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भारतके दिगम्बर जैन तीथ और प्रभुत्व हमें गुप्त-काल तक दिखाई पड़ता है। गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्तको लिच्छवि दौहित्र होनेका अभिमान था।
किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि शिशनाग वंशके हास-कालमें विदेह जनपद फिर स्वतन्त्र हो गया और पुनः वहाँ गणसंघ बना, किन्तु इस बार वैशाली और मिथिला अर्थात् लिच्छवि और वज्जी संघ पृथक् रहे । इसीलिए कौटिल्यने इन्हें अलग-अलग माना है। ह्वेन्त्सांगने भी बज्जीको वैशालीसे पृथक् माना है।
गुप्त वंशके पश्चात् इन दोनों संघोंका अस्तित्व इतिहासमें सदाके लिए लुप्त हो गया। किन्तु वज्जी नाम अबतक प्रचलित है। आज भी चम्पारन जिलेके पहाड़ी थारू लोग अपनेसे भिन्न तिरहुतके सभी निवासियोंको वजी तथा नेपाली लोग वजिमा कहते हैं। क्षेत्रको अवस्थिति
यह अत्यन्त दुखकी बात है कि आज मिथिला क्षेत्रका अस्तित्व भी लुप्त हो चुका है । कहते हैं, जनकपुर प्राचीन मिथिलाकी राजधानीका दुर्ग है। पुरनैलिया कोठीसे ५ मीलपर सिगराओ स्थान है। यहाँपर प्राचीन मिथिला नगरीके चिह्न अबतक मिलते हैं। अन्य प्राचीन स्मारक मोतीहारीसे ५ मील पूर्वमें नोनाचरमें, पिवरी रेलवे स्टेशनके पास सीताकुण्ड तथा वेवीदनपर तथा सोहरियाके पास बावनगढ़ीमें हैं।
यहाँ नन्दनगढ़में एक बड़ा टीला है। यहाँ एक चाँदीका सिक्का मिला था जो ईसासे १००० वर्ष पूर्वका माना जाता है। इन सब कारणोंसे-अवशेष और पुरातत्त्व सामग्रीको ध्यानमें रखते हुए हमें विश्वास होता है कि मिथिला तीर्थ यहीं था। मार्ग
जनकपुरके लिए निम्नलिखित मार्ग हैं
सीतामढ़ीसे 'जनकपुर-रोड' स्टेशन जाया जा सकता है । वहाँसे जनकपुर ३८ कि. मी. है। सीतामढ़ीसे या दरभंगासे नेपाल सरकार रेलवेके जयनगर स्टेशन तक चले जायें तो वहाँसे जनकपुर तक उक्त रेलवे द्वारा जा सकते हैं। जयनगरसे जनकपुर २९ कि. मी. है।
१. Gazett Champaran istrict, 1907 ।