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________________ हम्पी / 71 होसपेट का बस-स्टैण्ड काफी बड़ा और शहर के बीच में है, आसपास ठहरने के लिए होटल भी हैं। सड़क-मार्ग तुंगभद्रा बाँध की ओर से आता है जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है । बाँध से होसपेट 6 कि. मी. है । यहाँ एक जैन मन्दिर भी है। हम्पी यहाँ से 13 कि. मी है। परावशेषों को देखने के लिए कमलापूर नामक गाँव भी यहाँ से 11 कि. मी. की दरी पर स्थित है । हम्पी के लिए सीधी बसें दिन भर चलती हैं। कमलापुर के लिए भी पर्याप्त बसें मिलती हैं। हम्पी अवस्थिति विजयनगर या हम्पी के कलात्मक अवशेष, जिनमें जैन मन्दिर भी सम्मिलित हैं, लगभग 26 कि. मी. के घेरे में फैले हुए हैं । तुंगभद्रा नदी और तीन पर्वतों के बीच का यह क्षेत्र जैन-अजैन यात्रियों के लिए तीर्थस्थल और कला के प्रेमियों के लिए एक कलातीर्थ है। नदी, पर्वत और काली विशाल चट्टानें एक अनोखा ही दृश्य उपस्थित करते हैं जिसे भुलाया नहीं जा सकता। विदेशी यात्रियों ने भी इसका मनमोहक वर्णन किया है। हम्पी को शान्तिपूर्वक देखने के लिए कम-से-कम डेढ़-दो घण्टे का समय चाहिए। तुंगभद्रा नदी के किनारे के शिलाखण्डों पर से नदी के साथ-साथ की पैदल यात्रा बड़ी आनन्ददायी होती है। अन्य भागों को देखने के लिए पक्की सड़कें बनी हैं किन्तु बार-बार गाड़ी से चढ़ने-उतरने से बचने के लिए कुछ यात्री इन स्थानों को भी पैदल ही घम-फिरकर देखते हैं। किन्त यह ध्यान रहे कि अपने वाहन से यात्रा वे ही कर सकते हैं जिनके पास ऐसा प्रबन्ध हो, सार्वजनिक वाहन दर्शनीय स्थलों की सैर नहीं कराते। उपर्युक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए सबसे पहले ठहरने की समुचित व्यवस्था कर लेना उचित है । होटलों में ठहरने वाले तुंगभद्रा बाँध या होसपेट में ठहर सकते हैं । यदि कोई जैन पर्यटक बस है तो यह परामर्श दिया जाता है कि होसपेट से हम्पी जाने वाली सड़क पर रत्नत्रय कुट है। उसके एक ओर 'जैन ग्रुप ऑफ टेम्पल्स' लिखा है। इस कूट पर 'श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम' है। वहाँ ठहरने की अच्छी व्यवस्था हो सकती है। अधिक संख्या हो तो आश्रम को एक सप्ताह पूर्व सूचना देनी होती है ताकि आवश्यकता होने पर आश्रम-प्रबंधक भोजन-सामग्री आदि का प्रबन्ध होसपेट जाकर कर सके । सार्वजनिक वाहन से यात्रा करने वाले यात्रियों को अपना भारी सामान आश्रम तक ले जाने में कठिनाई हो सकती है। यह जैन आश्रम है। इसकी मान्यता के अनुसार, यहाँ श्री सहजानन्द घन जी महाराज, राजचन्द्र जी आदि की मूर्तियाँ हैं। वैसे चन्द्रप्रभ गुफा-मन्दिर भी है जिसमें दिगम्बर मूर्ति है। इस आश्रम के बारे में यथास्थान कुछ विस्तार से लिखा जाएगा।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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