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________________ २९२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ - इसके पश्चात् मुस्लिम-कालमें और बादमें भी बहुत समय तक इस मूर्तिकी उपेक्षा रही। मतिके ऊपर धप और वर्षासे बचावके लिए न छतरी थी और न प्रक्षाल आदि करनेके लिए सीढ़ी। बुरबुरे पाषाणकी होनेके कारण यह प्रकृतिके असह्य प्रहारोंके कारण खिरती भी रहती थी। वर्षाका पानी पहाड़के भीतर प्रवेश करके मूर्तिके आसपाससे निकलता रहता था। अतः भय होने लगा कि कहीं यह विशाल प्रतिमा नष्ट न हो जाये । तब दिगम्बर जैन समाजने इसकी सुरक्षाकी ओर ध्यान देना आरम्भ किया, कई प्रसिद्ध इंजीनियरों और पुरातत्त्व विभागके अधिकारियोंसे परामर्श किया गया और माघ सुदी १ वीर सं. २४४९ ( वि. सं. १९७९ ) को जीर्णोद्धारका मुहूर्त किया गया। इसमें ५९००० रुपये व्यय हुए। इसके फलस्वरूप मूर्तिके दोनों ओर गैलरी बना दी गयी, जहां खड़े होकर आसानीसे अभिषेक किया जा सके। धूप और वर्षासे बचावके लिए मूर्तिके ऊपर ४० फुट लम्बे १॥ फुट चौड़े गर्टर डालकर ऊपर बाम्बेके पत्रोंकी छत बनवा दी गयी है। इस प्रकार इस मूर्तिको सुरक्षा की गयी है । मूर्तिके ऊपर पालिश भी करा दी गयी है। इससे मूर्ति सौम्य और आकर्षक हो गयी है। किन्तु मूर्तिकी प्राचीनता इसके कारण दब गयी लगती है। बड़वानीके मन्दिर और संस्थाएं बड़वानीमें एक विशाल दिगम्बर जैन मन्दिर है। मन्दिरमें मूलनायक भगवान् नेमिनाथकी भव्य प्रतिमा है, जिसको प्रतिष्ठा संवत् १३८० में हुई थी। इसके पादपीठपर इस विषयक मूर्ति-लेख भी है। चूलगिरि क्षेत्रकी ४ धर्मशालाएं भी यहाँपर हैं । धर्मशालाओंके निकट ही श्री हरसुखराय दि. जैन छात्रावास तथा श्री महावीर चैत्यालय है। जैन धर्मशाला और जैन छात्रावास जिस जमीनपर बने हुए हैं, वह जमीन ३१ जुलाई १८६७ को तत्कालीन बड़वानी नरेश महाराणा जसवन्तसिंहजीने दिगम्बर जैनोंको भेंटस्वरूप दी थी। यह जमीन राणापुरा मुहल्लेकी खाईके पश्चिमकी ओर उत्तर-पश्चिममें ५०० हाथ तथा पूर्व-पश्चिममें ५०० हाथ लम्बी-चौड़ी और चौरस है। जब इसके आसपास आबादी बढ़ गयी और जमीनका मूल्य बढ़ गया, तब २८-७-१९१६ को इस जमीनके बदले जैन धर्मशालाके पीछेकी खराब जमीन देनेके लिए तत्कालीन बड़वानी रियासतके दरबार ऑफिसकी ओरसे आदेश जारी हुआ। जिसके विरोधमें सारे भारतके दिगम्बर जैन समाजमें आन्दोलन हुआ। फलतः नरेशको आदेश वापस लेना पड़ा। इसके बाद वहाँके दरबार और म्युनिसिपैलिटीने इस भूमिपर जैनोंके कानूनी अधिकारको मान्य करनेका लिखित आश्वासन दिया। वहांको नगरपालिकाने प्रस्ताव पास करके जैन समाजको छात्रावास और धर्मशाला बनानेकी आज्ञा दी है। इस प्रकार इस भूमिपर जैन समाजका वैध अधिकार है। उसने इसका बहुत विकास किया है। इस भूमिपर धर्मशाला, छात्रावास और मन्दिर जन-कल्याणके लिए बनाये गये हैं। क्षेत्र-दर्शन बड़वानीसे पहाड़ी मार्ग द्वारा चूलगिरि क्षेत्र ७ कि. मी. है। क्षेत्र तक पक्की सड़क है। इस सड़कको बनवानेके लिए दिगम्बर जैन समाजने तत्कालीन दरबारको २००० रुपये प्रदान किये थे। सड़कका नाम बावनगजा रोड है । बसें धर्मशाला तक नियमित रूपसे चलती हैं। तलहटीकी धर्मशालाओंके पास सेठ रोडमल मेघराज सुसारीकी ओरसे दो गुफाएं बनी हुई हैं। धर्मशालासे चलकर प्रायः २ फागपर एक छोटा-सा मन्दिर मिलता है। यह नेमिनाथ मन्दिर है। इसमें कृष्ण पाषाणको १ फुट २ इंच ऊँची भगवान् नेमिनाथकी पद्मासन प्रतिमा
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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