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________________ ४९ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ एक खेतमें एक झोपड़ी पड़ी हुई है। कहते हैं, यह वही स्थान है जहाँ बुद्धका निर्वाण होनेपर उनकी भस्म लाकर रखी गयी थी और उसके ऊपर स्तूप बनाया गया था। आजकल तो उस स्थानपर स्तूपके कोई चिह्न दिखाई नहीं देते। संग्रहालय एक विशाल सरोवरके तटपर अवस्थित है। यह सरोवर ही प्राचीन मंगल पुष्करिणी अथवा अभिषेक पुष्करिणी कहलाता है। यही वह पुष्करिणी है, जिसमें कोई पक्षी तक चोंच नहीं मार सकता था और जिसमें अवगाहन करनेके लिए तत्कालीन बड़े-बड़े सम्राट् उत्सुक रहते थे। किन्तु इसके द्वारोंपर सदा सशस्त्र पहरा रहता था। वामन पोखर संग्रहालयसे प्रायः एक मील दूर वामन पोखर ( तालाब ) है। इस सरोवरमें कुछ वर्षों पूर्व श्याम पाषाणकी पौने दो फुट ऊँची भगवान् महावीरकी एक अति मनोज्ञ प्रतिमा निकली थी। विश्वास किया जाता है कि यह प्रतिमा लगभग दो हजार वर्ष प्राचीन है। जब यह प्रतिमा निकली थी, उन दिनों जैन तीर्थके रूपमें वैशालीकी प्रसिद्धि नहीं हो पायी थी। अतः हिन्दुओंने इसे अपने मन्दिरमें विराजमान कर दिया। इस मूर्ति के अतिरिक्त अन्य कई हिन्दू मूर्तियाँ भी निकली थीं। वे भी उसी मन्दिरमें विराजमान कर दी गयीं। जब जैनोंको भगवान् महावीरकी प्रतिमाके सम्बन्धमें पता चला तो उन्होंने हिन्दुओंसे इसे माँगा। उन्होंने बड़े प्रेमके साथ इसे जैनोंको सौंप दिया। पहले हिन्दू जनता इसे वामन भगवान्के रूपमें पूजती थी। जब उसे यह पता चला कि यह तो महावीर भगवान की मूर्ति है, तब तो उसे और भी अधिक हर्ष हआ, उसके प्रति श्रद्धा भी बढ़ी। तीर्थक्षेत्र कमेटीने वामन पोखरके किनारे और हिन्दू मन्दिरके बिलकुल पीछे एक छोटासा मन्दिर बनवाकर यह प्रतिमा विराजमान कर दी। इस मन्दिरमें केवल गर्भगृह है जो ९४९ फुट है। इसमें एक दरकी वेदी है। उपरोक्त प्रतिमा ५ इंच ऊँचे पीठासनपर विराजमान है। पीठासनमें सामने अष्टदल पुष्प अंकित है और उसके दोनों ओर सिंह बने हुए हैं। मूर्तिके दोनों ओर ८ इंच आकारवाले चमरेन्द्र भक्तिभावसे खड़े हुए हैं। इन्द्रोंके गलेमें कण्ठहार, भुजबन्द, मेखला आदि रत्नाभरण हैं। भगवान्के सिरके ऊपर छत्रत्रयी तथा भव्य भामण्डल है। शीर्ष भागके दोनों किनारोंपर दुन्दुभि लिये हुए नभचारी देव दीख पड़ते हैं। मूर्तिपर लेख और श्रीवत्स नहीं हैं। मूलनायकके आगे ७ इंच अवगाहनावाली, वि. सं. २०१३ की प्रतिष्ठित, पीतलकी नायक महावीरकी मूर्ति विराजमान है। मन्दिरके ऊपर शिखर है तथा चारों ओर चबूतरा बना हुआ है। पर्वके दिनोंमें हिन्दू लोग इस पोखरमें स्नान करने आते हैं। वे उक्त मूर्तिके भी दर्शन अवश्य करते हैं। __इस मन्दिरके बगलमें एक मन्दरिया बनी हुई है, जिसमें पद्मावती देवीकी मूर्ति विराजमान है। - मन्दिरकी बायीं ओर सरोवरके तटपर गन्धकुटी बनायी गयी है, मार्बलके एक पक्के चबूतरेके ऊपर तीन कटनियाँ और ऊपर छत्री है। गन्धकुटीमें भगवान् महावीरके ८४ ३॥ इंच के, सफेद मार्बलके चरण-चिह्न विराजमान हैं। इनपर इस प्रकार लेख उत्कीर्ण है ___ "श्री वर्धमान स्वामीकी चरणपादुका कुण्डपुर (वैशाली) जन्म-स्थानमें वैशाली तीर्थकमेटीने प्रतिष्ठापित की २०१६ वी. २४८६।" हमारी विनम्र सम्मतिमें यह लेख अत्यन्त भ्रामक है। यह स्थान महावीर भगवान्का भाग २-७
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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