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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ 'वज्जि संघ' रखा। कुछ कालके पश्चात् सम्भवतः ईसा पूर्व सातवीं-छठी शताब्दीमें वैशालीका लिच्छवि संघ और मिथिलाका वज्जी संघ दोनों मिल गये। यद्यपि वैशाली संघ वज्जी संघकी अपेक्षा विशाल एवं सदढ था किन्त सदभावनाके नाते वैशाली संघने दोनोंके सम्मिलित संघका नाम बज्जी संघ स्वीकार कर लिया और वहाँके गणराज चेटकको इस संयुक्त संघका गणराजा मान लिया। वज्जी संघने लिच्छवि गणकी महानता स्वीकार कर ली। फलतः विदेह देशकी राजधानी मिथिलासे उठकर वैशाली में आ गयी। दोनों संघोंके मिलनेसे नया वैशाली गण बडा शक्तिशाली हो गया। विदेह तो एक जनपद या प्रान्त था। वैशाली और मिथिला उस विदेहके अन्तर्गत थे। विदेहको तीरभक्ति भी कहा जाता था, जिसे आजकल तिरहत कहते हैं। विदेहके रहनेवालोंको भी विदेह कहा जाता था। सीताजीको इसीलिए वैदेही कहा जाता है क्योंकि वे विदेहवासिनी थीं। अजातशत्रुको वैदेही-पुत्र कहा गया है क्योंकि उसके पिता श्रेणिक बिम्बसारने लिच्छवि राजकुमारीसे विवाह किया था। उसका वह पुत्र था। "विदेहोंको ब्राह्मण ग्रन्थोंमें उच्च सभ्यतावाला बताया है। जिस देशमें ये लोग रहते थे, से भी विदेह कहते थे। ये लोग संहिताओंसे भी पहलेके हैं। क्योंकि यजर्वेद संहितामें विदेहकी गायोंका उल्लेख मिलता है जो कि प्राचीन भारतमें विशेष रूपसे विख्यात प्रतीत होती हैं।'' विदेहोंके धार्मिक विश्वास क्या थे, वे किस धर्मको मानते थे, यह जानना भी ऐतिहासिक दृष्टिसे उपयोगी होगा। स्मृतियोंमें विदेहोंको व्रात्य कहा गया है। "व्रात्य वे आर्य जातियाँ थीं जो मध्यदेशके पूरब या उत्तर-पश्चिम ( पंजाब ) में रहती थीं और जो मध्यदेशके कुलीन ब्राह्मणोंक्षत्रियोंके आचारका अनुसरण नहीं करती थीं। उनकी शिक्षा-दीक्षाकी भाषा प्राकृत थी। उनकी वेषभूषा उतनी परिष्कृत न थी। वे मध्यदेशके आर्योंवाले सब संस्कार नहीं करते थे तथा ब्राह्मणों के बजाय अर्हन्तोंको मानते और चैत्योंको पूजते थे।" "विदेह प्राचीन भारतको प्रसिद्ध व्रात्य जातिके थे। वे अर्हन्तोंको मानते थे। उनके पड़ोसी मल्ल लोग भी व्रात्य थे। उनका भी गणराज्य था। मल्ल जनपद वृजि जनपदके ठीक पच्छिम तथा कोशलके पुरबमें था। पावा और कुसावती या कुसीनारा ( आधुनिक कसिया ) उनके कस्बे थे।" इससे ज्ञात होता है कि विदेहवासी जैनधर्मके अनुयायी थे। तीर्थंकर मल्लिनाथ और नमिनाथके वहाँ चार कल्याणक हुए थे। उन्होंने वहीं धर्मचक्र प्रवर्तन किया था। पार्श्वनाथ और महावीरका अनेक बार वहाँ विहार हुआ था। इसलिए विदेहवासियोंके जीवन-आदर्श अर्हन्त भगवान् थे, उनके उपदेशोंके अनुकूल उनके आचार-विचार थे। विदेह जनपद वस्तुतः जैनधर्मका केन्द्र था। वैशाली और मिथिलाके दोनों संघोंका एकीकरण होने के बाद जो एक वज्जो संघ अथवा लिच्छवि गण बना, उसमें भी जैनधर्मका प्रचार जोरोंसे हुआ। बुद्धने भी अपने धर्मका प्रचार इसी क्षेत्रमें किया था। किन्तु इस संघका विनाश श्रेणिकके पुत्र अजातशत्रुने लगभग ई. पू. ४८० में किया। उसने इस राज्यको मगध राज्यमें सम्मिलित कर लिया। किन्तु लिच्छवियोंका प्रभाव १. Geography of early Budhism, p. 1, भारतीय इतिहासकी रूपरेखा, पृष्ठ ३१०-३१३ । २. बृहद् विष्णुपुराण-मिथिला खण्ड । ३. Tribes in Ancient India, p. 235। ४. भारतीय इतिहासकी रूपरेखा, पृ. ३१४ ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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