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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ रखी हुई हैं जिनका अनुमानिक काल १०-११वीं शताब्दी है। कावेरीके तटवर्ती जंगलमें भग्न जैन मन्दिर और मूर्तियां पड़ी हुई हैं। इनमें एक मूर्ति ५ फुट ऊँची है। एक वस्त्रालंकार-सज्जित राजपुरुष है, उसके शीर्षपर पद्मासन मुद्रामें अर्हन्त प्रतिमा विराजमान है। यह मूर्ति १०-११वीं शताब्दीकी प्रतीत होती है। चूलगिरि-यहाँ भारतकी सबसे विशाल प्रतिमा भगवान् ऋषभदेवकी विराजमान है जो ८४ फीट ऊंची है। क्षेत्रपर कुल २९ जिनालय हैं-८ पहाइपर और २१ मैदानमें। क्षेत्रपर दो प्रतिमाएं संवत् ११३१ ( ई. सन् १०७४ ) तथा दो प्रतिमाएं संवत् १२४२ ( ई. सन् ११८५ ) की हैं। संवत् १३८० की प्रतिमाओंकी संख्या लगभग ५० होगी। चूलगिरि मन्दिरके महामण्डपमें संवत् १११६ ( सन् १०५९ ) और संवत् १२२३ (सन् ११६६ ) के शिलालेख भी हैं। - तालनपुर-भूगर्भसे प्राप्त ५ मूर्तियां मन्दिरमें विराजमान हैं जो संवत् १३२५ ( ई. सन् १२६८ ) की हैं। पावागिरि-यहाँ ३ प्राचीन जिनालय हैं-वालेश्वर, चोवारा डेरा नं. १ और चोवारा डेरा नं. २। ये तीनों ही १२वीं शताब्दोके हैं। ग्वालेश्वर (शान्तिनाथ ) जिनालय जैनोंके अधिकारमें हैं, शेष दोनों पुरातत्त्व विभागके अधिकारमें हैं। धर्मशालामें स्थित महावीर मन्दिर और ग्वालेश्वर मन्दिरमें कई मूर्तियां १२वीं शताब्दी की हैं। पुरातत्त्व विभागके संग्रहालयमें भी १२वीं शताब्दीकी जैन मूर्तियां बहुत हैं। यहाँकी कुछ मूर्तियाँ, तोरण शिलालेख आदि इन्दौर संग्रहालयमें सुरक्षित हैं जो १२वीं शताब्दीके हैं । यहाँके प्राचीन मन्दिरोंका शिल्प अत्यन्त कलापूर्ण और मनोहर है। शिखरकी रूप पट्टिकाओं और रथिकाओंपर यक्ष-यक्षी, सुर-सुन्दरियोंकी मूर्तियां और मिथुन मूर्तियां अंकित हैं। - ग्यारसपुर-कलाके समृद्ध आगारोंमें ग्यारसपुरका मालादे मन्दिर और वज्रमठ अपना . विशिष्ट स्थान बनाये हुए हैं । ये मन्दिर ९-१०वीं शताब्दीमें निर्मित हुए थे। मालादे मन्दिरमें १४ तीर्थंकर मूर्तियां रखी हुई हैं। द्वारपर शान्तिनाथ तीर्थंकरकी यक्षी महामानसी बनी हुई है। शिखरको जंघा और रथिकाओंमें तीर्थंकर और यक्ष-यक्षियोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। बज्रमठमें ४ तीर्थंकर मूर्तियाँ विराजमान हैं। उसके प्रवेश-द्वारोंके सिरदलोंपर अर्हन्त मूर्तियाँ हैं। इसकी बाह्य भित्तियों और शिखरकी अलंकरण-पट्टिकाओंमें जैन यक्ष-यक्षियोंकी मूर्तियाँ हैं। अतः ये मन्दिर और मूर्तियाँ जैन हैं और ९-१०वीं शताब्दीके हैं। इसी कालकी एक मूर्ति बस्तीके जैन मन्दिर में है। खजुराहो-यहां एक ही अहातेमें ३२ जिनालय हैं। इसमें पार्श्वनाथ, आदिनाथ आदि कई जिनालय १०-११वीं शताब्दीके बने हुए हैं। इनकी अन्तः तथा बाह्य भित्तियोंपर तीर्थंकरमूर्तियां, बाहुबलीकी मूर्ति तथा पौराणिक कथानकोंसे सम्बन्धित दृश्य-जैसे राम और सीता, अशोक वाटिकामें हनुमान् आदि, तीर्थंकरोंके सेवक यक्ष-यक्षी, सुरसुन्दरियाँ विभिन्न आकर्षक मुद्राओंमें अंकित हैं। ये भी उपर्युक्त कालकी हैं । मन्दिर नं. १ में शान्तिनाथ जिनालयमें शान्तिनाथ भगवान्की १६ फुट ऊंची खड्गासन मूर्ति संवत् १०८५ ( ई. स. १०२८) की है। मन्दिर नं.८ में भगवान् चन्द्रप्रभकी मूर्ति १२वीं शताब्दीकी है। यहाँका घण्टई मन्दिर १०वीं शताब्दीका है । इन मन्दिरोंकी शिल्प-शैली और सज्जा अत्यन्त उत्कृष्ट कोटिकी है। इनकी भित्तियों, रथिकाओं और द्वारशाखाओंपर यक्षियोंकी बहुभुजी मूर्तियाँ हैं। दशभुजी चक्रेश्वरी, चतुर्भुजी लक्ष्मी, अम्बिका, पद्मावती, गजलक्ष्मी-गंगा-जमुना, सरस्वती एवं चतुर्भुजी त्रिमुख ब्रह्माणीको मूर्तियां बड़ी मनोज्ञ हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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