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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ३२७ पर तो आसपासके हजारों कृषक नर-नारी आते हैं और बड़ी श्रद्धा-भक्तिके साथ पैसे आदि चढ़ाते हैं। ___इस मन्दिरके साथ चमत्कारकी एक विचित्र किंवदन्ती जुड़ी हुई है। कहते हैं कोई यति इस मन्दिरको गुजरातके किसी स्थानसे अपने मन्त्रबलके द्वारा आकाशमार्गसे ले जा रहे थे। किसी कारणवश उन्हें बनैडियामें उतरना पड़ा। तबसे यह मन्दिर यहींपर स्थित है। इस मन्दिरकी नींव नहीं है । यह उड़ा हुआ मन्दिर कहलाता है। धर्मशाला - यहां परकोटेके अन्दर मन्दिरके निकट ही एक धर्मशाला है। कुल ३० कमरे हैं। धर्मशालामें बिजली है। जलके लिए कुएँ हैं, तालाब हैं। क्षेत्र तक बस जाती है । यहां कोई दुकान नहीं है। मेला क्षेत्रका वार्षिक मेला चैत्र सुदी १३ से १५ तक होता है। यहां उल्लेख योग्य एक धार्मिक मेला वि. सं. २४९४ में वेदी प्रतिष्ठाके अवसरपर हुआ था। इसमें हजारों व्यक्तियोंने भाग लिया था। व्यवस्था क्षेत्रकी व्यवस्था इस शताब्दीके पूर्वसे ही मारवाड़ी गोठ, शक्कर बाजार, इन्दौरके आधीन चली आ रही है। पहले मालवामें प्रति जैन घर पीछे आठ आने इस क्षेत्रके लिए लाग लगी हुई थी। प्रत्येक स्थानकी पंचायत अपने यहाँसे रुपया उगाकर मारवाड़ी गोठको भेज दिया करती थी। इससे क्षेत्र आर्थिक दृष्टिसे निश्चिन्त था। किन्तु अब यह परम्परा प्रायः समाप्त हो चुकी है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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