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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ विशेष उल्लेखनीय उक्त सन्दर्भ में कुछ विशेष उल्लेखनीय बातोंपर प्रकाश डालना आवश्यक लगता है भोयरा-मध्यप्रदेशमें सोनागिरि, अहार, पपौरा, बन्धा, बीना-बारहा और पनिहार इन क्षेत्रोंपर भोयरे बने हुए हैं। - मेरु-मन्दिर-अहार, सोनागिरि, रेशंदीगिरि, खजुराहो, द्रोणगिरि, पटनागंज क्षेत्रपर मेरुमन्दिर निर्मित हैं। ... सहस्रकूट जिनालय-कोनी, पटनागंज, कारीतलाई ( रायपुर संग्रहालय ), ग्वालियर संग्रहालयमें हैं। ____ नन्दीश्वर जिनालय की रचना कई स्थानों पर मिलती है, जैसे थूबौन, सोनागिरि, कोनी, पटनागंज, पनागर, रायपुर संग्रहालय, मक्सी पार्श्वनाथ ।। मानस्तम्भ-अहार, कुण्डलपुर, सोनामिरि, चूलगिरि, पावागिरि, सिद्धवरकूट, मढ़िया, थूबौन, पपौरा, रेशंदीगिरि, द्रोणगिरि, गूडर इन क्षेत्रोंमें मानस्तम्भ हैं। द्रोणगिरि पर्वतके ऊपरका और अहारमें एक मानस्तम्भ पर्याप्त प्राचीन प्रतीत होते हैं। सिहोनिया और पटनागंजमें पाषाण-स्तम्भ बने हुए हैं । सम्भवतः वे भी मानस्तम्भ रहे हों। समवसरण रचना-किसी क्षेत्रपर प्राचीन कालकी समवसरण रचना उपलब्ध नहीं होती। सेमवसरणकी आधुनिक रचना मढ़िया और कुण्डलपुरमें है। भट्टारक पीठ-मध्यप्रदेशमें पनागर, उज्जैन, ग्वालियर और सोनागिरि इन चार स्थानोंपर भट्टारक पीठ रहे हैं । इन्दौरमें भी भट्टारकोंकी गद्दी थी, ऐसे उल्लेख प्राप्त होते हैं। संग्रहालय-मध्यप्रदेशके निम्नलिखित तीर्थक्षेत्रोंपर सरकार या समाजकी ओरसे संग्रहालय स्थापित किये गये हैं अथवा मूर्तियोंका संग्रह हो चुका है और संग्रहालय स्थापित करनेकी योजना है-विदिशा, पावागिरि, ऊन, गन्धर्वपुरी, उज्जयिनी, ग्वालियर, सोनागिरि, अहार, चन्देरी, थूबौन, बीना-बारहा, खजुराहो। संवत् और सन्-इस ग्रन्थमें प्रसंगानुसार अनेक संवतों और संवत्सरोंका उल्लेख आया है। इनको समझनेमें अनेक विद्वानोंको भी भ्रम हो जाता है। इसका प्रभाव किसी ऐतिहासिक व्यक्ति और घटना कालके निर्णयपर पड़ता है। पाठकोंकी सुविधाके लिए यहाँ ग्रन्थमें आये हुए संवतों-संवत्सरोंका नामोल्लेख करते हुए उनका ईस्वी सन् से अन्तर बताया जा रहा है। गुप्त संवत् और ईस्वी सन्में ३१९ वर्षका अन्तर है अर्थात् गुप्त संवत् ई. सन् ३१९ में हुआ। कलचुरि संवत्-जिसका दूसरा नाम चेदि संवत् भी है-का प्रारम्भ ईस्वी सन् २४९में हुआ। शक और ईस्वी सन्में ७८ वर्षका अन्तर है अर्थात् ई. सन् ७८में शक संवत्का प्रारम्भ हुआ। विक्रम संवत् और ईस्वी सन्में ५७ वर्षका अन्तर है अर्थात् विक्रम संवत् ५७ में ईस्वी विक्रम संवत् और शक संवत्में १३५ वर्षका अन्तर है अर्थात् विक्रम संवत् १३५ में शक संवत् प्रारम्भ हुआ। 'हिजरी और ईस्वी सन्में ६०२ वर्षका अन्तर है अर्थात् ई. सन् ६०२ में हिजरी सन् प्रारम्भ हुआ। कामाका
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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