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________________ ३१० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ चेलनाका रूप बदलते-बदलते बेलना नाम पड़ गया। अपनी इसी मान्यताके बलपर ये लोग अब पवाको पावागिरि क्षेत्र कहने लगे हैं। इसमें सन्देह नहीं है कि पावा और पवा, चेलना और बेलना इनमें शब्दसाम्य है। किन्तु विचारणीय बात यह है कि जिस मूर्तिकी चरण-चौकीपर पवा शब्द उत्कीर्ण मिलता है, उससे लगता है कि संवत् २९९ ( ई. सन् २४२ ) में अथवा १२२९ ( ई. सन् १२४२ ) में भी इस क्षेत्रको पवा कहा जाता था, पावा नहीं। बेलना नदीके जो विभिन्न नाम मिलते हैं, जैसे बैलानाला, बैलाताल, बैलोना, बेलना, उन नामोंमें तो परस्पर साम्य है और बैलानालाका ही रूप बदलतेबदलते वेलना पड़ गया है, किन्तु चेलना या चलनाके साथ उनका कोई साम्य नहीं और विश्वासपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि चेलना अथवा चलनाका रूप बिगड़ते-बिगड़ते बेलना पड़ गया। इसके अतिरिक्त यह बात भी विचारणीय है कि १२वीं-१३वीं शताब्दीसे पूर्ववर्ती कोई लेख, मूर्ति अथवा मन्दिर यहाँ उपलब्ध नहीं, जिसमें पावाका स्पष्ट उल्लेख मिलता हो। इसलिए केवल सम्भावनाके बलपर इसे पावागिरि और सिद्धक्षेत्र मानना क्या उचित हो सकता है ? इसके लिए कुछ ठोस आधार खोजने होंगे। वर्तमान कल्पनाओंके सहारे अधिक दूर तक नहीं चला जा सकता। पावागिरि क्षेत्रपर उपलब्ध पुरातत्त्व सामग्री होल्कर राज्यके गजेटियरमें ऊन ग्रामके सम्बन्धमें विवरण प्रकाशित हुआ था, उसमें लिखा है-'यह एक छोटा-सा गाँव है। इसकी एकमात्र विशेषता प्राचीन जैन मन्दिरोंके भग्वावशेषोंमें निहित है । ये १२वीं शताब्दीके हैं। उनमें से एक मन्दिरसे धारके एक परमार राजाका एक लेख भी मिला है। प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता श्री राखालदास बनर्जीके मतानुसार खजुराहोके पश्चात् मध्यभारतमें ऊनके अलावा और कोई स्थान ऐसा नहीं है जहाँ इतने प्राचीन देवालय अब तक सुरक्षित अथवा अर्धरक्षित दशामें विद्यमान हों। प्रारम्भ में यहां पुजारीको पांच प्रतिमाएँ और एक चरण-युगल मिले थे। कुछ समय पश्चात् धर्मशालाके पीछे जमीन खोदते समय एक प्रतिमा और चरण निकले थे। इनके अतिरिक्त चौबारा डेरा नं. २ नामक जैन मन्दिरमें बारहवीं शताब्दीकी दो तीर्थकर मूर्तियां थीं जो इन्दौर नवरत्न-मन्दिर (पुरातत्त्व संग्रहालय ) में पहुंचा दी गयी हैं। मन्दिर-द्वारके सिरदलपर वि. सं. १३३२ का दो पंक्तियोंका एक लेख था। वह भी इन्दौर संग्रहालयमें सुरक्षित है। जो पांच मूर्तियां भूगर्भसे उत्खननके फलस्वरूप निकली थीं, उनका विवरण इस प्रकार है मूर्ति नं. १–मूर्ति खड्गासन, अवगाहना १ फुट १० इंच, दोनों ओर इन्द्र । ऊपरकी ओर दो देव तथा दो पद्मासन एवं एक खड्गासन मूर्तियाँ। मूर्ति नं.२-खड्गासन, अवगाहना १ फुट १० इंच । शेष पहली मूर्तिके समान । मूर्ति नं. ३-खड्गासन, अवगाहना १ फुट १० इंच। इधर-उधर दो चमरेन्द्र। ऊपर दो देव तथा दो तीर्थकर प्रतिमाएं, एक पद्मासन, दूसरी खड्गासन। मूर्ति नं. ४-खड्गासन, एक चमरवाहक । यह शिलाफलक लगभग डेढ़ फुटका है। ति न. ५-भगवान् महावीरकी २ फुट २ इंच अवगाहनावाली पद्मासन, श्याम वर्ण । इसकी चरण-चौकीपर लेख है जो इस प्रकार पढ़ा गया है. १. The Indore State Gagetteer, Vol. I, Text by L. C. Dhariwal.
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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