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मध्यप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थं
पार्श्वनाथ मूर्तियाँ हैं । ऐसी मूर्तियाँ इस प्रान्तमें अन्यत्र नहीं हैं ।
जिस प्रकार चूलगिरिकी ८४ फुट उत्तुंग आदिनाथ प्रतिमा और ग्वालियरकी ३५ फुट उत्तुंग पद्मासन सुपार्श्वनाथ प्रतिमाकी समानता अवगाहनाकी दृष्टिसे भारतकी अन्य कोई प्रतिमा नहीं कर सकती, इसी प्रकार चन्देरीकी चौबीसी ( अर्थात् चौबीस तीर्थंकरोंकी प्रतिमाओं) की समता कोई दूसरी चौबीसी नहीं कर सकती । चन्देरीकी ये २४ तीर्थंकर मूर्तियाँ अत्यन्त सुन्दर हैं, सभी मूर्तियों का वर्णं वही है जो शास्त्रोंमें तीर्थंकरोंका बताया गया है। ये मूर्तियाँ अलग-अलग गर्भगृहों में विराजमान हैं । मूर्तियोंकी चौबीसीके समान मन्दिरोंकी चौबीसी पपौरामें विद्यमान है । वह भी अपने में अनुपम है ।
ऐतिहासिक कालक्रमकी दृष्टिसे इस प्रदेशकी तीर्थंकर मूर्तियोंपर विचार करनेपर हमें कुछ रोचक निष्कर्ष प्राप्त होते हैं । इस प्रदेशमें जो तीर्थंकर मूर्तियां उपलब्ध हैं, उनमें गुप्तकालसे प्राचीन कोई मूर्ति नहीं है । अर्थात् यहाँ उपलब्ध तीर्थंकर मूर्तियोंका प्राचीनतम काल गुप्तकाल है । मध्यप्रदेशपर मौर्य वंश, शुंग वंश, नाग वंश, शक क्षत्रप, परिव्राजक, उच्चकल्प आदि राजवंशोंका शासन रहा । इन कालों से सम्बन्धित कुछ सिक्के भी प्राप्त हुए हैं । त्रिपुरीमें ईसासे तीन शताब्दी पूर्वके पाये हुए सिक्कोंपर रेवाकी मूर्ति अंकित मिलती है । इससे त्रिपुरीका इतिहास मौर्यं युग तक पहुँच जाता है। इसी प्रकार कारीतलाईके निकटकी गुफाओंमें २००० वर्ष प्राचीन शिलालेख मिले हैं। उनकी लिपि ब्राह्मी है । गुप्त संवत् १७४ (ई. स. ४९३-९४) का एक ताम्रपत्र भी कारीतलाईमें मिला था । इस ताम्रपत्र में उच्चकल्प ( उचहरा ) के महाराज जयनाथ द्वारा नागदेव सन्तक (नागौद) में स्थित छन्दापल्लिका नामक गाँवके दानका उल्लेख है । यहाँ यह सब देनेका उद्देश्य यह है कि मध्यप्रदेश के अनेक स्थानोंका सम्बन्ध प्राचीन इतिहास - कालसे रहा है । किन्तु गुप्तकाल से पूर्वकी कोई जैन मूर्ति इस प्रदेशमें उपलब्ध नहीं हुई । श्वेताम्बर साहित्यिक साक्ष्योंके अनुसार भगवान् महावीरकी एक मूर्ति उनके जीवन कालमें बन गयी थी । इस सम्बन्ध में यह कथा मिलती है—
अवन्तिके चण्डप्रद्योतने सिन्धु सौवीर नरेश उदयनकी एक सुन्दर दासीका अपहरण कर लिया । दासी अपने साथ जीवन्त स्वामीकी प्रतिमा भी ले गयी थी । उदयनको जब इस काण्डका पता चला तो उसने प्रद्योतपर आक्रमण कर दिया । प्रतिमा मिलीं नहीं, दासी बचकर भाग निकली। उदयनने चण्डप्रद्योतको गिरफ्तार कर लिया और उसके सिरपर एक स्वर्ण-पट्टिका बाँध दी, जिसपर लिखा था-मम दासीपतिः । मार्ग में पर्युषण पर्वके दिन प्रारम्भ हो गये । उदयनने पर्युषणके उपलक्ष्यमें उपवास किया और रसोइयासे कह दिया- "तुम चण्डप्रद्योत नरेशसे पूछ लो, वे क्या खायेंगे। उनकी इच्छानुकूल भोजन बना देना ।" रसोइयाने चण्डप्रद्योत से पूछा । चण्डप्रद्योतको सन्देह हुआ कि आज मेरे भोजनमें विष डालकर मुझे मार डालनेका उपक्रम किया जा रहा है । किन्तु जब उसे ज्ञात हुआ कि पर्युषण पर्वके कारण उदयन उपवास कर रहा है तो उसने भी उपवास करनेकी अपनी इच्छा प्रकट की । यह बात रसोइयाने उदयनसे कह दी । उदयनको यह जानकर अत्यन्त दुःख हुआ कि मैंने अपने एक साधर्मी बन्धुका घोर अपमान किया है । वह तत्काल चण्डप्रद्योतके निकट पहुँचा और अपने कृत अपराधके लिए क्षमा-याचना की तथा चण्डप्रद्योतको आदर सहित मुक्त कर दिया । चण्डप्रद्योतने मुक्त होकर विदिशामें जीवन्त स्वामीकी उस प्रतिमाको विराजमान कर दिया ।
१. भरतेश्वर बाहुबली वृत्ति, आवश्यकचूणि, निशीथचूर्ण, वसुदेव हिण्डी ।
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