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भारतके दिगम्बर जन तीर्थ उज्जैन संग्रहालय। १३वीं शताब्दीके मूर्ति-लेख अहार, चूलगिरि, ऊन तथा इस प्रदेशके विभिन्न संग्रहालयोंमें मिले हैं। इसके पश्चात्कालके मूर्तिलेख तो विभिन्न तीर्थक्षेत्रों और मन्दिरोंकी अनेक मूर्तियोंकी पादपीठिकापर मिलते हैं।
सारांशतः मध्यप्रदेश जैन पुरातत्त्वको दृष्टिले अत्यन्त समृद्ध है। परिमाणको दृष्टिसे कोई अन्य प्रदेश जैन पुरातत्त्वके क्षेत्रमें मध्यप्रदेशके साथ समता नहीं कर सकता। यह इस प्रदेशका सौभाग्य है कि यहाँके वन-उपवन, पर्वत, उपत्यका, नदी, सरोवर, दुर्ग, वापिका सर्वत्र जैन पुरातत्त्वकी सामग्री प्रचुर संख्यामें बिखरी पड़ी है। और यह इस प्रदेशका दुर्भाग्य है कि यहाँके घरोंकी दीवालों, आँगन, सीढ़ियों और पाखानों तकमें जैन मूर्तियां लगी हुई मिलती हैं, धोबी जैन मूर्तियोंकी पीठपर कपड़े पछीटते हैं, अन्धभक्त तीर्थकर मूर्तियोंके आगे बलि देते हैं। यदि स्थानीय जैन समाज प्रयत्न करे अथवा पुरातत्त्व विभाग सक्रिय होकर कुछ कार्य करे तो कलाको यह विडम्बना और विनाश रुक सकता है।
संक्षेप में मध्यप्रदेशमें ११-१२वीं शताब्दी तक प्राप्त होनेवाले पुरातत्त्वकी तालिका दी जा रही है । इस पुरातत्त्वमें मन्दिर, मूर्तियाँ, अभिलेख, स्तम्भ आदि सम्मिलित हैं । यह तालिका पुरातत्त्वके छात्रों और शोधकर्ताओंके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
सिहौनिया-यहाँ नवीन जिनालयमें भगवान् शान्तिनाथकी लगभग १६ फुट उत्तुंग खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। इसके दोनों ओर कुन्थुनाथ और अरनाथकी ८-८ फुट ऊँची प्रतिमाएं हैं। इनका निर्माणकाल ११ वीं शताब्दी है। इस मन्दिरमें भूगर्भसे प्राप्त कुछ प्रतिमाएं रखी हैं तथा मन्दिरसे लगभग एक फलांग दूर एक पाषाण स्तम्भ है जो सम्भवतः मानस्तम्भ रहा होगा । इनका काल भी वही लगता है। ग्वालियर-दुर्गमें पाषाण शिलाओंमें उकेरी हुई लगभग १५०० मूर्तियाँ हैं। अधिकतम अवगाहनावाली मूर्तियोंमें खड्गासनमें आदिनाथ भगवान्की ५७ फुटकी और पद्मासनमें सुपार्श्वनाथ भगवान्की ३५ फुटकी है।
दुर्ग स्थित संग्रहालयमें पर्यकपर शयन करती हुई तीर्थंकर माता और उनके पाश्वमें लेटे हुए बाल तीर्थकरकी एक मूर्ति है। चार दिक्कुमारिकाएँ तीर्थकर माताकी सेवामें रत हैं। यह मूर्ति बड़ोहके गडरमल मन्दिरसे यहाँ लायी गयी है। यह जेन मन्दिर ९वीं शताब्दीका है। उक्त मूर्ति भी इसी कालकी है। संग्रहालयमें पाश्र्वनाथ, आदिनाथ आदिकी कई मूर्तियाँ ११-१२वीं शताब्दीकी हैं। यहाँ उदयगिरि गुहा मन्दिरसे लाया गया एक शिलालेख गुप्त संवत् १०६ ( सन् ४३५ ई.) का हैं जिसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथको प्रतिमाके निर्माण करानेका उल्लेख है। दो अन्य शिलालेख १३वीं शताब्दीके हैं।
सोनागिरि-पर्वतके ऊपर ७७ जिनालय, १३ छतरियाँ, ५ क्षेत्रपाल तथा तलहटीमें १७ जिनालय हैं। पर्वतके ऊपर मन्दिर नं. ४५, ५४, ५७, ७६ में ११-१२वीं शताब्दीकी कई मूर्तियाँ हैं।
बजरंगढ़-सेठ पाड़ाशाह द्वारा निर्मित शान्तिनाथ भगवान्की १५ फुट ऊंची प्रतिमा है। इसके दोनों पावोंमें कुन्थुनाथकी ११ फुट ऊँची प्रतिमाएं हैं। ये तीनों सं. १२३६ (ई. सन् ११७९) की हैं। इनके अतिरिक्त यहाँ विक्रम सं. १०७५, ११५५, १२२५, १२५० की भी कई प्रतिमाएं विद्यमान हैं।
चन्देरो-यहाँकी चौबीसी ( २४ तीर्थंकरोंकी ) मूर्तियाँ अत्यन्त विख्यात एवं भव्य हैं यहाँ कई मूर्तियाँ १०-११वीं शताब्दीकी हैं।