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________________ प्राक्कथन २१ अर्थात् हे देव ! स्तुति कर चुकनेपर मैं आपसे कोई वरदान नहीं मांगता। मांगूं क्या, आप तो वीतराग हैं। और मांगें भी क्यों ? कोई समझदार व्यक्ति छायावाले पेड़के नीचे बैठकर पेड़से छाया थोड़े ही मांगता है । वह तो स्वयं बिना मांगे ही मिल जाती है। ऐसे ही भगवान्की शरणमें जाकर उनसे किसी बातको कामना क्या करना । वहां जाकर सभी कामनाओं की पूर्ति स्वतः हो जाती है। तीर्थ-ग्रन्थकी परिकल्पना भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी बम्बईकी बहुत समयसे इच्छा और योजना थी कि समस्त दिगम्बर जैन तीर्थों का प्रामाणिक परिचय एवं इतिहास तैयार कराया जाये। सन् १९५७-५८ में तीर्थक्षेत्र कमेटीके सहयोगसे मैंने लगभग पांच सौ पृष्ठकी सामग्री तैयार भी की थी और समय-समयपर उसे तीर्थ-क्षेत्र कमेटी के कार्यालयमें भेजता भी रहता था। किन्तु उस समय उस सामग्रीका कुछ उपयोग नहीं हो सका। सन् १९७० में भगवान् महावीरके २५००वें निर्वाण महोत्सवके उपलक्ष्यमें भारतवर्षके सम्पूर्ण दिगम्बर जैन तीर्थोके इतिहास. परम्परा और परिचय सम्बन्धी ग्रन्थके निर्माणका पुनः निश्चय किया गया। यह भी निर्णय हुआ कि यह ग्रन्थ भारतीय ज्ञानपीठके तत्त्वावधान में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बईकी ओरसे प्रकाशित किया जाये। भगवान महावीरके २५००वें निर्वाण महोत्सवकी अखिल भारतीय दिगम्बर जैन समितिके मान्य अध्यक्ष श्रीमान साह शान्तिप्रसादजीने, जो तीर्थक्षेत्र कमेटीके भी तत्कालीन अध्यक्ष थे, मुझे इस ग्रन्थके लेखन-कार्यका दायित्व लेने के लिए प्रेरित किया और मैंने भी उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। प्रस्तुत भाग ३ की संयोजना प्रस्तुत भाग ३ मध्यप्रदेशके तीर्थक्षेत्रोंसे सम्बन्धित है। इसकी रूपरेखा और सामग्रीकी संयोजना निम्नप्रकार की गयी है(अ) सुविधाके लिए मध्यप्रदेश निम्नलिखित प्राचीन जनपदोंमें विभाजित किया गया है (१) चेदि जनपद, (२) सुकोशल जनपद, (३) दशार्ण-विदर्भ जनपद और (४) मालव-अवन्ती जनपद। (आ) इन जनपदोंमें मध्यप्रदेशके जैन तीर्थों का विभाजन इस प्रकार किया गया है (१) चेदि जनपद सिहौनिया, ग्वालियर, मनहरदेव, सोनागिरि, पनिहार-बरई, खनियाधाना, गोलाकोट, पचराई, बजरंगढ़, थूबीन, चन्देरी, खन्दार, गुरीलागिरि, बूढ़ी-चन्देरी, आमनचार, भियादांत, बीठला, भामोन, पपौरा, अहार, बन्धा, खजुराहो, द्रोणगिरि, रेशन्दीगिरि, पजनारी, बीना-बारहा, पटनागंज, अजयगढ़, कारीतलाई और पतियानदाई। (२) सुकोशल जनपद कुण्डलपुर, लखनादौन, मढ़िया, त्रिपुरी, बरहठा, कोनी, पनागर और बहोरीबन्द । (३) दशार्ण-विदर्भ जनपद उदयगिरि, पठारी, उदयपुर और ग्यारसपुर । (४) मालव-अवन्ती जनपद मक्सी पार्श्वनाथ, उज्जयिनी, बदनावर, गन्धर्वपुरी, चूलगिरि, तालनपुर, पावागिरि, सिद्धवरकूट, बनड़िया।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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