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कारवाड़ जिले के अन्य जैन-स्थल | 115 अपने जैन मन्त्री को एक गाँव दान में दिया था । मन्त्री पद्मण्णा ने भी 1499 ई. में पद्माकरपुर में पार्श्वनाथ का एक मन्दिर निर्माण कराया था।
यहाँ की 'चौबीसा बसदि' ध्वस्त अवस्था में है। यह झाड़ियों से घिरी हुई है। किन्तु यहाँ की पन्द्रहवीं शताब्दी की लगभग दो फुट ऊँची कांस्य की त्रिकाल चौबीसी आकर्षक है । उस पर भूत, भविष्य और वर्तमान के कुल 72 तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं।
यहाँ प्रकृति का दृश्य भी बड़ा सुहावना है। हरी-भरी पहाड़ियाँ मन मोह लेती हैं।
इसी बसदि में घोड़े पर सवार ब्रह्म यक्ष की मूर्ति है। घोड़े का एक पैर सिंह पर आक्रामक मुद्रा में है। ललितासन में कमल पर विराजमान सरस्वती (?) की मूर्ति भी है। देवी के हाथ में पुस्तक है। यक्ष और सरस्वती दोनों ही खण्डित हैं। ये मूर्तियाँ 14-15वीं सदी की हैं।
इस स्थान की चन्द्रनाथ बसदि में लगभग चार फुट ऊँची चन्द्रप्रभ की संगमरमर की 13वीं सदी की अर्धपद्मासन में मूर्ति है। एक अन्य चन्द्रप्रभ मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा में है। पार्श्वनाथ की 4 फुट ऊँची प्रतिमा (15वीं सदी) तथा कांस्य की एक पंचतीथिका (एक ही फलक पर पाँच तीर्थंकरों की मूर्तियाँ) भी है जिसके मूलनायक 'शंख' लांछन के आधार पर तीर्थंकर नेमिनाथ जान पड़ते हैं । यह प्रतिमा आठ इंच ऊँची तथा तेरहवीं सदी की है।
हाडुवल्लि में एक और 'चन्द्रनाथ बसदि' है । उसमें कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग छह फुट ऊँची चन्द्रप्रभ की प्रतिमा के साथ यक्ष एवं यक्षी (ज्वालामालिनी), छत्रत्रयी और कीर्तिमुख सहित मकर-तोरण का अंकन है। पन्द्रहवीं शती की पार्श्वनाथ की मूर्ति खण्डित है। यहाँ 14-15वीं सदी का एक वीरगल (वीर-स्मारक) भी है, जिसमें यह वर्णन है कि किस प्रकार इस वीर ने युद्ध किया। उसमें वीर जट्टिग को घोड़े पर सवार दिखाया गया है। यहाँ दो तीन वीरगल और भी हैं। मन्दिर इस समय ध्वस्त अवस्था में है।
__स्थानीय पार्श्वनाथ बसदि में एक नागपट्ट पर दो नाग आपस में गुंथे दिखाए गए हैं। उनके दोनों ओर भी एक-एक नाग है। इसी प्रकार एक स्तम्भ पर नाग के चित्रण से एक आकर्षण डिजाइन बन गई है। ये अंकन 15वीं सदी के हैं।
यहाँ हरिपीठ में संगमरमर की 24 तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। मुरडेश्वर (Murdeshwar)
भटकल तालुक के इस स्थान पर पार्श्व बसदि में 14वीं सदी की कायोत्सर्ग मुद्रा में चार फुट ऊँची प्रतिमा है । उस पर छत्रत्रयी है और नौ फणों की छाया है। धरणेन्द्र और पद्मावती (घुटनों तक), चँवरधारी और मकर-तोरण भी हैं। भगवान पार्श्वनाथ की एक साढ़े चार फुट ऊँची, 1539 ई. की पद्मासन मूर्ति भी है। यहाँ एक सती का स्मारक भी है । पद्मावती की खण्डित मूर्ति भी इस बसदि में है। यहाँ एक आकर्षक नागफलक भी है जिसमें तीन नाग आपस में गुंथे दिखाए गए हैं। बोलगि (श्वेतपुर) (Bilagi)
सिद्धापुर तालुक के इस स्थान की 'रत्नत्रय बसदि' प्राचीन है। उसका निर्माण 1570 ई.