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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ विवादास्पद पावागिरि चलना नदी कौन-सी है, यह ज्ञात नहीं होता। अतः पावागिरिके विषयमें विवाद है। जिन्होंने ऊनके निकट पावागिरिको स्थिति मानी है, वे ऊनके निकट बहनेवाली चिरूढ़को हो चलना नदी मानते हैं। उनके मत से चेलनाका चेटक, चेटकका चिरट, चिरटका चिरूढ़ हो गया। ऊनके निकट पावागिरि माननेके लिए तर्क यह दिया जाता है "निर्वाण काण्डमें निमाड़ स्थित सिद्धक्षेत्रोंकी वन्दनाका क्रम इस प्रकार है-(१) रेवा नदीके दोनों तटोंसे मुक्त होनेवाले रावणके पुत्र और साढ़े पांच कोटि मुनियोंकी निर्वाण-स्थली। (२) रेवानदीके तटपर पश्चिम दिशामें सिद्धवरकूट क्षेत्र जहाँसे दो चक्रो, दस कामकुमार और साढ़े तीन करोड़ मुनियोंने मुक्ति-लाभ किया। (३) बड़वानी नगरके दक्षिणमें चूलगिरिके शिखरसे इन्द्रजीत और कुम्भकर्ण मुक्त हुए। (४) चलना नदीके तटपर पावागिरिक शिखरपर सुवर्णभद्र आदि चार मुनियोंको निर्वाण प्राप्त हुआ। . उपर्युक्त क्रममें सिद्धवरकूट, बडवानी, फिर पावागिरि है। इस क्रमसे यह संगति बैठायी गयो है कि ये तीनों तीर्थ निकटवर्ती हैं। इसलिए पावागिरि बड़वानी नगरके निकट होना चाहिए। इस स्थानके अतिरिक्त अन्य कोई स्थान नहीं है, जिसे पावागिरि क्षेत्र माना जा सके। ऊन के निकट प्राचीन मन्दिर और मूर्तियां मिली हैं जिनका काल ईसवी सन्की ११वीं-१२वीं शताब्दी तक है। वहाँ प्राचीन चरण-चिह्न भी उपलब्ध हुए हैं। सिद्धक्षेत्रोंपर चरण-चिह्न विराजमान करनेकी परम्परा रही है। इन सब तक संगत कारणोंसे ऊनके निकटवर्ती स्थानको पावागिरि सिद्धक्षेत्र मानना सुसंगत है।" ऊन को पावागिरि सिद्धक्षेत्र मानने में जो कारण ऊपर दिये हैं, कुछ विद्वान् इन कारणोंको विशेष महत्त्व नहीं देना चाहते। पुरातत्त्व सामग्री और चरण तो उन स्थानोंपर भी. प्राप्त हुए हैं, जो सिद्धक्षेत्र नहीं माने जाते हैं। इसी प्रकार निर्वाण-काण्डके क्रमिक वर्णनको गम्भीर कारण नहीं माना जा सकता। निर्वाण-काण्डमें क्रमका कोई ध्यान नहीं रखा गया। इसके अतिरिक्त इन कारणोंके विरुद्ध कई तर्क हैं। निर्वाण-काण्डकी कई प्राचीन प्रतियोंमें 'पावागिरिवरसिहरे' यह गाथा नहीं मिलती। लगता है, यह गाथा विवादास्पद रही है। कुछ लोग इसे निर्वाण-काण्डकी मल गाथा मानते हैं और कुछ लोग इसे प्रक्षिप्त मानते हैं। यह बात भी आश्चर्यजनक है कि वर्तमान में ऊनमें उपलब्ध किसी शिलालेख, मन्दिर या मूर्तिपर पावागिरिका नाम नहीं मिलता और न यहाँ चेलना अथवा चलना नदी ही है। यहाँ जो नदी वर्तमानमें है उसे लोग चिरूढ़ कहते हैं और सरकारी कागजातोंमें इस नदीका नाम चन्देरी पाया जाता है। चेलनाका चिरूढ़ या चन्देरीके रूपमें कैसे अपभ्रंश हो गया, इसकी खोज अब तक नहीं हो सकी है। . एक बात और भी ध्यान देने योग्य है। मालवनरेश बल्लालने यहाँ ९९ मन्दिरोंका निर्माण कराया था। उपर्युक्त किंवदन्तीके अनुसार उसने इन मन्दिरोंका निर्माण व्याधिसे मुक्त होनेपर और दबा हुआ धन प्राप्त होनेपर उससे ही कराया था। यह किंवदन्ती निराधार है, यदि यह भी मान लिया जाये, तब भी उसने यहाँपर तीर्थक्षेत्र होनेके कारण इन मन्दिरोंका निर्माण कराया था, यह बात विश्वासपूर्वक कहना कठिन है। इन ९९ मन्दिरोंमें कितने जैन मन्दिर थे और कितने वैष्णव मन्दिर, यह उल्लेख किसी शिलालेख आदिमें देखने में नहीं आया। किन्तु वर्तमानमें जो ११ मन्दिर बचे हए मिलते हैं, उनमें ८ वैष्णव मन्दिर हैं और ३ जैन मन्दिर। इससे यह अनुमान लगाना अनुपयुक्त न होगा कि वैष्णव मन्दिरोंकी संख्या जैन मन्दिरोंकी संख्यासे अधिक रही
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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