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________________ २४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ वैशाली संघ वैशालीमें महावीरसे कुछ पूर्वसे ही गणसंघ प्रणाली प्रचलित थी । सम्भवतः इस गणसत्ताक राज्यकी स्थापना ईसवी सन्से लगभग सात शताब्दी पूर्व में गंगाके तटपर हुई थी। इससे लगे हुए विदेह राज्यका अन्त जनकवंशी निमिके पुत्र 'कलारके समयमें हो चुका था। इसके बाद विदेह राज्य लिच्छवियोंके गणसंघमें मिल गया। इतिहासकार इस महत्त्वपूर्ण घटनाका अभी तक न तो कालनिर्धारण ही कर पाये हैं और न विस्तारसे ही इसके सम्बन्धमें प्रकाश डाल सके हैं। हमारी विनम्र सम्मतिमें जनकवंशके अन्तिम राजा कलारको प्रबुद्ध जनता ने उसके दुराचारके कारण जानसे मार डाला, तब जनता ने मिलकर यह निश्चय किया कि अब भविष्यमें विदेहमें राजतन्त्रको स्थापना नहीं की जायेगी, बल्कि जनताका अपना राज्य होगा, जिसका शासन जनताके लिए जनता द्वारा होगा। इस निश्चयके परिणामस्वरूप विदेहमें जनताने विदेह गणसंघकी स्थापना की। उस समय वैशालीमें लिच्छवि संघ भी मौजूद था। कुछ समय बाद दोनों गणसंघोंके राजाओंने परस्पर बैठकर सन्धि कर ली और विदेह गणराज्य विशाल वैशाली संघमें मिला दिया गया। इस संघका नया नाम 'वज्जीसंघ' निश्चित हुआ। इस गणसंघकी राजधानी वैशाली बनायी गयी। विदेहके गणराज चेटकको वज्जीसंघका गणराज या राजप्रमुख निर्वाचित किया गया। हमारी इस धारणाका आधार यह है कि चेटककी पुत्री त्रिशलाको ‘विदेह दिन्ना' कहा गया है। महावीरको भी इसी कारण कई स्थानों पर 'विदेहे, विदेहदिण्णे, विदेहजच्चे, विदेह सूमाले' आदि विशेषणोंसे स्मरण किया गया है। ' पारस्परिक सन्धिका रूप कुछ भी रहा हो, किन्तु दो गणराज्य परस्पर मिलकर एक महासंघ बन गया। यह घटना भी महावीर और बुद्धके उदयसे पूर्वकालकी है। __इस गणराज्यको सीमाएं इस प्रकार थीं-पूर्वमें वन्यप्रदेश, पश्चिममें कोशल देश और कुसीनारा-पावा, जो मल्लोंके गणराज्य थे। दक्षिणमें गंगा और गंगाके उस पार मगध साम्राज्य था। उत्तरमें हिमालयकी तलहटीका वन्यप्रदेश। बौद्ध ग्रन्थोंके आधारपर इस गणराज्यका विस्तार २३०० वर्गमीलमें था। सातवीं शताब्दीमें 'यवानच्चांग' नामका एक बौद्धयात्री भारत आया था। उसने लिखा है कि 'इस राज्यका क्षेत्रफल पाँच हजार ली है।' शासन-व्यवस्था वज्जोसंघमें ९ राजा मुख्य थे और उनके ऊपर एक गणपति या राजप्रमुख होता था। इस संघमें आठ कुलोंके नौ गण थे। गणपरिषझें सम्मिलित भोगवंशी, इक्ष्वाकुवंशीय, ज्ञातृवंशीय, कौरववंशीय, लिच्छविवंशीय, उग्रवंशीय और विदेह इन कुलोंका वर्णन जैनागमोंमें मिलता है। किन्तु आठ कुलोंमें इनके अतिरिक्त और कौन-सा कुल था, यह कुछ भी पता नहीं चलता है। सम्भवतः आठवाँ कुल राजकुलके नामसे प्रसिद्ध था। इस संघको लिच्छवि संघ भी कहा जाता था। इन अष्टकुलोंको वज्जियोंका अष्टकुल कहा जाता था। वास्तवमें ये सभी कुल लिच्छवि थे। इनमें ज्ञातृवंशी सर्वप्रमुख थे।। १. 'मज्झिम निकाय' का 'मखादेव सुत्त'। 'ललित विस्तर' में इस राजाका नाम 'सुमित्र' दिया है। २. Ancient Geography of India, by Cunningham (edited by S. N. Mazoomdar) p. 657-१ मील = ५.९२५ या ६ ली। १ योजन = ८ मील । ४. सूत्र कृताङ्ग २।१, आचाराङ्ग १।२ ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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