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प्राक्कथन
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अर्थात हे देव ! स्तुति कर चुकनेपर मैं आपसे कोई वरदान नहीं माँगता। माँगं क्या, आप तो वीतराग है । और माँगें भी क्यों ? कोई समझदार व्यक्ति छायावाले पेड़के नीचे बैठकर पेड़से छाया थोड़े ही मांगता है। वह तो स्वयं बिना मांगे ही मिल जाती है। ऐसे ही भगवान की शरण में जाकर उनसे किसी बातकी कामना क्या करना । वहाँ जाकर सभी कामनाओंकी पूर्ति स्वतः हो जाती है।
प्रस्तुत ग्रन्थ भाग ४ की संयोजना प्रस्तुत ग्रन्थ 'भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ' ग्रन्थमालाका चतुर्थ भाग है। इसमें राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र इन तीन प्रान्तोंके दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र सम्मिलित हैं। तीर्थ ग्रन्थमालाके अन्य भागोंके समान इस भागमें प्रान्तोंको जनपदोंमें विभाजित नहीं किया गया अपितु इन तीन प्रदेशोंके आधार पर ही तीर्थोंका परिचय दिया गया है।
आदिपुराणमें जिन ५२ जनपदोंका वर्णन किया गया है, उनमें से वर्तमान तीन प्रान्तोंमें निम्नलिखित जनपद सम्मिलित थे
अश्मक, आनर्त, कच्छ, विदर्भ, करहाट, महाराष्ट्र, सुराष्ट्र, आभीर, कोंकण, सौवीर और अपरान्तक ।
इन जनपदोंका परिचय इसी ग्रन्थमें अन्यत्र दिया गया है। इन जनपदोंमें वर्तमान तीनों प्रान्तोंका सम्पूर्ण भूभाग नहीं आता तथा कुछ जनपद ऐसे भी हैं जिनकी सीमाएं उपर्युक्त तीनों प्रान्तोंसे बढ़कर अन्य प्रान्तोंमें चली जाती हैं । इन सब कारणोंसे यही उचित समझा गया कि इस भागमें तीर्थक्षेत्रोंका विभाजन जनपदोंके आधारपर न करके प्रान्तोंके आधारपर किया जाय। इसी प्रकार इस भागमें जनपदोंके नक्शे न देकर तीनों प्रान्तोंके अलग-अलग नक्शे दिये गये हैं तथा तीनों प्रान्तोंका एक बड़ा नक्शा भी दिया गया है। इन नक्शोंमें जैन तीर्थोंको लाल वर्णमें दिखाया गया है। तीनों प्रान्तोंके संयुक्त बड़े नक्शेमें यात्रियोंकी सुविधाके लिए तीरके चिह्न भी दिये गये हैं । इन चिह्नोंसे यह समझने में सहायता मिल सकेगी कि यात्रा किस क्रमसे करनी चाहिए। ग्रन्थके अन्तमें एक परिशिष्ट भी दिया गया है-राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के जैन तीर्थ, उनका संक्षिप्त परिचय और यात्रा-मार्ग ।
अन्तमें प्रत्येक तीर्थक्षेत्रके मुख्य मन्दिरों, मूलनायक अथवा पुरातात्त्विक और कलाको दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण मूर्तियों, मानस्तम्भों, शिखरों, गुहामन्दिरी, शिलालेखों और शासन देवताओंके चित्र दिये गये हैं।
क्षमा-याचना
यहाँ मैं अपनी एक भूलके लिए पाठकोंसे क्षमा याचना करता हूँ। मुक्तागिरि क्षेत्र वस्तुतः मध्यप्रदेशमें अवस्थित है। यह सिद्धक्षेत्र मध्यप्रदेश और महाराष्ट्रकी सीमापर स्थित है। यद्यपि इसका जिला बैतूल ( मध्यप्रदेश ) है, किन्तु इसके पोस्टल पतेमें जिला अमरावती ( महाराष्ट्र ) लिखा जाता है। मुझे इसीके कारण भ्रम हो गया और इसे मध्यप्रदेशमें नहीं दे पाया। अब इसे महाराष्ट्र में देना पड़ रहा है । अपनी इस असावधानी और अज्ञानताके लिए मुझे वस्तुतः खेद है । आशा है, सहृदय पाठक मेरी इस भूलको इसी रूपमें लेंगे और मुझे क्षमा करेंगे।
आभार-प्रदर्शन
सर्व प्रथम मैं स्वनाम धन्य स्व० साहू श्री शान्तिप्रसादजी की स्मृतिमें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है जिन्होंने मुझे यह ग्रन्थ लिखनेके लिए प्रेरित और नियोजित किया था। और जिनके मार्गदर्शनमें इस तीर्थग्रन्थके चार भाग तैयार करने में सफल हो सका। उनके इस मार्गदर्शन और सान्निध्यको मैं अपना परम