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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ उनको भाषा सन्धिकालीन अपभ्रंश है, किन्तु कुछ ग्रन्थ प्राकृत एवं हिन्दी तथा कुछ पद्य संस्कृतके भी उपलब्ध होते हैं। ____कविवर रइधूके व्यक्तित्वका एक दूसरा रूप भी था। वह था प्रतिष्ठाचार्यका। उन्होंने अपने जीवनमें कितनी मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा करायी, यह तो नहीं कहा जा सकता; किन्तु उन्होंने ग्वालियर दुर्ग में तथा अन्य नगरोंमें भी अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा करायी थी, यह बात कविवरकी ग्रन्थ-प्रशस्तियों एवं मूर्ति-लेखोंसे ज्ञात होती है। उरवाही द्वारके मूर्ति-समूहमें भगवान् आदिनाथकी ५७ फुट ऊँची मूर्ति तथा चन्द्रप्रभ भगवान्की विशाल मूर्तिके लेखोंमें पण्डितवर्य रइधू द्वारा प्रतिष्ठित होना बताया है। अन्य सभी मूर्तिलेख अब तक नहीं पढ़े गये, अन्यथा यह पता चल जाता कि दुर्गमें कितनी मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा रइधूने करायी थी। कविवरने 'सम्मत्तगुणणिहाणकव्व', 'सम्मइजिणचरिउ' आदि काव्योंमें कई मूर्ति-निर्माताओं और प्रतिष्ठाकारकोंका उल्लेख किया है।
एक अभिलेखके अनुसार कविवर रइधूने चन्द्रपाट नगर (वर्तमान चन्दवार-फीरोजाबादके पास ) में चौहानवंश। नरेश रामचन्द्र और युवराज प्रतापचन्द्रके शासनकालमें अग्रवालवंशी संघाधिपति गजाधर और भोला नामक प्रतिष्ठाकारकोंके अनुरोधपर भगवान् शान्तिनाथके बिम्बकी प्रतिष्ठा करायी थी।
कविवर के समयमें ग्वालियर दुर्गमें जैन मूर्तियोंका इतना अधिक निर्माण हुआ, जिन्हें देखकर उन्हें यह लिखना पड़ाअगणिय अण पडिम को लक्खइ । सुरगुरु ताह गणण जइ अक्खइ ।
सम्मत्त. ११३१५ इस पद्यमें कविवरने गोपाचलकी जैन मूर्तियोंको अगणित कहा है। कविवरकी विद्वत्ता, राजसम्मान और लोकप्रियताको देखकर यह कल्पना करना असंगत नहीं प्रतीत होता कि यहांकी अधिकांश मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा उन्हींके हाथों हुई थी।
(४)मूर्ति-निर्माता और प्रतिष्ठाकारक-कविवर रइधूके ग्रन्थोंमें कुछ ऐसे व्यक्तियोंका नामोल्लेख आया है, जिन्होंने मूर्तियोंका निर्माण और उनकी प्रतिष्ठा गोपाचल दुर्गपर करायी। उनमें से कुछ नाम ये हैं-संघवी कमलसिंह, खेल्हा ब्रह्मचारी, असपति साहू, संघाधिप नेमदास आदि।
संघवी कमलसिंह-इन्हें कविवर रइधूने ग्रोपाचलका तीर्थ-निर्माता कहा है। इन्हींकी प्रेरणासे कविवरने 'सम्मत्त गुण णिहाण' काव्यकी रचना की थी। इस काव्यकी प्रशस्तिमें संघवीका परिचय दिया गया है। इसके अनुसार इनका कुल अग्रवाल और गोत्र गोयल था। इनके पिताका नाम क्षेमसिंह और माताका नाम निउरादे था। इनकी पत्नीका नाम सरासइ और पुत्रका नाम मल्लिदास था। इन्होंने भगवान् आदिनाथकी ११ हाथ ऊंची प्रतिमाका निर्माण और प्रतिष्ठा महाराज डूंगरसिंहके राज्य-कालमें प्रार्थना करके रइधूसे करवायी थी। उस प्रतिमाकी प्रशंसा करते हुए कविवर लिखते हैं
जो देवहिदेव तित्थंकरु, आइणाहु तित्थो य सुहंकरु । तह पडिमा दग्गइणिण्णासणि, जा मिच्छत्त गिरिंद सरासणि ॥ जा पुणु भबह-सुहगइ सासणि, जा महिरोय सोय दुहु णासणि। सा एयारहकर अविहंगी, काशवियणिरुवम अरतुंगी॥
१. प्राचीन जैन लेख संग्रह-बा. कामताप्रसाद द्वारा सम्पादित ।