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________________ मध्यप्रवेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ३७ अग्रोतवंशे वासिल गोत्रे साकेलहा भार्या निवारी तयोः पुत्रः विजयष्ट शाह सहजा तत्पुत्र शाह नाथू तेउ नाथ पत्री मालादे भौसा तेज पत्री गोविन्ददेवजीमहारथी बालमती साध मालहा भार्या सिरो पुत्र संघाधिपतिदेव भार्या मालेही द्वितीय लोछि तयोः पुत्र शंकर मसीजाकरमासारे पति पुत्र नेम भार्या हेमराज हि चतुर्थ साहीगा पुत्र सेई माघ पुत्र बीजा जोडसी कुमरा पन्नवसा चेला पुण्याधिदा द्वितीय भोला तृतीय अलूसा जीदा पुत्र माणिकुटी धारतरु सहारापु डालू पुत्र देवीदास इस वंश निर्देश एतेषां मध्ये साधु श्री माल्हा पुत्र संघाधिपति देउताय पुत्र संघाधिपति करमसीहा श्री चन्द्रप्रभु जिनबिंब महाकाय प्रतिष्ठापितं प्रणमति कर्णासी श्री साध्वी वीर जिनपद चक्र अंगुष्ठ मातृ विमान जिनसा क्रिया प्रतिष्ठापयतो महुतया कुलं वलं राज्यमनंतसौख्यं तवस्य विच्छित्तिरथोविमुक्तिः । शुभं भवतु देशवृषयोः।" इस शिलालेखमें कुल १५ पंक्तियाँ हैं और यह लगभग पौने दो फुट लम्बा और इतना ही चौड़ा है। __ बायीं ओरसे प्रतिमाएं इस प्रकार हैं-तीर्थकर मूर्ति, दोनों ओर इन्द्र और इन्द्राणी हैं। फिर तीर्थंकर चन्द्रप्रभकी मूर्ति है। उसके दोनों ओर इन्द्र-इन्द्राणी हैं। फिर तीर्थंकर महावीरकी मूर्ति है । उसके बगलमें इन्द्र विनम्र मुद्रामें खड़ा है। ___ इस समूहमें विशाल खड्गासन मूर्तियाँ ४०, पद्मासन मूर्तियाँ २४, स्तम्भों और दीवारोंमें लघु तीर्थंकर मूर्तियाँ ८४०, उपाध्याय और साधु मूर्तियाँ ४, यक्ष और शासन देवी-मूर्तियाँ १२ हैं। ४ चैत्य स्तम्भ भी बने हुए हैं। उनके ऊपर दीवारमें शिखर बने हुए हैं। इस समूहमें कुल १० शिलालेख हैं जिनमें से कई तो संवत् १५१० और १५२२ के हैं। उरवाही द्वारकी ओर जानेपर दायीं ओरके मूर्ति-समूहके सम्बन्धमें आवश्यक ज्ञातव्य निम्न प्रकार है दायीं ओरसे बायीं ओरको-इस समूहमें ४७ खड्गासन मूर्तियां हैं, ३१ पद्मासन मूर्तियाँ, ६ यक्ष और देवी-मूर्तियाँ, ६ चैत्य-स्तम्भ और ३ शिलालेख हैं। इस पर्वतकी मूर्तियोंमें सबसे विशाल अवगाहनावाली मूर्ति भगवान् ऋषभदेवकी है जो इसी समूहमें है और जिसकी अवगाहना ५७ फुटकी है। इस मूर्तिके पादपीठके सारे भागपर मूर्तिलेख है. तथा इस मूतिके दोनों ओर भी लेख है । मूर्ति-लेखके अनुसार इस मूर्तिके प्रतिष्ठाकारक साहू कमलसिंह तथा प्रतिष्ठाचार्य रइधू थे। यहाँ ५ मतियां ऐसी हैं, जिनमें महाराज श्रेयांस द्वारा भगवान ऋषभदेवको आहार देते हए प्रदर्शित किया गया है । इस समूहमें एक कोष्ठकमें चैत्यालय बना हुआ है। इसमें तीन वेदियां बनी हुई हैं। प्रत्येक वेदीके ऊपर शिखर निर्मित हैं। एक स्थलपर सम्भवतः मुनियोंके ध्यानके लिए एक गुफा और एक कक्ष बने हुए हैं। एक मूर्ति तीर्थंकर माताकी बनी हुई है जो उपधानके सहारे शयनमुद्रामें दीख पड़ती है। सम्भवतः यह स्वप्न-दर्शनके अवसरकी मूर्ति है। कई स्थानोंपर दीवारमें लघु मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। एक स्थानपर ७१ मूर्तियां बनी हुई हैं। किन्तु सब मूर्तियोंकी गणना करना सम्भव नहीं लगता। कुछ मूर्तियां बड़ी अस्पष्ट और अर्धनिर्मित हैं। कुछ बड़ी मूर्तियाँ भी अर्धनिर्मित दशामें हैं । शिल्पीको उन्हें पूर्ण करने में क्या बाधा आयी, यह अनुमानसे बाहर है। - आगे बढ़नेपर उरवाही द्वार मिलता है। द्वारके दोनों ओर दो खड्गासस तीर्थंकर मूर्तियां खड़ी हैं, किन्तु इनकी कमर तक ईंटें चुन दी गयी हैं तथा मूर्तियोंपर सफेदी कर दी गयी है। उरवाही द्वारसे सिन्धिया स्कूल होते हुए आगे बढ़नेपर सासका बड़ा मन्दिर और बहूका छोटा मन्दिर मिलते हैं । सास-बहूके इन दोनों मन्दिरोंमें गर्भगृहमें कोई मूर्ति नहीं है । बड़ा मन्दिर १०५ फुट लम्बा, ७५ फुट चौड़ा और १०० फुट ऊँचा है। मन्दिरके बीचका हॉल ३२ फुट लम्बा
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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