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________________ १५८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ १५४९ । यह मन्दिर सबसे प्राचीन है। प्रतिमा अत्यन्त मनोज्ञ है। लोग इसे ही बड़े बाबाके नामसे पुकारते हैं और यहींपर विशेष रूपसे पूजनादि करते हैं। २०. सुपाश्वनाथ मन्दिर-कृष्णवर्ण, पद्मासन, २ फुट २ इंच ऊंची प्रतिमा। वि. सं. १९०७ फागुन वदी १२ शुक्रवारको प्रतिष्ठित । पादपीठपर स्वस्तिक चिह्न उलटा है। २१. मेरु मन्दिर-३ कटनीका मेरु बना हुआ है। १ फुट १० इंच ऊँची श्वेतवर्ण पाषाणकी प्रतिमा है। प्रतिमा भगवान् ऋषभदेवकी है। यह देशी पाषाणकी खड्गासन है। प्रतिमाके सिरके पीछे भामण्डल और सिरके ऊपर छत्रत्रयी है। प्रतिमाके सिरपर जटाएं हैं जो कन्धेपर लहरा रही हैं। सिरके दोनों पाश्ॉमें गन्धर्व पुष्पवर्षा कर रहे हैं। हाथीकी पीठपर इन्द्र बैठे हुए हैं । त्रिभंग मुद्रामें ऋषभदेवकी सेवामें चमरेन्द्र खड़े हैं। उनके नीचे करबद्ध मुद्रामें भक्त श्रावकश्राविका हैं । बगल में वृषभ लांछन है। . २२. पाश्वनाथ मन्दिर-कृष्णवर्ण, पद्मासन, ३ फुट ऊंची प्रतिमा। फाल्गुन कृष्णा १२ संवत् १९०७ को प्रतिष्ठित । यह ११ फणावलियुक्त है। २३. आदिनाथ मन्दिर-कुछ श्याम, पद्मासन, १ फुट १ इंच अवगाहनावाली प्रतिमा। संवत् १९०१ माघ सुदी ५ सोमवारको प्रतिष्ठित । जटाएं कन्धोंपर लहरा रही हैं। २४. मानस्तम्भ-भूरे देशी पाषाणका, ९ फुट ६ इंच ऊंचा यह गोलाकार स्तम्भ ६ फुट २ इंच x ६ फुट २ इंचके कमरेमें बीच अवस्थित है। इसके शीर्षपर तीन दिशाओंमें खड्गासन तीर्थंकर मतियाँ हैं और एक दिशामें पद्मासन। उनके ऊपर २-२ पंक्तियोंमें १२-१२ खडगासन मूर्तियां हैं जो प्रायः ३ इंचकी हैं। फर्शमें एक फुट नीचे तक स्तम्भका भाग खुला हुआ है। स्तम्भके इस भागमें चारों दिशाओंमें पद्मावती चक्रेश्वरी आदि चार शासन-देवियां उत्कीर्णं हैं। इसका जीर्णोद्धार साहू जैन ट्रस्टकी ओरसे हो चुका है। २५. चन्द्रप्रभ मन्दिर-श्वेतवर्ण, पद्मासन, ९ इंच अवगाहनावाली प्रतिमा। वि. सं. १८११ में प्रतिष्ठित । २६. नेमिनाथ मन्दिर-कृष्णवणं, पद्मासन, ११ इंच अवगाहनावाली प्रतिमा। वि. सं. १९३१ चैत सुदी ४ को प्रतिष्ठित हुई। २७. पार्श्वनाथ मन्दिर-श्वेतवर्ण, पद्मासन, १० इंच अवगाहनावाली प्रतिमा । सं. १५४८ में प्रतिष्ठित । मूर्तिपर फण नहीं हैं । सर्प लांछन है। २८. पाश्वनाथ मन्दिरके पास पर्वतपर जो गुफा है, उसके बायीं ओर इन्दौरकी सेठानी प्यार कुंवरबाईजीने संवत् १९९६ में एक कमरेमें ३ हाथ ऊँची और ४ हाथ चौड़ी देशी पाषाणकी वदीपर गुरुदत्त मुनिराजके चरण विराजमान कराये थे। वे अब वहाँसे उठाकर मूर्तियोंके आगे रख दिये गये हैं। इस कमरे में दलीपुर और गोलगंज ग्रामोंसे लायी हुई कुछ प्राचीन मूर्तियाँ रखो हैं। इन मूर्तियोंमें मन्दिर नं. २ को वह पाश्वनाथ मूर्ति भी है, जिसे किसी अज्ञ ग्वालने लाठोसे दायीं भुजा और कन्धेको खण्डित कर दिया था और मन्दिरमें इस मूर्तिके स्थानपर अन्य मूर्ति विराजमान कर दी थी। पार्श्वनाथकी यह मूर्ति कृष्णवणं, पद्मासन है और इसकी अवगाहना ३ फुट ६ इंच है। निर्वाण-गुफा ___ अन्तिम पार्श्वनाथ मन्दिरके नीचे एक प्राकृतिक गुफा है। वह विशेष लम्बी-चौड़ी नहीं है। उसकी गहराई जाननेका कोई साधन भी नहीं है। गुफाके बाह्य भागमें गुरुदत्तादि मुनियोंके
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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