मुख तार्किक चक्रवर्ती वादीभसिंह हुए। उनके बाद कुमारसेनदेव मुनीन्द्र और उनके बाद श्रेयांसदेव -यहाँ नामावली समाप्त होती है । जैन मठ यहाँ का जैन मठ अत्यन्त प्राचीन है । मठ के सभी भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति कहलाते हैं । यह संस्था ही इस क्षेत्र की रक्षा और संवर्धना करती रहती है । मठ की स्थापना कुन्दकुन्दान्वय के नन्दिसंघ (मूल संघ ? ) द्वारा की गई थी। इसके प्रमुख आचार्य हैं - आचार्य समन्तभद्र, विद्यानन्द, विशालकीर्ति और मुनि नेमिचन्द्र । जैन मठ के वर्तमान भट्टारक हैं स्वस्तिश्री पट्टाचार्य देवेन्द्रकीर्ति स्वामीजी । वे एक युवा भट्टारक हैं । उन्होंने गणित में बी- एस. सी. और दर्शनशास्त्र में एम. ए. उपाधियाँ प्राप्त की हैं। उनका पट्टाभिषेक 1971 ई. में हुआ था। थोड़े ही समय में उनकी प्रेरणा से यहाँ महावीर भवन, देवेन्द्र भवन, कुन्दकुन्द विद्यापीठ भवन, भोजनालय, डाक-तार भवन, सिद्धान्त भवन, चित्रभवन, पद्मय्या भवन, चाँदी का रथ, मठ का जीर्णोद्धार आदि निर्माणकार्य सम्पन्न हुए हैं । भगवान पार्श्वनाथ की 21 फीट ऊँची संगमरमर की प्रतिमा भी आपकी प्रेरणा का फल है । भट्टारकजी ने अनेक देशों में जैन धर्म का प्रतिनिधित्व किया है । वे आठदस बार विदेश यात्रा कर चुके हैं। अँग्रेजी पर आपका अच्छा अधिकार है । जैन मठ के अधीन 36 मन्दिर हैं । पाँच तीर्थों - हुमचा, वरंग, कुन्दाद्रि, कारकल आदि का संचालन यहीं से होता है । क्षेत्र-दर्शन इस अतिशय क्षेत्र का दर्शन यदि एक क्रम से किया जाए तो उचित होगा । यहाँ क्रमबद्ध यात्रा कराने का प्रयत्न किया जाएगा । हुमचा क्षेत्र के परिसर में प्रवेश करते ही 'महावीर भवन' नाम का एक दो मंज़िला आधुनिक भवन है । उसके चारों ओर छतरी में तथा छज्जे में भी बाहुबली हैं । यहाँ के हॉल में पाण्डुक शिला पर कमलासन पर भगवान महावीर की चार फीट ऊँची प्रतिमा है । इस भवन में हिन्दी, अँग्रेजी, मराठी, तमिल और कन्नड ग्रन्थों का संग्रह किया जा रहा है । यहाँ
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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