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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मुहम्मद गौसका मकबरा यह ग्वालियर किलेके पास बना हुआ है। इस मकबरेका भी एक इतिहास है। ग्वालियर दुर्ग इब्राहीम लोदीके सूबेदार तातार खांके अधिकारमें था। बाबरकी सेनाओंने दुर्गपर आक्रमण कर दिया। किन्तु किलेंमें कैसे प्रवेश किया जाये, यह समस्या थी। मुगल सेनाने किलेके पास रहनेवाले एक फकीर शेख मोहम्मद गोसकी मदद ली । एक बरसती रातमें किलेके प्रत्येक द्वारपर शेखने अपने शिष्योंको किसी प्रकार नियुक्त कर दिया। आधी रातको सेना किलेमें प्रवेश कर पायी। किलेपर मुगलोंका अधिकार हो गया। इस उपकारके कारण मुगल घरानेमें अकबरले समय तक इनका बड़ा सम्मान रहा। शेख ८० वर्षको आयुमें मरे । उनकी मृत्युपर अकबरने उनका भव्य स्मारक बनवानेकी इच्छा व्यक्त की। स्मारक तुरन्त तैयार नहीं हो सकता था, अतः शवको पूर्वनिर्मित एक भव्य भवनमें दफना दिया गया। यह भवन जैन मन्दिर था जो अत्यन्त कलापूर्ण बना हुआ था। किन्तु बाबरके सैनिकोंने इसको वेदियां, मूर्तियाँ आदि नष्ट कर दी थीं। उसी जैन मन्दिरको अकबरने शेख मुहम्मद गोसका मकबरा बना दिया। इसकी बनावटसे ही प्रतीत होता है कि यह मूलतः जैन मन्दिर था। संग्रहालयमें जैन पुरातत्त्व ग्वालियरका केन्द्रीय पुरातत्त्व संग्रहालय दुर्गके गूजरो महलमें स्थित है। गूजरी महल न केवल एक प्राचीन स्मारक ही है, अपितु वह स्थापत्य कलाका एक अनुपम उदाहरण भी है। इस महलके साथ एक प्रेम-कथानक जुड़ा हुआ है जो मध्यभारतमें बड़ा लोकप्रिय है। राजा मानसिंहको शिकार खेलनेका बड़ा शौक था। एक दिन वे दुर्गके उत्तर-पश्चिममें स्थित 'राय' गाँवमें शिकार खेलते हुए पहुँच गये । गाँवमें एक जगह दो भैंसोंमें युद्ध हो रहा था। दोनों भयंकर क्रोधके कारण एक-दूसरेसे गुंथे हुए थे। दर्शकोंका भारी शोर हो रहा था। कुछ गुजरियां सिरपर घड़े रखे हुए राह साफ होनेकी प्रतीक्षामें वहां खड़ी थीं। किसीमें यह साहस नहीं था कि भैंसोंको अलग कर दे । सहसा एक गूजरी आगे बढ़ी, घड़े उतारकर एक ओर रख दिये, भैंसोंके पास पहुंची और अपने बलिष्ठ हाथोंसे उनके सींग पकड़कर दोनोंको अलग कर दिया। राजा मानसिंह खड़े हुए देख रहे थे। वे एक नारीके इस अतुल साहस और शारीरिक बलको देखकर उसकी ओर आकर्षित हो गये। उसके सौन्दर्यने उसका मन हर लिया। राजाने गूजरीसे विवाहका प्रस्ताव किया। सुन्दरीके परिजन और पुरजन राजाका प्रस्ताव सुनकर गर्वसे फूल उठे। किन्तु गूजरी कन्या सहसा विवाहके लिए तैयार नहीं हुई। उसने एक शर्त पेश की-यदि राय ग्रामकी नदीसे महल तक हर समय जल पहुंचानेकी व्यवस्था कर दी जाये तो वह विवाह कर सकती है क्योंकि राय ग्रामकी नदीके जलके कारण ही तो वह इतनी शक्तिवती है। राजाने यह शर्त स्वीकार कर ली। बम्बों द्वारा पानी लानेकी व्यवस्था कर दी गयी। विवाहके बाद गूजरीका नाम 'मृगनयना' रखा गया। उसके रहनेके लिए एक सुन्दर महल बनवाया गया। वह 'गूजरी महल' के नामसे विख्यात है तथा 'रानी सागर' इस बातका स्मरण दिलाता है कि राजा मानसिंहने अपनी प्यारी रानीके लिए जलकी विशेष व्यवस्था की थी। __ इस संग्रहालयमें जो जैन पुरातत्त्व-सामग्री संग्रह की गयी है, वह प्रायः तीन स्थानों सेप्राचीन ग्वालियर, पधावली और भिलसा। ग्वालियरसे आयी मूर्तियां प्रायः तोमरवंशके शासनकाल ( १५-१६वीं शताब्दी ) की हैं, कुछ ११-१२वीं शताब्दीकी हैं। एक पद्मासन मूर्ति, मूर्तिलेखके अनुसार, महाराजाधिराज मानसिंहके शासनकालमें विक्रम सं. १५५२ में प्रतिष्ठित की
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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