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________________ १२ ____ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ व्यंकट विद्या सदनमें सुरक्षित हैं। इसमें ताम्रपत्र, शिलालेख, प्राचीन मूर्तियां, हस्तलिखित ग्रन्थ और शस्त्रास्त्रोंका अच्छा संग्रह है। इस संग्रहालयका बहुभाग जन सामग्रीसे युक्त है। जैन सामग्रीमें ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर तीर्थंकरकी अष्टप्रातिहार्य, यक्ष-यक्षी और परिकरयुक्त प्रतिमाओंके अतिरिक्त अम्बिका और पद्मावतीकी मूर्तियाँ, तोरण, चौबीसी, मानस्तम्भका शिरोभाग आदि प्राप्त होते हैं। यह सामग्री प्रायः उत्तरकालीन मानी जाती है अर्थात् १२वीं शताब्दीके बादकी है। ___ सतनासे रीवा जानेवाले मार्गमें दसवें मीलफ्र 'रामवन' नामक एक आश्रममें भी पुरातत्त्व सामग्री संग्रहीत है। अधिकांश सामग्री वाकाटक और गुप्तकालकी हैं। इसमें कुछ खण्डित और अखण्डित जैन प्रतिमाएं भी सुरक्षित हैं। यह सामग्री लखुरबाग और नचनासे लायी हुई है । जैन प्रतिमाओंमें पार्श्वनाथ, मल्लिनाथ, चौबीसी प्रतिमाएं हैं। पन्नामें प्राप्त एक महावीर प्रतिमा भी यहाँ सुरक्षित है जो गुप्तकालकी है। जसो तो जैन मूर्तियोंका घर है, जैसा कि ऊपर निवेदन किया जा चुका है। यहाँकी सामग्रीसे आज भी कई संग्रहालय सम्पन्न हैं। यहाँ जालपादेवीके मन्दिरके अहातेमें जैन पुरातत्त्वकी बहुतसी सामग्री संग्रहीत है । इसमें अधिकांश सामग्री तो विकृत की हुई है। कुछ जैन मूर्तियोंपर सिन्दूर भी पुता हुआ है। इन मूर्तियोंमें भगवान् ऋषभदेव, पार्श्वनाथ और महावीरकी प्रतिमाएँ पद्मासन और खड्गासन दोनों ही आसनों में मिलती हैं। यहाँके इन कलावशेषोंमें अम्बिकाकी एक असाधारण.प्रतिमा सुरक्षित है । आम्रवृक्षके मध्य भागपर नेमिनाथ तीर्थंकरको प्रतिमा है । अधोभागमें गोमेद यक्ष सहित अम्बिका विराजमान हैं। एक नग्न स्त्री वृक्ष-स्थाणु पर चढ़ती हुई दीख पड़ती है । निकट ही एक गुफा अंकित है। सम्भवतः यह दृश्य राजीमतिसे सम्बन्धित है जो नेमिनाथके निकट जा रही है। ___इस मन्दिरके निकटवाले मकानकी दीवालमें कई जैन मूर्तियां लगी हुई हैं। इसी प्रकार यहांके कुम्हड़ा मठ, राम मन्दिर, जलकुण्ड, तालाब, दुर्ग, अनेक निजी मकानों आदिमें भी जैन मूर्तियाँ मिलती हैं। लखुरबाग, नचना और उचहरा भी जैन कलावशेषोंके केन्द्र रहे हैं । यहाँके महत्त्वपूर्ण अवशेष कलकत्ताके संग्रहालयमें पहुंचा दिये गये हैं। किन्तु अब भी इन स्थानोंपर जैन पुरातत्त्व-सामग्री यत्र-तत्र बिखरी हुई पड़ी है। कुछ जैन मूर्तियाँ यहाँ खैरामाई या खैरदइयाके रूपमें पूजी जाती हैं। मैहर, पौंडी आदिमें और उनके निकटवर्ती स्थानोंपर भी जैन मूर्तियाँ मिली हैं। पौंड़ीसे उपलब्ध एक प्रतिमापर संवत् ११५७ का लेख भी अंकित है। इस मूर्तिके ऊपर ग्रामीण लोग हँसिया, खुरपी आदि औजार रगड़कर तेज करते थे। उससे यह लेख काफी अस्पष्ट हो गया है। _ विन्ध्यप्रदेशके तीर्थोंका जहां तक सम्बन्ध है, उनके मन्दिरों, मूर्तियों और अन्य पुरातत्त्व शिल्प सामग्रीके आनुमानिक निर्माण-कालका विभाजन शताब्दी क्रमसे हम इस प्रकार कर सकते हैं। ५वीं शताब्दीसे ८वीं शताब्दी तक तुमैन ( खनियाधानाके निकट ) में गुप्त सं. ११६ (सन् ४३५ ) का एक अभिलेख उपलब्ध हुआ है, जिसमें एक हिन्दू मन्दिरके निर्माणका उल्लेख है। अनुमान किया जाता है कि इसी कालमें यहां जैन मन्दिर और मूर्तियोंकी भी प्रतिष्ठा प्रारम्भ हो गयी होगी। ____९वीं-१०वीं शताब्दीकी मूर्तियां-खजुराहोके घण्टई मन्दिर और पार्श्वनाथ मन्दिरका निर्माण १०वीं शताब्दीमें हुआ था। अतः वहाँकी मूलनायक प्रतिमाओंका निर्माण-काल भी यही
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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