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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ २३ बना हुआ है जो सम्भवतः इन्हींके समकालीन हैं। इसी प्रकार इसके थोड़ी दूर सकरां गाँवमें भी एक प्राचीन मानस्तम्भ खड़ा हुआ है। अहार क्षेत्रपर दो मानस्तम्भ हैं जो १०वीं शताब्दीके हैं। नन्दीश्वर जिनालय और सहस्रकूट जिनालय भी जिनालय-शिल्पकी एक विशिष्ट विधा हैं। कोनी, पटनागंज, थूबौन, पनागर आदिमें अब भी ये मिलती हैं। अभिलेख . मध्यप्रदेशमें अभिलेखोंका बाहुल्य है । इन अभिलेखोंका विशेष महत्त्व है। इनसे इतिहासके अनावृत पृष्ठोंपर प्रकाश पड़ता है तथा शिल्पकलाके क्रमिक विकासकी जानकारी मिलती है। अभिलेख दो प्रकारके होते हैं-शिलालेख और प्रतिमालेख । मध्यप्रदेशमें उपलब्ध जैन शिला- . लेखोंमें सर्वप्राचीन लेख उदयगिरि (विदिशा ) के गुफा मन्दिरके हैं। यह वहाँकी गुफा नं. २० की एक भित्तिपर अंकित है। यह अभिलेख गुप्त संवत् १०६ ( ई. सन् ४२५ ) का है। उस समय कुमारगुप्त प्रथमका शासन था। इसी स्थानको एक मूर्तिकी चरण-चौकीपर रामगुप्तकालीन अभिलेख भी उपलब्ध हुआ है। ये ही दोनों लेख मध्यप्रदेशके जैन अभिलेखोंमें सर्वाधिक प्राचीन माने जाते हैं। इसके पश्चात् लगभग ५ शताब्दीका काल अन्धकार युग कहा जा सकता है। इस कालका कोई जैन अभिलेख इस प्रदेशमें प्राप्त नहीं हुआ। सम्भव है, इस कालके शिलालेख और मूर्तिलेख खण्डित हो गये हों। किन्तु निश्चित रूपसे कुछ कहा नहीं जा सकता कि इस लम्बे अन्तरालमें कोई जैन अभिलेख न मिलनेका क्या ऐतिहासिक कारण रहा है। ग्यारसपुरमें वज्रमठ जैन मन्दिरके निकट आठ खम्भे खड़े हुए हैं। उनमें से एक स्तम्भपर एक अभिलेख है जिसमें वि. सं. १०३९ में किसी भक्त द्वारा यहाँकी यात्रा करनेका उल्लेख किया गया है। खजुराहोके घण्टई मन्दिरमें दो लेख अंकित हैं जो वि. सं. १०११ और १०१२ के हैं। चूलगिरिके एक मन्दिरके सभामण्डपसें ४ शिलालेख उत्कीर्ण हैं। ये वि. सं. १११६, १२२३ और १५०८ के हैं। ग्वालियरके संग्रहालयमें वि. सं. १३१९ का भीमपुरका महत्त्वपूर्ण शिलालेख सुरक्षित है। इन्दौर संग्रहालयमें जैन मन्दिरके प्रवेशद्वारके शिरदलपर अंकित वि. सं. १३३२ का वह लेख सुरक्षित है जो पावागिरि ऊनसे यहां लाया गया था। प्रायः सभी जैन मूर्तियोंपर लेख मिलते हैं। लेख मूर्तियोंकी चरण-चौकीपर होते हैं। किन्तु अनेक मूर्तियाँ खण्डित कर दी गयी हैं। इससे लेख भी खण्डित होनेसे पढ़े नहीं जा सकते। कुछ मूर्तियोंके लेख अधिक प्राचीन होनेसे अस्पष्ट हो गये हैं। तुमैन, तेरही, नाचना कुठार, उछहरा, भूभरा आदि कुछ स्थान ऐसे हैं जहाँ मौर्य और गुप्तकालके लेख हिन्दू और बौद्ध कलाकृतियोंपर मिलते हैं। उन स्थानोंपर भग्न जैन मन्दिरों और मूर्तियोंके अवशेष प्रचुर परिमाणमें मिलते हैं, जिनके सम्बन्धमें अनुमान किया जाता है कि ये भी वहींकी हिन्दू या बौद्ध कलाकृतियोंके ही समकालीन होंगे, किन्तु दुख है कि इन स्थानोंके जैन अवशेषोंमें कोई लेख उपलब्ध नहीं हुआ। वर्तमानमें जो मूर्ति-लेख मिलते हैं, वे प्रायः ११वीं शताब्दीके या उसके पश्चात्कालीन हैं। ११वीं शताब्दीके मूर्तिलेख खजुराहोके शान्तिनाथ मन्दिरमें मूलनायक शान्तिनाथ तीर्थंकर तथा वहीं अहातेमें रखी हुई एक तीर्थंकर प्रतिमाके पादपीठपर अंकित है। इसके अतिरिक्त अहार, सोनागिरि, बजरंगढ़में इस शताब्दीके मूर्तिलेख अनेक स्थानोंपर उपलब्ध होते हैं, जैसे अहार, सोनागिरि, चूलगिरि, खण्डवा, पपौरा, खजुराहो, बजरंगढ़, ग्यारसपुर, गन्धर्वपुरी, बन्धा, आमनचार तथा रायपुर, जबलपुर, विक्रम विश्वविद्यालय संग्रहालय एवं जयसिंहपुरा जैन मन्दिर,
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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