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________________ ५८ भारतके दिगम्बर जैन तीथ था । नंग-अनंगकुमार आदिने भगवान् चन्द्रप्रभका उपदेश सुनकर उन्होंके चरणों में यहीं पर संयम धारण किया था । इस प्रकार भगवान् चन्द्रप्रभके पावन जीवनके साथ इस पर्वतका विशिष्ट सम्बन्ध जुड़ा हुआ है । इसलिए इस पर्वतपर चन्द्रप्रभ भगवान्को मूलनायकके रूपमें महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है । इस मन्दिरके निकट एक छत्रीमें मुनि नंगकुमार, मुनि अनंगकुमारके चरणचिह्न विराजमान हैं । एक प्रकारसे ये चरण-चिह्न उन साढ़े पाँच कोटि मुनियोंके प्रतीक हैं जो यहाँसे निर्वाणको प्राप्त हो चुके हैं । पर्वतपर स्थित मन्दिरोंका परिचय इस प्रकार है १. नेमिनाथ मन्दिर - केवल गर्भगृह बना हुआ है। उसमें भगवान् नेमिनाथकी पाँच फुट ऊँची कायोत्सर्गासन प्रतिमा विराजमान है । यह श्यामवर्ण है और विक्रम संवत् १२१९ में इसकी प्रतिष्ठा हुई थी । प्रतिष्ठाकारक थे झिरिवाले चौधरी हरीसिंह । इस मन्दिरके बगल में फाटक है । उसमें प्रवेश करके और सीढ़ियाँ चढ़कर दूसरा मन्दिर मिलता है । २. नेमिनाथ मन्दिर – भगवान् नेमिनाथकी श्यामवर्णं पद्मासन सवा दो फुट अवगाहनावाली मूर्ति विराजमान है जो संवत् १८८८ बलात्कारगण सरस्वतीगच्छके आचायं विजयकीर्तिजीके द्वारा प्रतिष्ठित की गयी । प्रतिष्ठाकारक झाँसीवाले सि. बुलाकीदास हेमराज थे । मन्दिर में केवल गर्भगृह है । ३. आदिनाथ मन्दिर - भगवान् आदिनाथकी पद्ममासन श्वेतवर्णं डेढ़ फुट अवगाहनावाली प्रतिमा संवत् १९६१ में प्रतिष्ठित है । मन्दिरमें केवल गर्भगृह है । इसके बराबर एक छत्री में किसी मुनिराज के चरण विराजमान हैं । ४. आदिनाथ मन्दिर - मन्दिरमें केवल गर्भगृह है । इसमें भगवान् आदिनाथ की श्वेतवर्णं पद्मासन सोलह इंच अवगाहनावाली प्रतिमा है जिसकी प्रतिष्ठा संवत् १८५५ में हुई थी । इसके आगे एक छत्रीमें एक शिलाफलकपर २४ तीर्थंकरोंके संवत् १८८८ में प्रतिष्ठित चरण-चिह्न विराजमान हैं । ५. पार्श्वनाथ मन्दिर - भगवान् पार्श्वनाथकी श्वेतवर्णं पद्मासन १४ इंच ऊँची प्रतिमा है जिसकी प्रतिष्ठा संवत् १५४८ में सेठ जीवराज पापड़ीवालने करायी थी । ६. चन्द्रप्रभ मन्दिर - केवल गर्भगृह है । भगवान् चन्द्रप्रभकी श्वेतवर्णं पद्मासन एक फुट अवगाहना की मूर्ति है जो संवत् १९३० में प्रतिष्ठित की गयी । ७. नेमिनाथ मन्दिर - भगवान् नेमिनाथकी श्यामवर्णं खड्गासन पौने तीन फुट : ऊँची मूर्ति है । प्रतिष्ठा-संवत् १८८९ है । मन्दिरमें केवल गर्भगृह है । ८. पद्मप्रभ मन्दिर - भगवान् पद्मप्रभकी श्वेतवर्णं पद्मासन १२ इंच अवगाहनावाली प्रतिमा विराजमान है । प्रतिष्ठाकारक हैं श्री छीतरमल पन्नालाल अलवरवाले । मन्दिर में अर्धमण्डप और गर्भगृह हैं। ९. पार्श्वनाथ मन्दिर - भगवान् पार्श्वनाथकी श्वेतवर्णं पद्मासन दो फुट ऊँची प्रतिमा है । प्रतिष्ठा संवत् १९४२ है । मन्दिरमें अर्धमण्डप और गर्भगृह हैं । प्रतिष्ठाकारकका नाम है श्री चतुर्भुज गोरमीवाले । १०. पार्श्वनाथ मन्दिर - इस मन्दिरमें तीन वेदियाँ हैं। मध्यकी वेदीपर मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथकी श्यामवर्णं पद्मासन पौने तीन फुट ऊँची मूर्ति है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९२१ में भट्टारक चारु चन्द्रभूषणजी द्वारा सकल जैसवाल वरैया जैन समाज शमशाबाद
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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