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________________ भारतके दिगम्बर जैन तोयं यदि शास्त्र-प्रवचन, तत्त्व-चर्चा, प्रभु-पूजन, कीर्तन, सामायिक प्रतिक्रमण या विधान प्रतिष्ठोत्सव आदि धार्मिक प्रसंग हों तो जन-संसर्ग अनर्थका कारण नहीं है, क्योंकि वहीं सभीका एक ही उद्देश्य होता है और वह है - धर्म - साधना । किन्तु जहाँ जनसमूहका उद्देश्य धर्म-साधना न होकर सांसारिक प्रयोजन हो, यहाँ जन-संसर्ग संसार-परम्पराका ही कारण होता है । ३० तीर्थ क्षेत्रों पर जो जनसमूह एकत्रित होता है, उसका उद्देश्य धर्म साधन होता है । यदि उस समूहमें कुछ तत्त्व ऐसे हों जो सांसारिक चर्चाओं और अशुभ रागवर्द्धक कार्योंमें रस लेते हों तो तीर्थोपर जाकर ऐसे तत्त्वोंके सम्पर्कसे यथासम्भव बचनेका प्रयत्न करना चाहिए तथा अपने चित्तको शान्ति और शुद्धि बढ़ानेका ही उपाय करना चाहिए । यही आन्तरिक शुद्धि कहलाती है । शुचिता का प्रयोजन बाहरी शुद्धि है। तीर्थक्षेत्रोंपर जाकर गन्दगी नहीं करनी चाहिए। मल`मूत्र यथास्थान ही करना चाहिए। बच्चों को भी यथास्थान ही बैठाना चाहिए। दीवालोंपर अश्लील वाक्य नहीं लिखने चाहिए। कूड़ा, राख यथास्थान डालना चाहिए। रसोई यथास्थान करनी चाहिए। सारांश यह है कि तीर्थोंपर बाहरी सफाईका विशेष ध्यान रखना चाहिए। . स्त्रियोंको एक बातका विशेष ध्यान रखना चाहिए । मासिक धर्मके समय उन्हें मन्दिर, धर्म सभा, शास्त्र - प्रवचन, प्रतिष्ठा मण्डप आदिमें नहीं जाना चाहिए। कई बार इससे बड़े अनर्थ और उपद्रव हो जाते हैं । जब तीर्थ क्षेत्र के दर्शनके लिए जायें, तब स्वच्छ धुला हुआ ( सफेद या केशरिया ) धोती- दुपट्टा पहनकर और सामग्री लेकर जाना चाहिए। जहाँ तक हो, पूजनकी सामग्री घरसे ले जाना चाहिए। यदि मन्दिर • की सामग्री लें तो उसकी न्यौछावर अवश्य दे देनी चाहिए । जहाँसे मन्दिरका शिखर या मन्दिर दिखाई देने लगे, वहींसे 'दृष्टाष्टक' अथवा कोई स्तोत्र बोलते जाना चाहिए। क्षेत्रके ऊपर यात्रा करते समय या तो स्तोत्र पढ़ते जाना चाहिए अथवा अन्य लोगोंके साथ धर्म-वार्ता और धर्म चर्चा करते जाना चाहिए । क्षेत्रपर और मन्दिर में विनयका पूरा ध्यान रखना चाहिए। सामग्री यथास्थान सावधानीपूर्वक चढ़ानी चाहिए। उसे जमीन में, पैरोंमें नहीं गिरानी चाहिए। गन्धोदक भूमिपर न गिरे, इसका ध्यान रखना आवश्यक है । गन्धोदक कटि भागसे नीचे नहीं लगाना चाहिए। पूजनके समय सिरको ढकना और केशरका तिलक लगाना आवश्यक है । जिस तीर्थपर जायें और जिस मूर्ति के दर्शन करें, उसके बारेमें पहले जानकारी कर लेना जरूरी है । इससे दर्शनों में मन लगता है और मनमें प्रेरणा और उल्लास जागृत होता है । तीर्थ-यात्रा के समय चमड़ेकी कोई वस्तु नहीं ले जानी चाहिए। जैसे— सूटकेस, बिस्तरबन्द, जूते, बैल्ट, घड़ीका फीता, पर्स आदि । अन्तमें एक निवेदन और है । भगवान्‌ के समक्ष जाकर कोई मनौती नहीं मनानी चाहिए, कोई कामना लेकर नहीं जाना चाहिए । निष्काम भक्ति सभी संकटोंको दूर करती है । स्मरण रखना चाहिए कि भगवान्से सांसारिक प्रयोजन के लिए कामना भक्ति नहीं, निदान होता है । भक्ति निष्काम होती है, निदान सकाम होता है । निदान मिध्यात्व कहलाता है और मिथ्यात्व संसार और दुखका मूल है । विषापहार स्तोत्र में कवि धनंजयने भगवान्‌ के समक्ष कामना प्रकट करनेवालोंको आँखोंमें उँगली डालकर उन्हें जगाते हुए कितने सुन्दर शब्दोंमें कहा है इति स्तुतिं देव विधाय दैन्याद् वरं न याचे त्वमुपेक्षकोऽसि । छायातरुं संश्रयतः स्वतः स्यात् कश्छायया याचितयात्मलाभः ॥
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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