SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ वर्णन है जो उन्होंने राजगृहसे कुशीनाराके लिए की थी। उस यात्रा-विवरणके अनुसार महात्मा बद्ध पाटलिग्रामसे गंगा पार करके कोटिग्राम पहँचे। वहाँसे नादिका या नाटिका गये। वहाँसे वैशाली। प्रो. जैकोबी बौद्ध ग्रन्थोंके इस कोटिग्रामको ही कुण्डग्राम स्वीकार करते हैं। डॉ. होर्नेले का मत है कि महावीरका जन्म वैशालीके एक उपनगर कोल्लागमें हुआ था, जहाँ द्युतिपलाश चैत्य था। उनके मतसे कोल्लाग सन्निवेशमें नात या नाय क्षत्रियोंका निवास था। राहल सांकृत्यायन भगवान महावीरको ज्ञातवंशीय तथा वर्तमान जथरिया जातिको ज्ञातवंशके वंशज बताते हैं। उनका मत है कि ज्ञातृ शब्दका ही रूपान्तर होकर जथरिया बन गया है-ज्ञातृ ( ज्ञातर>जतर > जथर ) इका ( इया ) = जथरिया, जेथरिया। महावीरका गोत्र काश्यप था तथा जथरियोंका गोत्र भी काश्यप है। रत्ती परगना, जिसमें बसाढ़ (प्राचीन वैशाली)है, आजकल भी जयरियोंका केन्द्र है। महावीरके कालमें वज्जोदेशमें नादिक नामक एक ग्राम था जहाँ ज्ञातवंशी क्षत्रिय रहते थे। इस नादिकाका हो संस्कृत रूप ज्ञातका होता है। उसी नादिकासे रत्ती शब्द बन गया-रत्ती>लत्ती>नत्ती>नाती>नादि (पाली) 'दीघ निकाय'की सुमंगल विलासिनो टीकामें एक स्थानपर इस नाम भेदका स्पष्टीकरण किया गया है ___ 'नादिकाति एतं तलाकं निस्साय द्विण्णं चुल्लपितु महापितु पुत्तानं द्वे गामा। नादिकेति एकस्मिं ज्ञातिगामे।' ___इसमें बताया है कि त्रातिक ( ज्ञातिक ) और नादिक दोनों नाम एक ही स्थानके हैं। त्रातिगाम ( ज्ञातिगाम ) होनेसे त्राति नाम पड़ा और नादिक तड़ाग ( तालाब ) के निकट होनेसे नादिक कहलाया। आगम पॅन्थोंके अनुसार कुण्डपुरके दो भाग थे-दक्षिण कुण्डपुर सन्निवेश और उत्तर कुण्डपुर सन्निवेश । क्षत्रिय कुण्डग्राम उत्तरमें था जिसमें मुख्यतः ज्ञातृवंशी क्षत्रिय रहते थे और ब्राह्मण कुण्डग्राम दक्षिणमें था जिसमें मुख्यतः ब्राह्मण निवास करते थे। भगवती सूत्रके अनुसार ब्राह्मणकुण्डनगरके ईशानकोण ( उत्तर-पूर्व ) में बहुशाल चैत्य था। उस नगरमें ऋषभदत्त ब्राह्मण और उसकी देवानन्दा ब्राह्मणी रहते थे। वे दोनों श्रमणोपासक थे। एक बार भगवान् महावीर वहाँ पधारे और वे बहुशाल चैत्यमें ठहरे। देवानन्दा खूब सजधजकर दासियोंसे घिरी हुई भगवान्के दर्शनोंके लिए गयी । ब्राह्मण-दम्पतिने भगवान्से दीक्षा ले ली।। इस ब्राहणकुण्डनगरके पश्चिममें क्षत्रियकुण्ड नामका नगर था। वहाँ जमाली रहता था। उस समय क्षत्रियकुण्डनगरमें शृंगारक, त्रिक, चतुष्क और चत्वरमें बहुतसे मनुष्य कोलाहल कर रहे थे। वे क्षत्रियकुण्डग्राममें-से बाहर निकले और ब्राह्मणकुण्डग्राममें होकर बहुशाल चैत्यमें गये । जमालीने अपने महलपर बैठे हुए सोचा-आज क्षत्रियकुण्डग्राममें क्या इन्द्र महोत्सव, स्कन्द महोत्सव, मुकुन्द महोत्सव, नाग महोत्सव, यक्ष महोत्सव, भूत महोत्सव, कूप महोत्सव, सरोवर महोत्सव, नदी महोत्सव, द्रह महोत्सव, पर्वत महोत्सव, वृक्ष महोत्सव, चैत्य महोत्सव या स्तूप महोत्सव है जो ये उग्रकुल, भोगकुल, राजकुल, इक्ष्वाकुकुल, ज्ञातृकुल और कुरुवंशके क्षत्रिय, क्षत्रियपुत्र, भट, भटपुत्र आदि कहाँ जा रहे हैं ? जब पता लगा तो जमाली अश्वरथमें सवार होकर बहुशाल चैत्य १. Prof. Jacobi's Jain Sutras, Introduction in SBE XXII p. XI. । २. Dr. Hoernel, Upasagadasao, p. 4 and his Jainism and Buddhism.। ३. राहुल सांकृत्यायन कृत 'पुरातत्त्व निबन्धावली', पृ. १०८-१०९ । ४. आचारांग २।२४।४-२४-२८ । कल्पसूत्र २।२१-२६-२८-३०३२ । ५. भगवतीसूत्र ९।३३ । ६. औपपातिक सूत्र ५७।१-२, ५८।१, ५९।२, ६४।२;रायपसेणी सूत्र १००।१।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy