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बिहार-बंगाल-डड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ थे। उनका उपदेश सुनकर वह बहुत प्रभावित हुआ। वह चम्पानगरीमें वासुपूज्य भगवान्के पास पहुंचा और उनके चरणोंमें मुनि-दीक्षा ले ली। उसे द्वादशांग वाणीका पूर्ण ज्ञान हो गया। अब मुनि पद्मरथ भगवान्के गणधर बन गये। उन्हें अवधिज्ञान और मनःपर्यय ज्ञान हो गया और फिर केवलज्ञान भी। आयुके अन्तमें शेष अघातिया कर्मोंका नाश करके निर्वाण प्राप्त किया।
एक अन्य कथा इस प्रकार है
मिथिलामें नमि नामक राजा था। उसने मुनि-दीक्षा ले ली। किन्तु स्त्रियोंका प्रसंग पाकर वह तीन बार मुनि-पदसे भ्रष्ट हुआ। एक बार नरकी पुत्री कांचनमालाको देखकर, दूसरी बार कुलालपुत्री विश्वदेवीके रूपपर मोहित होकर और तीसरी बार राजसुता वसन्तसेनाके मोहमें फंसकर। इन तीन स्त्रियोंसे तीन पुत्र हुए, जिनके नाम दुर्मुख, कर्कण्ड और नग्नकि थे। किन्तु अन्तमें ऐसा भी अवसर आया, जब नमिके मनमें संसारसे सच्चा वैराग्य उत्पन्न हुआ और उसने अपने तीनों पुत्रोंके साथ मुनिव्रत धारण कर लिया। एक बार ये चारों मुनि विह
| विहार करते हुए एक गाँवमें पहुंचे। दिन अस्त हो रहा था। कुम्हारका आवाँ लगा हुआ था। उसमें मिट्टीके कच्चे बरतन लगे हए थे। चारों मनि उस आवाँके निकट ध्यान लगाकर खड़े हो गये। रातमें कुम्हार आया। उसने आवाँमें आग जलायी, जिससे मिट्टीके बरतन पक जायें। कुछ समयमें आग धू-धू करके जलने लगी। चारों मुनियोंके शरीर भी उस आगसे जलने लगे। उन्होंने विशुद्ध भावोंसे आत्माके विशुद्ध स्वभावमें रमण करते हुए शरीर और संसारके प्रति सम्पूर्ण मोहका नाश कर दिया और मोक्ष प्राप्त किया। इतिहास और परम्परा
मिथिलापुरीकी प्रसिद्धि भगवान् मल्लिनाथ और नमिनाथके कारण हुई थी। पश्चात् इसी नगरीमें राजा जनक हुए, जिनकी पुत्री सीता थीं। उनका विवाह रामचन्द्रजीके साथ हुआ था। भगवान राम और महासती सीता कोटि-कोटि जनोंकी श्रद्धाके केन्द्र हैं। जनक और सीताके उज्ज्वल चरित्र और देदीप्यमान व्यक्तित्वने मिथिलाको ख्यातिके शिखर तक पहुंचा दिया।
आजकल प्राचीन मिथिलाकी पहचानके लिए कोई चिह्न नहीं मिलता। किन्तु प्राचीन साहित्यसे उसके सम्बन्धमें बहुविध जानकारी प्राप्त होती है जिससे उसके इतिहासपर प्रकाश पड़ता है।
भगवज्जिनसेनाचार्यकृत आदिपुराण (पर्व १२, श्लोक १५२-१५६ ) में उन देशोंके नाम मिलते हैं, जिनकी रचना भगवान् ऋषभदेवकी आज्ञासे इन्द्रने की थी। उनमें 'विदेह' भी था। इसकी गणना मध्यदेशके आश्रित देशोंमें होती थी। भगवान् ऋषभदेवने दीक्षा लेनेसे पूर्व अपने सौ पुत्रोंको विभिन्न प्रदेशोंके राज्य दिये थे। उनमें एक पुत्रको विदेह देशका राज्य दिया था।
- इस देशपर इक्ष्वाकुवंशके राजाओंने सहस्राब्दियों तक राज्य किया। मल्लिनाथ और नमिनाथ भी इक्ष्वाकुवंशो थे। इसी वंशकी एक शाखामें जनक हुए। जनक एक व्यक्तिका नाम नहीं था, बल्कि यह तो एक पद था। इस वंशके सभी राजाओंको जनक कहा जाता था। हिन्दू पुराणोंसे ज्ञात होता है कि राजा निमि बड़ा अध्यात्मवादी था। जनक, विदेह और मिथिल उसीके नाम थे। उसने मिथिला नगरी बसायी। उसके वंशमें जो राजा हुए, वे सभी जनक कहलाते थे। निमिसे इक्कीसवीं पीढ़ीमें सीरध्वज हुए। उनका यह नाम इस कारण पड़ा क्योंकि उन्होंने सीर ( हल ) के ध्वज ( अग्रभाग ) से जमीन जोती थी। सीता उन्हींकी पुत्री थी। १. हरिषेण कथाकोश-कथा ५९। २. वही-कथा ९८ । ३. श्रीमद्भागवत, स्कन्ध ९, अध्याय १३ ।