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कर्नाटक में जैन धर्म | 13
घटनाएँ घटी हैं। राम-चरित से सम्बन्धित जैन पुराणों में उल्लेख है कि हनुमान् विद्याधर जाति के वानरवंशी थे। वे वानर नहीं थे, उनके वंश का नाम वानर था और उनके ध्वज पर वानर का चिह्न होता था। हनुमान किष्किन्धा के थे । यह क्षेत्र आजकल के कर्नाटक में हम्पी (विजयनगर) कहलाता है । जैन साहित्य में हनुमान के चरित्र पर आधारित अंजना-पवनंजय नाटक बहुत लोकप्रिय है।
नेमिनाथ का दक्षिण क्षेत्र पर विशेष प्रभाव-बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ का जन्म शौरिपुर में हआ था किन्तु अपने पिता समुद्रविजय के साथ वे भी द्वारका चले गए थे। श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव समुद्र विजय के छोटे भाई थे । श्रीकृष्ण ने प्रवृत्तिमार्ग का उपदेश दिया और नेमिनाथ ने निवृत्तिमार्ग का। नेमिनाथ ने गिरनार (सौराष्ट्र) पर तपस्या की थी और, डॉ. ज्योतिप्रसाद के जैन अनुसार, "तीर्थंकर नेमिनाथ का प्रभाव विशेषकर पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत पर हुआ। दक्षिण भारत के विभिन्न भागों से प्राप्त जैन तीर्थंकर मतियों में नेमिनाथ की प्रतिमाओं का बाहल्य है जो अकारण नहीं है। इसके अतिरिक्त कर्नाटक प्रदेश में नेमिनाथ की यक्षी कृष्माण्डिनी देवी की आज भी व्यापक मान्यता इस तथ्य की पुष्टि करती है। श्रवणबेलगोल में गोमटेश्वर मति की प्रतिष्ठा के समय इस देवी के चमत्कार की कथा बहत प्रसिद्ध है।
ऐतिहासिक युग पार्श्वनाथ और नाग-पूजा
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। उनकी ऐतिहासिकता तो सिद्ध ही है। उन्होंने अपने जीवन में 70 वर्षों तक विहार कर धर्म का प्रचार किया था। उन पर कमठ नामक बैरी ने घोर उपसर्ग किया था। सम्भवतः यह आश्चर्यजनक ही है कि कर्नाटक में कमठान (कमठ स्थान ?) कमटगी जैसे स्थान हैं और कमथ या कामठ उपनाम आज भी प्रचलित हैं। वैसे ये उपसर्ग उत्तर भारत में हुए बताए जाते हैं किन्तु स्थान-भ्रम की सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
तीर्थंकर पार्श्वनाथ नागजाति की एक शाखा उरगवंश के थे (उरग-सर्प) । उनकी मूर्ति पर सर्पफणों की छाया होती है । कुछ विद्वानों का मत है कि पार्श्वनाथ के समय में नाग-जाति के राजतन्त्रों या गणतन्त्रों का उदय दक्षिण में भी हो चुका था और उनके इष्टदेवता पार्श्वनाथ थे।
कर्नाटक में यदि जैन बसदियों (मन्दिरों) का वर्गीकरण किया जाए तो पार्श्वनाथ मन्दिरों की ही संख्या सबसे अधिक आएगी। इसी प्रकार पार्श्व-प्रतिमा स्थापित किए जाने के शिलालेख अधिक संख्या में हैं।
एक तथ्य यह भी है कि कर्नाटक में पार्श्वनाथ के यक्ष धरणेन्द्र और यक्षी पद्मावती की मान्यता बहुत ही अधिक है । कुछ क्षेत्रों में पद्मावती की चमत्कार पूर्ण प्रतिमाएँ हैं।
कर्नाटक के समान ही केरल में नाम-पूजा सबसे अधिक है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि केरल में यह पूजा बौद्धों के कारण प्रचलित हुई। अन्य विद्वान् इसका खण्डन कर कथन करते हैं कि यह तुलु प्रदेश (मूडबिद्री के आस-पास के क्षेत्र) से केरल में आई और वहाँ तो जैनधर्म और पार्श्वनाथ की ही मान्यता अधिक थी । कर्नाटक के दक्षिणी भाग में नाग-पूजा भी पार्श्वनाथ के प्रभाव को प्रमाणित करती है। महावीर और हेमांगद शासक जीवंधर
चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर, जिनका निर्वाण आज (1988 ई.) से 2515 वर्ष पूर्व हुआ