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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ गयी थी। दूसरी मूर्ति पार्श्वनाथकी विक्रम सं. १४७६ की है। एक अन्य पाश्वनाथकी मूर्ति ११-१२वीं शताब्दीकी है। ग्वालियरकी मूर्तियोंमें नेमिनाथ, धर्मनाथ और चन्द्रप्रभकी मूर्तियाँ हैं एवं चौमुखी मूर्तियाँ हैं। इनमें क्रमशः ऋषभनाथ, अजितनाथ, महावीर और पार्श्वनाथकी मूर्तियाँ हैं।
भिलसासे भी एक चतुर्मुखी प्रतिमा मिली है। उसमें भी मूर्तियोंका क्रम उपर्युक्त रीतिसे है । भिलसासे प्राप्त ऋषभदेवकी एक मूर्ति अपने अद्भुत केश-विन्यासके कारण विशेष उल्लेखनीय जान पड़ती है।
पधावलीकी मूर्तियोंमें आदिनाथ, धर्मनाथ, पद्मप्रभ, अजितनाथ और पार्श्वनाथकी मूर्तियाँ हैं। ये मूर्तियाँ पधावलीके पश्चिममें स्थित पहाड़ीसे लायी गयी थीं। ये सब १२-१४वीं शताब्दी की हैं।
__ये सब मूर्तियाँ गूजरी महलके फाटकमें घुसते ही गैलरीमें रखी हैं, अथवा गैलरी नं. २० ( जैनकक्ष ) में सुरक्षित हैं । इन मूर्तियोंका क्रमिक विवरण इस प्रकार है
१. पाश्वनाथ-मूर्तिका सिर
२. पद्मासन प्रतिमा, अवगाहना ढाई फुट। ऊपर दोनों सिरोंपर दो पद्मासन अर्हन्त प्रतिमाएं हैं। उनके नीचे दो देवियां वाद्य यन्त्र लिये हुए हैं। उनसे नीचे चमरवाहक हैं।
३-साढ़े चार फुट शिलाफलक पर दो खड्गासन तीर्थकर-मूर्तियाँ हैं । सिरके ऊपर छत्र हैं । कोनोंपर आकाशचारी गन्धर्व हैं। भगवान्के हाथोंके पास दोनों ओर दो-दो चमरेन्द्र खड़े हैं। पाषाणका वर्ण कुछ हल्का पीला है। .
४. दुसरे बरामदेमें-सहस्रकट चैत्यालय । ५. सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएं पद्मासन मुद्रामें, अवगाहना चार फुट। ६. सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएँ खड्गासन मुद्रामें। चारों कोनोंपर चमरवाहक। ७. पूर्वोक्त प्रतिमा-जैसी है। चमरवाहक नहीं है। जैन कक्ष नं. २० में मूर्तियोंका क्रम इस प्रकार है१. सवा दो फुट ऊंची पद्मासन प्रतिमा। गरदनसे ऊपरका भाग नहीं है। २. सर्वतोभद्रिका।
३. पद्मासनमुद्रामें सवा दो फुट उन्नत प्रतिमा पुष्पदन्त तीर्थकरकी। परिकरमें ऊपर कोनोंपर गजारूढ़ इन्द्र, नभचारी देव और मध्यमें चमरेन्द्र ।
___४. तीर्थकर मूर्तिका केवल पीठासन भाग है, शेष खण्डित है। मध्यमें बोधिवृक्ष बना हुआ है। उसके दोनों ओर खड़े हुए भक्त उसकी पूजा कर रहे हैं। उसके ऊपर तो पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । उनके दोनों ओर यक्ष और यक्षी खड़े हैं। मूर्तिलेखके अनुसार इस मूर्तिको प्रतिष्ठा संवत् १५५२ ज्येष्ठ सुदी ९ सोमवारको सम्पन्न हुई थी।
५. खड्गासन मुद्रा में ७ फुट उन्नत तीर्थंकर प्रतिमा। परिकरमें आकाशचारी गन्धर्व और चमरेन्द्र। ......६. ढाई फुट ऊँची पद्मासन मूर्ति । सिरके पीछे प्रभालय हैं।
७. पंचबालयतिकी मूर्ति । मध्यमें खड्गासन पार्श्वनाथ है। ऊपर दो पद्मासन तथा नीचे दो खड्गासन मूर्तियाँ हैं । उनके दोनों ओर चमरवाहक हैं।
८. एक खण्डित मूर्ति केवल पद्मासन (पथोली) का भाग अवशिष्ट है। मूर्ति-लेखके अनुसार संवत् १४९२ में प्रतिष्ठित।