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________________ 110 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) जैन मन्दिर जैन मठ के लिए स्वादी गाँव तक जाना भी आवश्यक नहीं है। सिरसी से हुबली जाने वाली सड़क जहाँ स्वादी गाँव के लिए मुड़ती है उसी तिराहे पर उतर जाना चाहिए। इस तिराहे को ‘वादिराज क्रॉस' भी कहते हैं। इसके आस-पास कुछ आदिवासी या कृषक निवास करते हैं और यह छोटा गाँव 'कमटगेरी' कहलाता है। वैसे बंकापुर की ओर से आने पर यह सिरसी से पहले पड़ता है। अपना साधन होने पर इसे पहले भी देखा जा सकता है। यहाँ चार अवशेष देखने में आते हैं। 1. सीढ़ियोंदार एक सुन्दर छोटा सरोवर । इसके लिए सड़क के पास से बैलगाड़ी का रास्ता-जैसा मार्ग जाता है। इस सरोवर में चारों ओर सीढ़ियाँ हैं। 2. सरोवर से कुछ ही दूरी पर जंगल से घिरा एक छोटा किन्तु ध्वस्त जैन मन्दिर है। उसमें अब मूर्ति नहीं है। सामने ऊँवा मानस्तम्भ है। 3. ध्वस्त मन्दिर से ही एक और छोटा ध्वस्त मन्दिर दिखाई देता है। वह भी खाली है, केवल क्षेत्रपाल शेष हैं। उसकी मूर्ति मठ में विराजमान कर दी गई। 4. जैन मठ और मन्दिर । जैन मठ आठवीं सदी से पहले का बताया जाता है। यह 'भट्ट अकलंक मठ' कहलाता है और इस के भट्टारक भट्ट अकलंक कहलाते हैं। संगीतपुर के पट्टाचार्य अकलंकदेव का यहाँ समाधिमरण हुआ था। कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'शब्दानुशासन' (व्याकरण) की रचना भट्टाकलंक ने यहीं की थी । उनका समाधिमरण यहाँ 1577 ई. में हुआ था। यहीं उनकी समाधि है। यह स्थान ही प्राचीन अकलंक-पीठ है। मठ इस समय जीर्णशीर्ण अवस्था में है किन्तु भट्टारक जी उसी में निवास करते हैं और धर्मलाभ देते हैं। मठ में कड़ियाँ (Beams) लकड़ी की हैं। उन्हें सहारा देने के लिए लकड़ी के ही मोटे-मोटे स्तम्भ हैं । छत भी लकड़ी की है । बाहर से मठ एक साधारण मकान जान पड़ता है। मठ के बाहर का सूक्ष्म निरीक्षण करने से स्पष्ट हो जाता है कि यहाँ किसी समय पाषाण का बड़ा भवन रहा होगा। कुर्सी आदि के पत्थर देखे जा सकते हैं । बड़े-बड़े पाषाण-खण्ड आज भी यहाँ पड़े हैं। जैन मठ के वर्तमान भट्टारक भट्ट अकलंक जी सौम्य एवं स्नेहपूर्ण व्यक्तित्व के स्वामी हैं। आर्थिक दृष्टि से खस्ता हालत में होने पर भी यह मठ प्राचीन परम्परा को जीवित रखे हुए है। इन्दौर के कुछ दानियों ने यहाँ भवन-निर्माण के लिए कुछ आर्थिक सहायता भी दी है । मठ की आर्थिक स्थिति थोड़ी-सी खेती पर निर्भर है। जैन मठ से संलग्न प्राचीन जैन मन्दिर छोटा-सा है। उसके मूलनायक आदिनाथ हैं । वे स्तम्भयुक्त मकरतोरण में विराजमान हैं। मन्दिर में चन्द्रप्रभ और बाहुबली की भी मूर्तियाँ हैं । कूष्माण्डिनी देवी और सर्वाह्न यक्ष भी स्थापित हैं। मन्दिर के द्वार के सिरदल पर यक्ष-मूर्ति और द्वार-शिला पर कमल तथा द्वार के दोनों ओर द्वारपाल हैं। मन्दिर और मठ रजिस्टर्ड ट्रस्ट हैं । मठ का पता इस प्रकार है
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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