SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ४९ अर्थात् विद्युत्कुमारियोंमें प्रमुख रुचकप्रभा, रुचका, रुचकाभा और रुचकोज्ज्वला ये चार देवियाँ तथा दिक्कुमारियोंमें प्रमुख विजया आदि चार देवियाँ जिनेन्द्रदेवके जातकर्म करनेमें जुट गयीं । मूर्तिको ध्यानपूर्वक देखनेसे स्पष्ट प्रतीत होता है कि इसमें बनी हुई चार देवियाँ हरिवंशपुराण में वर्णित चार विद्युत्कुमारियाँ हैं अथवा चार दिक्कुमारियाँ हैं । प्रतीकके रूपमें मूर्ति में चार देवियाँ अंकित कर दी गयी हैं । निश्चय ही यह तीर्थंकर माता तथा सद्यः जात बालक तीर्थंकरकी मूर्ति है तथा देवियाँ माताका जातकर्म करके माताकी सेवामें खड़ी हुई हैं । यह मूर्ति वदोह गडरमल मन्दिरसे प्राप्त हुई थी । यह मन्दिर ९वीं शताब्दीका अनुमानि किया जाता है । मुस्लिम आक्रान्ताओंने इस मन्दिरका जीर्णोद्धार करवा लिया । मूलतः यह जैन मन्दिर रहा है और अब भी इसमें जैन मूर्तियाँ हैं । किन्तु कोई विद्वान् आग्रहवश इसे देवकी और कृष्णकी मूर्ति मानते हैं । तथा यह आक्षेप भी करते हैं कि इस मन्दिरपर जैनोंने अधिकार कर लिया तथा बादमें अपनी मूर्तियाँ वहाँ रख दीं । किन्तु उन्होंने अपनी मान्यताके समर्थन में कोई प्रमाण नहीं दिया । उनकी निराधार कल्पनाको केवल उनके आग्रहके कारण स्वीकार करनेमें किसी भी विवेकशील व्यक्तिको कठिनाई होगी । उनके आग्रह एकाधिक उदाहरण और भी हैं । जेसे ग्यारसपुरका मालादे मन्दिरपर जैनोंने अधिकार कर लिया है और उसमें अपनी मूर्तियाँ रख दी हैं । जेन यक्षी अम्बिकाके सम्बन्धमें भी यही बात है । अस्तु । शिलालेख शिलालेखों की दृष्टिसे यह संग्रहालय अत्यन्त समृद्ध है । इसमें कुछ जैन शिलालेख भी हैं जो ऐतिहासिक दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । एक शिलालेख उदयगिरि ( जिला विदिशा ) गुहासे उपलब्ध हुआ है जो गुप्त संवत् १०६ ( सन् ४२५ ई.) का है । इसमें उल्लेख है कि कुरुदेश के शंकर स्वर्णकारने कर्मारगण ( स्वर्णकार संघ ) के हित के लिए गुहा मन्दिर में तीर्थंकर पार्श्वनाथ - की प्रतिमाका निर्माण कराया । एक शिलालेख १३वीं शताब्दीका है । यह यज्वपाल वंशके असल्लदेवका नरवर शिलालेख है जो विक्रम सं. १३१९ ( सन् १२६२ ) का है। इसमें गोपगिरि दुर्गके माथुर कायस्थ परिवारकी वंशावली दी गयी है । सर्वप्रथम भुवनपालका नाम है जो धार नरेश भोजका मन्त्री था । उसने जैन तीर्थंकर मन्दिरका निर्माण कराया, नागदेवने उसमें तीर्थंकर प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करायी और यह शिलालेख वास्तव्य कायस्थ ( श्रीवास्तव ) ने लिखा । एक अन्य शिलालेख उपर्युक्त असल्लदेवके पुत्र गोपालदेव नरवरका है जिसमें आशादित्य कायस्थ द्वारा एक वापिका बनवाने और वृक्ष लगाये जानेका उल्लेख है । ग्वालियर में तोमर राजवंशके कालमें जैनधर्म तोमर राजवंश प्राचीन भारतीय राजवंशों में अत्यन्त प्रतिष्ठित राजवंश माना जाता है । तोमरवंशने अपनी वीरता, साहस और सूझबूझसे भारतीय इतिहासपर उल्लेखनीय प्रभाव डाला है । तोमरवंशके राजा अनंगपालने दिल्लीको बसाया था, यह एक ऐतिहासिक तथ्य है, जिसका समर्थन दिल्ली संग्रहालय में उपलब्ध निम्नलिखित श्लोकसे होता है— २०
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy