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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
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अर्थात् विद्युत्कुमारियोंमें प्रमुख रुचकप्रभा, रुचका, रुचकाभा और रुचकोज्ज्वला ये चार देवियाँ तथा दिक्कुमारियोंमें प्रमुख विजया आदि चार देवियाँ जिनेन्द्रदेवके जातकर्म करनेमें जुट गयीं ।
मूर्तिको ध्यानपूर्वक देखनेसे स्पष्ट प्रतीत होता है कि इसमें बनी हुई चार देवियाँ हरिवंशपुराण में वर्णित चार विद्युत्कुमारियाँ हैं अथवा चार दिक्कुमारियाँ हैं । प्रतीकके रूपमें मूर्ति में चार देवियाँ अंकित कर दी गयी हैं । निश्चय ही यह तीर्थंकर माता तथा सद्यः जात बालक तीर्थंकरकी मूर्ति है तथा देवियाँ माताका जातकर्म करके माताकी सेवामें खड़ी हुई हैं ।
यह मूर्ति वदोह गडरमल मन्दिरसे प्राप्त हुई थी । यह मन्दिर ९वीं शताब्दीका अनुमानि किया जाता है । मुस्लिम आक्रान्ताओंने इस मन्दिरका जीर्णोद्धार करवा लिया । मूलतः यह जैन मन्दिर रहा है और अब भी इसमें जैन मूर्तियाँ हैं ।
किन्तु कोई विद्वान् आग्रहवश इसे देवकी और कृष्णकी मूर्ति मानते हैं । तथा यह आक्षेप भी करते हैं कि इस मन्दिरपर जैनोंने अधिकार कर लिया तथा बादमें अपनी मूर्तियाँ वहाँ रख दीं । किन्तु उन्होंने अपनी मान्यताके समर्थन में कोई प्रमाण नहीं दिया । उनकी निराधार कल्पनाको केवल उनके आग्रहके कारण स्वीकार करनेमें किसी भी विवेकशील व्यक्तिको कठिनाई होगी । उनके आग्रह एकाधिक उदाहरण और भी हैं । जेसे ग्यारसपुरका मालादे मन्दिरपर जैनोंने अधिकार कर लिया है और उसमें अपनी मूर्तियाँ रख दी हैं । जेन यक्षी अम्बिकाके सम्बन्धमें भी यही बात है । अस्तु ।
शिलालेख
शिलालेखों की दृष्टिसे यह संग्रहालय अत्यन्त समृद्ध है । इसमें कुछ जैन शिलालेख भी हैं जो ऐतिहासिक दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । एक शिलालेख उदयगिरि ( जिला विदिशा ) गुहासे उपलब्ध हुआ है जो गुप्त संवत् १०६ ( सन् ४२५ ई.) का है । इसमें उल्लेख है कि कुरुदेश के शंकर स्वर्णकारने कर्मारगण ( स्वर्णकार संघ ) के हित के लिए गुहा मन्दिर में तीर्थंकर पार्श्वनाथ - की प्रतिमाका निर्माण कराया ।
एक शिलालेख १३वीं शताब्दीका है । यह यज्वपाल वंशके असल्लदेवका नरवर शिलालेख है जो विक्रम सं. १३१९ ( सन् १२६२ ) का है। इसमें गोपगिरि दुर्गके माथुर कायस्थ परिवारकी वंशावली दी गयी है । सर्वप्रथम भुवनपालका नाम है जो धार नरेश भोजका मन्त्री था । उसने जैन तीर्थंकर मन्दिरका निर्माण कराया, नागदेवने उसमें तीर्थंकर प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करायी और यह शिलालेख वास्तव्य कायस्थ ( श्रीवास्तव ) ने लिखा ।
एक अन्य शिलालेख उपर्युक्त असल्लदेवके पुत्र गोपालदेव नरवरका है जिसमें आशादित्य कायस्थ द्वारा एक वापिका बनवाने और वृक्ष लगाये जानेका उल्लेख है ।
ग्वालियर में तोमर राजवंशके कालमें जैनधर्म
तोमर राजवंश प्राचीन भारतीय राजवंशों में अत्यन्त प्रतिष्ठित राजवंश माना जाता है । तोमरवंशने अपनी वीरता, साहस और सूझबूझसे भारतीय इतिहासपर उल्लेखनीय प्रभाव डाला है । तोमरवंशके राजा अनंगपालने दिल्लीको बसाया था, यह एक ऐतिहासिक तथ्य है, जिसका समर्थन दिल्ली संग्रहालय में उपलब्ध निम्नलिखित श्लोकसे होता है—
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