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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ बावड़ी बगलमें दायीं ओर पद्मासन पार्श्वनाथ मूर्ति है। इसके ऊपर बहुत सुन्दर छत्र बना हुआ है । इसके आगे २० से ३० फुट ऊंची खड्गासन मूर्तियाँ हैं । पादपीठपर बने हुए लांछनोंके अनुसार ये मूर्तियां जिन तीर्थंकरोंकी हैं उनके नाम इस प्रकार हैं : ( १ ) शान्तिनाथ, (२) पद्मप्रभ, (३) शान्तिनाथ, ( ४ ) पद्मप्रभ, (५) बाहुबली, (६) शान्तिनाथ, (७) पद्मप्रभ, (८) नेमिनाथ, (९) शान्तिनाथ । ४० इनसे आगे ९ मूर्तियोंके आगे दीवार में द्वार बने हैं और ऊपर शिखर बने हैं जो मन्दिर प्रतीत होते हैं । ये मूर्तियां इस प्रकार हैं : (१) कुन्थुनाथ, (२) सुपार्श्वनाथ, (३) पद्मासन, (४) आदिनाथ पद्मासन, ( ५ ) शान्तिनाथ खड्गासन, ( ६-७ ) पद्मासन, (८) शान्तिनाथ, ( ९ ) सम्भवनाथ । इनसे आगे पुष्पदन्त, नेमिनाथ और ऋषभदेवकी खड्गासन तथा पद्मप्रभकी पद्मासन मूर्तियाँ हैं । इनके पश्चात् कई छोटी मूर्तियाँ हैं । एक मूर्तिके आगे दोनों ओर मानस्तम्भ बने हुए हैं। आगे एक गुफा मिलती है । इसमें छोटी-बड़ी लगभग १२५ प्रतिमाएँ दीवारोंमें उत्कीर्ण हैं । इसके पश्चात् तीन खड्गासन मूर्तियां बनी हुई हैं । अन्तमें दो गुफाओं में कुछ मूर्तियाँ हैं । इनमें ऋषभदेवकी एक खड्गासन मूर्ति है जो ३५ फुट ऊँची और १० फुट चौड़ी है। सभी मूर्तियां खण्डित हैं। मुगल बादशाह बाबरने दुर्गंकी सभी मूर्तियोंको खण्डित करा दिया था । किन्तु एक मूर्तिके ऊपर उसकी क्रूरताका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह है सुपार्श्वनाथकी पद्मासन प्रतिमा, जो ३५ फुट ऊँची और ३० फुट चौड़ी है। यह मूर्ति खण्डित नहीं हो सकी, इसका क्या कारण था । इस सम्बन्ध में विविध और विचित्र किंवदन्तियां प्रचलित हैं । तथ्य जो भी हो, इसमें सन्देह नहीं है कि दुर्ग सभी मूर्तियाँ खण्डित हैं, किन्तु यह अखण्डित है । पद्मासन मूर्तियों में यह सबसे विशाल मूर्ति है । इसके अतिरिक्त एक मूर्ति और भी अखण्डित है । वह है महावीर भगवान्की मूर्ति जो बावड़ीके निकट, पार्श्वनाथ भगवान्‌की मूर्तिके नजदीक विराजमान है । उपर्युक्त चार मूर्ति समूहों के अतिरिक्त उरवाही द्वारके प्राचीरके पीछे कोलेश्वरमें भी कुछ मूर्तियां बनी हुई हैं। एक मूर्ति ८ फुट लम्बी शिलापर बनी हुई है । यह तीर्थंकर माताकी शयनमुद्रा में है । इसपर ओपदार पालिश है । एक शिलाफलक में एक स्त्री, पुरुष और बालक बने हुए हैं । सम्भवतः यह मूर्ति गोमेद यक्ष और अम्बिकाकी है । मूर्तियोंका निर्मम भंजन ग्वालियर दुर्गंकी इन मूर्तियोंका निर्माण तोमरवंशी नरेश डूंगरसिंह और उनके उत्तराधिकारी पुत्र करनसिंह ( अथवा कीर्तिसिंह ) के शासन कालके ३३ वर्षों (सन् १४४० से ७३ ) में हुआ था। महाराज मानसिंहने कुछ मूर्तियोंका निर्माण करवाकर इसमें वृद्धि की । इन मूर्तियोंका निर्माण केवल इन नरेशोंने ही नहीं कराया, अपितु इस पुण्य कार्यमें अनेक भक्त श्रावकोंने भी भाग लिया और करोड़ों रुपये व्यय करके अक्षय पुण्य और कीर्तिका संचय किया । सन् १५५७ में बाबरके सेनापति रहीमदादखाने दुर्गके पास रहनेवाले एक फकीर शेख मोहम्मद गौसकी मदद से इब्राहीम लोदी के सूबेदार तातारखांको पराजित करके दुर्गंपर अधिकार कर लिया। जब बाबरने विजेता के रूपमें दुगंमें प्रवेश किया तो वह इन विशाल और भीमकाय मूर्तियों को देखकर बड़ा झुंझलाया और उसने इन मूर्तियों को ध्वस्त करनेका आदेश दे दिया । इस बातका उल्लेख उसने अपने 'बाबरनामा' में किया है। इसका आदेश पाकर सैनिकोंने इन मर्तियोंके ऊपर हथौड़ों के निर्मम प्रहार किये, जिसके फलस्वरूप अधिकांश मूर्तियोंकी मुखाकृति ही नष्ट
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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