SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमहावीरजी मार्ग और अवस्थिति श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी, राजस्थान प्रान्तके सवाई माधोपुर जिले में अवस्थित है। पश्चिमी रेलवेकी दिल्ली - बम्बई मुख्य लाइनपर भरतपुर और गंगापुर रेलवे स्टेशनोंके बीच 'श्रीमहावीरजी' नामका रेलवे स्टेशन है जहाँ फ्रन्टियर मेल सहित प्रायः सब ही गाड़ियाँ ठहरती हैं । रेलवे स्टेशनसे मन्दिर तक जाने-आने हेतु क्षेत्रको ओरसे निःशुल्क बस सेवा उपलब्ध है | रेलवे स्टेशनसे मन्दिर ६ किलो मीटर दूर है जहाँ तक पक्की सड़क बनी हुई है । क्षेत्रके पूर्वंकी ओर श्री चरणोंको पखारती हुई गम्भीर नदी बहती है। इसपर पुल बना हुआ है। जिससे प्रत्येक ऋतु में यातायात की सुविधा हो गयी है । यह स्थान सड़क मार्गसे जयपुरसे १७५ किलो मीटर एवं आगरासे १७० किलो मीटर है और राजपथ संख्या ११ के महुवा ग्रामसे ५५ किलो मीटरको दूरीपर स्थित है । यहाँ नल, बिजली, पोस्ट ऑफिस, तार घर, टेलोफोन, बैंक ( बैंक ऑफ बड़ौदा ) आदि सभी प्रकारकी आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं । इतिहास मन्दिर चाँदनपुर गाँवके अति निकट है । इस क्षेत्रपर भगवान् महावीरकी जिस मूर्ति के अतिशय की ख्याति है, भूगर्भसे उसकी प्राप्तिके सम्बन्ध में अद्भुत किंवदन्ती प्रचलित है। कहा जाता है कि एक ग्वाले की, जो जातिसे चमार था, गाय जंगलसे चरकर जब घर लौटती तो उसके स्तन दूधसे खाली मिलते। एक दिन ग्वालेने जब गायका पीछा किया तो उसको यह देखकर विस्मय हुआ कि एक टीलेपर गाय खड़ी है और उसके स्तनोंसे स्वतः दूध झर रहा है । दूसरे दिन गायको उसने उस टीलेपर जानेसे रोकना चाहा पर गाय रुकी नहीं । दूधका झरना वह रोक कैसे सकता था । उसके लिए यह एक अनबूझ पहेली बन गयी । उसके मन में अनेक विकल्प उठने लगे । कहीं गायको कोई रोग तो नहीं लग गया, यह ऊपरी हवाका तो प्रकोप नहीं है, कहीं किसीने कोई आसेव तो नहीं कर दिया । अनेक आशंकाओं के मध्य विकल्पोंके ताने-बाने बुनते हुए उसे उस स्थानको खोदकर देखनेका विचार आया और फावड़ा लेकर खोदने लगा । उसे आवाज सुनाई दी - 'जरा सावधानी से खोद ।' आवाज सुनकर वह सावधान हो गया और फावड़ा धीरे-धीरे चलाने लगा । तभी फावड़ा किसी कठोर वस्तुसे टकराया । वह धीरे-धीरे मिट्टी हटाने लगा । मिट्टी हटाते - हटाते उसे मूर्तिका सिर दिखाई दिया। सिर दीखते ही उसका उत्साह दूना हो गया । वह मूर्तिके चारों ओरकी मिट्टी हटाने में जुट पड़ा। अब तो पूरी मूर्ति दिखाई देने लगी। उसने सावधानी से मूर्ति बाहर निकालकर रखी और उसके सामने खड़ा होकर एकटक निहारता रहा । विचित्र कौतूहल था। बार-बार वह देखता था अपनी इस उपलब्धिकी ओर जो अनायास रूपसे उसको अपनी ओर खींच रही थी । आनन्दविभोर हो गया, नेत्र भर गये । सहज सरलतासे प्लावित अश्रुधारासे सभी कल्मष तिरोहित हो चले, भक्तिका स्रोत बह निकला । भूगर्भसे भगवान प्रकट हुए हैं यह बात चारों ओर फैल गयी । दूर-दूरसे दर्शनार्थी खिंचकर आने लगे । मेला जुटने लगा । जो भी आता मन्त्रमुग्ध-सा हो भक्तिको गहनतामें डूब जाता । अतीव शान्तिकी देनहारी इस मनोहारी प्रतिमाके अतिशयों की चर्चा सर्वत्र फैलने लगी ।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy