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________________ ५२ भारतके दिगम्बर जैन तोथं अर्थात् नमिनाथ स्वामी मिथिलापुरीमें पिता विजयनरेन्द्र और माता वप्रिलासे आषाढ़ शुक्ला दशमी के दिन अश्विनी नक्षत्र में उत्पन्न हुए । ' आसाढ बहुल दसमी अवरण्हे अस्सिणीसु चेतवणे । मिणा पव्वज्जं पडिवज्जदि तदियखवणम्हि ॥ ४६६४ अर्थात् भगवान् नमिनाथने आषाढ़ कृष्णा दशमीके दिन अपराह्न कालमें अश्विनी नक्षत्रके रहते चैत्रवनमें तृतीय भक्त के साथ दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेने के पश्चात् वे केवल नौ मास ही छद्मस्थ अवस्थामें रहे । और फिर - चित्तस्स सुक्कतइए अस्सिणिरिक्खे दिणस्स पच्छिमए । चित्तवणे संजातं अनंतणाणं णमिजिणस्स ॥ ४६९८ अर्थात् नमिनाथ जिनेन्द्रको चैत्र शुक्ला तृतीयाको दिनके पश्चिम भागमें अश्विनी नक्षत्रके रहते चित्रवन में अनन्तज्ञान उत्पन्न हुआ । पौराणिक घटनाएँ जैन पुराण साहित्य और कथा-ग्रन्थोंमें मिथिलापुरी और उससे सम्बन्धित अनेक व्यक्तियों और घटनाओं का वर्णन मिलता है । जिससे ज्ञात होता है कि मिथिलापुरी एक प्रसिद्ध सांस्कृतिक नगरी थी । ये घटनाएँ इस नगरीका सही मूल्यांकन करनेमें हमें बड़ी सहायता देती हैं । अतः यहाँ इस नगरी में घटित होनेवाली अथवा इससे सम्बन्धित कुछ घटनाओंका संक्षेपमें उल्लेख करना उपयुक्त ! प्रतीत होता है । २ 'हरिवंशपुराण' में उल्लेख है कि जब बलि आदि चार मन्त्रियोंने राजा पद्मसे सात दिनका राज्य पाकर हस्तिनारपुर में पधारे हुए आचार्य अकम्पन और उनके सात सौ मुनियोंके संघ पर घोर अमानुषिक उपसर्गं किये, उस समय मुनि विष्णुकुमारके गुरु मिथिलामें ही विराजमान थे और उन्होंने श्रवण नक्षत्रको कम्पित देखकर दिव्यज्ञानसे जान लिया था कि मुनि संघ पर भयानक उपसर्ग हो रहा है । यह बात उनके मुखसे अकस्मात् ही निकल गयी । इस बातको निकट बैठे हुए क्षुल्लक पुष्पदन्तने सुन लिया । उन्होंने अपने गुरुसे विस्तार से पूछा । तब गुरुसे उक्त दुर्घटनाका समाचार जानकर और उनके आदेशानुसार वे धरणीभूषण पर्वतपर मुनि विष्णुकुमारके पास गये । वहाँ जाकर उन्होंने सारी घटना सुना दी । तब विष्णुकुमार अपनी विक्रिया ऋद्धिके बलसे हस्तिनापुर पहुँचे और वामन ब्राह्मणका रूप बनाकर बलिसे तीन पग धरती माँगी । बलिने तीन पग धरतीके दानका संकल्प किया। तब विशाल आकार बनाकर विष्णुकुमारने दो पगों में ही सुमेरु पर्वतसे मानुषोत्तर पर्यंत तककी पृथ्वीको नाप लिया। अभी एक पग लेना शेष था । आतंक और भयके मारे बलि आदि मन्त्री थर-थर काँपने लगे, वे पैरोंमें गिरकर बार-बार क्षमा माँगने लगे । और तब मुनियोंका वह उपसर्ग दूर हुआ । हरिषेणकृत 'कथाकोश' में भी मिथिलासे सम्बन्धित एक-दो घटनाओं का उल्लेख मिलता है। तदनुसार, यहाँका नरेश पद्मरथ एक बार सूर्याभनगर गया । वहाँ सुधर्मं गणधर विराजमान १. जिस नगरी में भगवान् मल्लिनाथ और नमिनाथका जन्म कल्याणक मनाया गया, उसी में 'गर्भकल्याणक' भी हुआ । 'तिलोयपण्णत्त' में पृथक से गर्भ कल्याणककी तिथियोंका उल्लेख नहीं किया है किन्तु अन्य ग्रन्थोंमें इसके पृथक भी उल्लेख मिलते हैं- जैसे उत्तरपुराण, पर्व ६६, श्लोक २२ तथा ६९।२५-२६ । २. हरिवंशपुराणं, सर्ग २० ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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