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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ किंवदन्तियां किन्हीं व्यक्तियोंसे सम्बन्धित हैं, जिनकी मनोकामना वहां पूजा-पाठ करनेसे पूर्ण हो गयी । किन्तु कुछ किंवदन्तियां अवश्य ही ऐतिहासिक महत्त्वकी हैं । जैसे- .
-महमूद गजनवी (अथवा मालवाका कोई सुलतान ) अपनी विशाल वाहिनीको लेकर भारतके विभिन्न प्रान्तोंको रौंदता, जनताको लूटता और मन्दिर-मूर्तियोंको तोड़ता हुआ मक्सी आया और गांवके बाहर एक उद्यानमें ठहर गया। उसकी योजना मन्दिर और मूर्तियोंको प्रातःकाल होनेपर तोड़नेकी थी। किन्तु रातमें वह ऐसा बीमार हो गया कि उसे पलंगसे उठना भी कठिन हो गया। उसे अन्तःप्रेरणा हुई कि यह मक्सीके पार्श्वनाथका चमत्कार है। सुबह होते ही उसने फौजमें आदेश प्रचारित किया कि कोई इस मन्दिरको हाथ न लगावे। वह स्वयं मन्दिरमें गया और पार्श्वनाथको नमस्कार किया तथा इस घटनाकी स्मृतिस्वरूप मन्दिरके मुख्य द्वारपर पांच कंगूरोंका निशान बनानेका आदेश दिया । वे निशान अब तक वहां मौजूद हैं । इन निशानोंको देखकर बादमें भी किसीने इस मन्दिरको हाथ नहीं लगाया।
-कुण्डलपुर क्षेत्रपर जब मुस्लिम बादशाहने आक्रमण करके मूर्तियोंको तोड़ना चाहा और हथौड़ा चलाया तो मूर्तिमें से दूधकी धार बह निकली और मधुमक्खियोंने आकर शाही फौजपर धावा बोल दिया, जिनसे सारी फौजको वहाँसे भागना पड़ा। इसी प्रकार यहां आकर महाराज छत्रसालकी मनोकामना पूर्ण हो गयी और उन्हें उनका राज्य पुनः मिल गया।
-बनैडियाके मन्दिरके सम्बन्धमें किंवदन्ती है कि एक भटारक गजरातसे एक मन्दिरको आकाश-मार्ग द्वारा पूर्व दिशामें किसी स्थानपर स्थापित करनेके लिए ले जा रहे थे। इतने में प्रातःकाल हो गया और मन्दिर जमीनपर आ लगा। इसीलिए यह नींवसे शिखर तक खण्डित है। बादमें इसे जोड़-तोड़कर ठीक किया गया।
इस प्रदेशके अतिशय क्षेत्रोंके नाम इस प्रकार हैं
बजरंगढ़, थूबौन, चन्देरी, बहुरीबन्द, सिहोनिया, पनागर, पटनागंज, बन्धा, अहार, गोलाकोट, पचराई, पपौरा, कुण्डलपुर, मनहरदेव, कोनी, तालनपुर, मक्सी, पार्श्वनाथ, बनैड़िया, बीना-बारहा, गुरीलागिरि, बूढ़ी चन्देरी, खन्दार, लखनादौन, मड़िया। कलाक्षेत्र
___ इस प्रदेशमें ऐसे स्थानोंकी कमी नहीं है जो न सिद्धक्षेत्र हैं, न अतिशय-क्षेत्र, किन्तु फिर भी जो कला, पुरातत्त्व और इतिहासकी दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण हैं और तीर्थक्षेत्र माने जाते हैं। इससे ज्ञात होता है कि जैन समाज अपनी कला और इतिहासको धरोहरको उतना ही अधिक महत्त्व देती है जितना अन्य तीर्थों और मन्दिरोंको। इसका प्रमाण यह है कि इस प्रदेशमें जिन स्थानोंपर जैन पुरातत्त्व अधिक संख्यामें मिला है, ऐसे कई स्थानोंपर जैन समाजने मूर्तियोंका संग्रह एक स्थानपर कर लिया है। जैसे अहार, पपौरा, थूबौन, सिहौनिया, पावागिरि, चूलगिरि, द्रोणगिरि, बहुरीबन्द, सोनागिरि, खजुराहो, विदिशा, बीना-बारहा, गुरीलागिरि, उज्जयिनी । इनमें अहार, उज्जयिनी और सोनागिरिमें तो व्यवस्थित जैन संग्रहालय बन चुके हैं। शेष स्थानोंपर अभी संग्रहालय तो नहीं बन पाये, किन्तु संग्रहालय बनानेकी योजना चल रही है।
ऐसे पुरातात्त्विक महत्त्वके स्थान भी, जो सिद्धक्षेत्र या अतिशय-क्षेत्र नहीं हैं, तीर्थक्षेत्र माने जाते हैं। इन्हें कलातीर्थ कहा जा सकता है। ऐसे स्थानोंमें ग्वालियर, अजयगढ़, खजुराहो, गन्धर्वपुरी, ग्यारसपुर, उदयगिरि, कारीतलाई, पतियानदाई, पनिहार-बरई, त्रिपुरी, वदनावर, उदयपुर, पठारी, बड़ोह आदि हैं।