SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ १३५ रथ यात्रा महोत्सव किया गया और २४ नवम्बरको मध्याह्नमें मन्दिरका शिलान्यास विधि-विधान - पूर्वक किया गया । मन्दिरका निर्माण कार्य चालू हो गया और वह निरन्तर रूपसे होता चला आ रहा है । मन्दिरजीका मुख्य भवन, उसके आगेका विशाल हॉल, गगनचुम्बी शिखरका निर्माण एवं मुख्य वेदीका निर्माण लगभग पूर्ण होने को है । मन्दिर भव्य और विशाल बना है । प्रक्षालके जल के लिए कुएँका निर्माण हो चुका है । कुएँ में मोटर एवं पम्प फिट होकर एक टंकी बना दी गयी है। महिलाओं और पुरुषोंके लिए स्नानागारोंका निर्माण भी हो चुका है, जिससे यात्रियों को अब स्नानादिकी कोई असुविधा नहीं रही। बिजली लग चुकी है । I मन्दिर के पास ही एक दो मंजिली विशाल धर्मशालाका निर्माण पूर्ण हो चुका है। इसमें ५५ कमरे, जलप्लावित शौचालय, नल, बिजली, रसोईके बर्तन व विस्तर आदिको समुचित व्यवस्था है । धर्मशालापर एक मैनेजरकी नियुक्ति की हुई है, जो हर समय वहां रहकर यात्रियोंकी प्रत्येक सुविधा जुटाता है । मन्दिरके चारों ओर एक कटलेका निर्माण चल रहा है, जिसमें अब तक लगभग २०० कमरे आगेके बरामदों सहित बन चुके हैं । कुछ फ्लेट आधुनिक सुख-सुविधासे सज्जित बनने शेष हैं, जो शीघ्र ही निकट भविष्य में बनने प्रारम्भ हो जायेंगे । मन्दिरजीके मुख्य द्वारके बराबर ही दूकानें हैं, जिनपर पूजन सामग्री, ज्योति एवं यात्रियोंकी आवश्यकताकी प्रत्येक वस्तु उपलब्ध होती है । नगरका मुख्य बाजार भी बहुत समीप ही है । वार्षिक मेला चन्द्रप्रभु भगवानको मूर्ति श्रावण शुक्ला १० को प्रकट हुई थी, अतः प्रति वर्ष इस तिथिको वार्षिक मेला किया जाता है। इसके अतिरिक्त चन्द्रप्रभु भगवान् के निर्वाण दिवस फाल्गुन शुक्ला ७ को बृहद् रथ-यात्रा होती है । इस अवसरपर जनताकी बहुत भीड़ रहती है। इस दिन शोभायात्रा, ध्वजारोहण, मण्डलविधान, विद्वानोंके उपदेश आदि होते हैं । प्रति माह अन्तिम रविवारको देहली एवं अन्य नगरोंसे क्षेत्रपर काफी संख्या में बसें आती हैं। इससे प्रति माह क्षेत्रपर एक अच्छा मेला लग जाता है । इस दिन पूजन, कीर्तन, आरती आदि कार्यक्रम बड़ी धूमधाम से सम्पन्न होते हैं । इस प्रकार वर्षमें ये १२ मेले वार्षिक मेलोंके अतिरिक्त लगते हैं । क्षेत्रका प्रबन्ध क्षेत्र के प्रबन्ध एवं धन आदिकी व्यवस्थाके लिए एक प्रबन्धकारिणी कमेटी बनी हुई है, जिसमें ५ सदस्य स्थानीय समाजसे निर्वाचित होकर तथा एक सदस्य श्री पार्श्वनाथ मन्दिरजीका अध्यक्ष इस प्रकार छह व्यक्ति होते हैं । इनका चुनाव प्रति चौथे वर्ष होता है । नगर में दिगम्बर जैनोंके लगभग १०० घर हैं जिनकी जनसंख्या लगभग १००० है । स्थानीय मन्दिर एवं संस्थाएं यहाँ नगरके मध्य में श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैनमन्दिर है । यह दो मंजिला है । इसमें ४ वेदियाँ हैं । मन्दिरका शिलान्यास वि.सं. १८९५ ज्येष्ठ कृष्णा १३ को किया गया था । इस मन्दिर में सबसे प्राचीन प्रतिमा श्वेतवर्णं श्री नेमिनाथ भगवान्‌की है, जिसके आसनपर सं. ११६९ का लेख खुदा हुआ है । इस मन्दिरकी प्रतिष्ठा सन् १८५९ में हुई थी । इस अवसरपर रथयात्रा हुई थी। इस प्रतिष्ठा प्रतिष्ठाचार्य जयपुर निवासी पं. सदासुखजी थे, जिन्होंने रत्नकरण्डश्रावकाचारको बृहत् टीका लिखी है ।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy