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________________ जैन दृष्टिसे राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र राजस्थान यह प्रदेश इतिहासमें अपने शौर्यके लिए प्रसिद्ध रहा है। मुस्लिम कालमें यहाँके रणबांकुरे वीरोंने मातृभूमिको रक्षा और स्वतन्त्रताके लिए मुस्लिम आक्रान्ताओंसे निरन्तर लोहा लिया और अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। जब भी मुस्लिम आक्रान्ताओंने उनके राज्यपर आक्रमण किया, वहाँके सभी राजपूत केशरिया बाना धारण करके और ढाल-तलवार लेकर रणभूमिमें कूद पड़े। यद्यपि मुस्लिम सैनिकोंकी विशाल संख्याके सामने उनकी संख्या नगण्य रही, किन्तु अपने जीते जी उन्होंने कभी शत्रुको टिकने नहीं दिया। राजपूत रमणियां भी कभी पीछे नहीं रहीं। राजपूत पत्नियाँ रणभूमिमें जाते हुए अपने पतिदेवके भालपर केशरका तिलक करती थीं, उनकी आरती उतारती थीं और युद्ध-विजयकी कामना करती हुई अपने पतियोंसे अपेक्षा करती थीं कि वे शत्रुका वार सदा छातीपर ही झेलें, पीठपर नहों और जब लौटें तो विजय लेकर; युद्ध में पीठ दिखाकर प्राण लेकर वे न आवें, बल्कि युद्ध-भूमिमें ही अपने प्राण होम दें। इतिहासमें ऐसे भी उदाहरण प्राप्त होते हैं, जब पतिदेव अपनी नवविवाहित पत्नीके व्यामोहमें युद्ध-भूमिमें जाते समय कातर हो उठे तो उनकी वीर पत्नीने अपने सिर तलवारसे काटते हुए कहा कि अब आप युद्धमें निश्चिन्ततासे लड़ सकेंगे। ऐसे दृष्टान्तोंकी भी कमी नहीं है, जब पति युद्धसे पलायन करके श्रान्तक्लान्त और क्षत-विक्षत दशामें इस आशासे लौटा कि अपनी पत्नीके सुखद अंकमें अपनी क्लान्ति दूर कर सकेगा, किन्तु उसकी वीर पत्नीने घरका द्वार नहीं खोला और पतिको युद्धभूमिमें विजय या मृत्युके लिए वापस लौटनेको बाध्य कर दिया। जब राजपूत बालाएँ यह अनुभव करती थीं कि युद्ध में विजय पाना असम्भव हो गया है तो वे श्रृंगार करके एक स्थानपर एकत्रित हो जाती थीं और विशाल चिता जलाकर अपने शीलको रक्षाके लिए उसमें आत्माहुति कर देती थीं। यह जौहर व्रत कहलाता था। प्राचीन कालमें राजस्थान अनेक छोटे-छोटे राज्योंमें विभक्त था। सभी राज्य स्वतन्त्र थे। उनमें परस्पर ऐक्य और सद्भाव का अभाव था। उनमें जितना शौर्य, साहस और मातृभूमिके प्रति भक्ति थी, उसकी समानता इतिहासमें मिलना कठिन है। किन्तु अपने संकचित स्वार्थ. अनैक्य और राजनीतिक दूरदृष्टिके अभावके कारण वे मुस्लिम आक्रान्ताओंको कभी स्थायी पराजय नहीं दे सके। दूसरी ओर, मुस्लिम आक्रान्ताओंको नीति राजपूतोंके वंश-निर्मूलन और धर्म-नाशकी रही। जिस राज्यको वे जीतते थे, उस राज्यके अधिकांश वीर युद्ध में मारे जाते थे या युद्धबन्दी बना लिये जाते थे जिन्हें बलात् इस्लाम कबूल करनेपर बाध्य किया जाता था। विजित नगरकी राजपूत स्त्रियाँ स्वेच्छासे जौहर करके अग्निज्वालामें भस्म हो जाती थीं। जो सुन्दर युवतियाँ शेष रह जाती थीं, उन्हें विजयी सेना लूट लेती थी। नगरके प्रमुख मन्दिरों और मूर्तियोंका विध्वंस कर दिया जाता था अथवा मूर्तियाँ नष्ट करके मन्दिरोंको मसजिद के रूपमें परिवर्तित कर दिया जाता था।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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