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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ पुरातत्त्व सामग्री ___एक बार एक किसानको दिनांक १४-६-१९५० को हल जोतते हुए श्वेत पाषाणको ५८ जैन मूर्तियां मिलीं। प्रायः सभी मूर्तियां खण्डित हैं। इन मूर्तियोंके सम्बन्धमें ज्ञातव्य-यथा परिचय, प्रतिष्ठाकाल, मन्दिरका स्थान और नाम और उनका विनाश आदि यहां दिया जा रहा है। यह सम्पूर्ण जानकारी मूर्ति-लेखोंसे संकलित की जा सकती है। ये मूर्तियां जैन संग्रहालय उज्जैन या स्थानीय जैन मन्दिरमें सुरक्षित हैं। मूर्तियोंका परिचय-(१) तीर्थंकर मूर्ति, आसन और छत्र सहित अवगाहना ३ फुट १ इंच है। हथेलियों और पैरोंपर कमल तथा छातीपर श्रीवत्स अंकित है। पादपीठपर सिंहका लांछन बना हुआ है । अतः यह प्रतिमा अन्तिम तीर्थंकर महावीरकी है। (२) तीन तीर्थंकर मूर्तियां, जो पद्मासन मुद्रामें अवस्थित हैं, वे सभी २ फुट ऊंची हैं। एकके पादपीठपर वृषभ लांछन है, अतः वह ऋषभदेवकी मूर्ति है। दूसरीके आसनपर मगरका चिह्न बना हुआ है, अतः वह पुष्पदन्त भगवान्की मूर्ति है। तीसरी मूर्तिकी चरण-चौकी खण्डित है, अतः चिह्न न होनेके कारण यह कहना कठिन है कि यह मूर्ति किस तीर्थकरकी है। (३) यह १३ मूर्तियोंका समूह है । मूर्तियोंके अधोभाग तो आसनके साथ हैं किन्तु उपरिमभाग नदारद हैं। कोई मूर्ति गरदनसे खण्डित है, कोई छाती से। पांचं मूर्तियोंकी चरण-चौकीपर कमल, वृषभ, कलश, मगर और बन्दरके लांछन अंकित हैं। अतः ये क्रमशः पद्मप्रभ, ऋषभदेव, मल्लिनाथ, पुष्पदन्त और अभिनन्दननाथकी मूर्तियाँ हैं। (४) एक शिला-फलकपर तीर्थकर माताके १६ मंगल स्वप्न अंकित हैं । स्वप्नोंकी १६ संख्यासे ज्ञात होता है कि ये मूर्तियाँ और मन्दिर दिगम्बर परम्परासे सम्बन्धित थे क्योंकि श्वेताम्बर परम्परामें तीर्थंकर-माताको १४ स्वप्न आनेकी मान्यता है। इनके अतिरिक्त शेष सभी प्रतिमाएं खण्डित हैं अर्थात् सर्वांग सम्पूर्ण नहीं हैं । काल-निर्णय ___ मूर्तियोंकी सभी चरण-चौकियां अभिलिखित हैं। किसी अभिलेखमें ३ पंक्तियाँ हैं और किसीमें ४ पंक्तियाँ हैं। कुछ मूर्तियोंकी चरण-चौकीपर वि. संवत् १३०८ की माघ शुक्ला ९ रविवार यह प्रतिष्ठा-काल दिया है तथा प्रतिष्ठाचार्यका नाम आचार्य कल्याणकीर्ति दिया है। लगता है, इन सभी मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा एक ही प्रतिष्ठा महोत्सवमें सम्पन्न हुई थी। सम्भवतः आचार्य कल्याणकीर्ति उज्जयिनीके भट्टारकपीठके भट्टारक थे। कुछ मूर्तियोंके अभिलेख इस प्रकार हैं'संवत् १२१९ ज्येष्ठ सुदी ५ बुधे आचार्य कुमारसेन चन्द्रकीर्ति वर्धमान पुरान्वये।' . चतुर्भुजनाथके चबूतरेपर जड़ी जैन प्रतिमाके नीचे इस प्रकार लेख है 'संवत् १२२८ वर्षे फाल्गुन सुदि १श्रीमाथुरसंघे पंडिताचार्य श्री धर्मकीर्ति तस्य शिष्य आचार्य ललितकीर्ति अगले जैन मन्दिरमें एक प्रतिमापर लेख इस भांति है 'संवत् १२३४ वर्षे माघ सुदि ५ बुधे श्रीमन्माथुरसंघे पंडिताचार्य धर्मकीर्ति शिष्य ललितकोति वर्धमानपुरान्वये सी. प्रामदेव भार्या प्राहिणी सुत राणूसाः दिगमसाः का साः जादंड साः राणू भार्या भाणिक सुत महण किजकुले बाल साः महुण भार्या रोहिणी प्रणमति नित्यं ।' ..
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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