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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ . २१ इसी प्रकरणमें आचार्यने अकम्पनको नाथवंशका अधिपति बताया है। इन प्रमाणोंके प्रकाशमें यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि भगवान् महावीर नाथवंशीय थे। प्राकृत ग्रन्थोंमें नाथके लिए ‘णाह' प्रयुक्त होता आया है। ‘णाह' के स्थानपर श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें 'णाय' और बौद्ध साहित्यमें 'नात' या 'नाट' का प्रयोग होने लगा। जिससे नाथके स्थानपर बदलते-बदलते सिद्धार्थ और महावीरका वंश ज्ञातृवंशके नामसे प्रसिद्ध हो गया। सिद्धार्थ कुण्डपुरके राजा थे, इस विषयमें दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराएँ सहमत हैं। सभी स्थानोंपर उन्हें कुण्डपुरका राजा बताया है। 'राज्ञः कुण्डपुरेशस्य' 'कुण्डपुरैपुरवरिस्सर' 'सिद्धार्थोऽस्ति महीपतिः' 'सिद्धत्थे रोया' 'सिद्धत्थेणं रण्णा' 'सिद्धत्थस्स रॅण्णो' इत्यादि उल्लेखोंमें उन्हें राजा स्वीकार किया है। उनके महलका नाम नन्द्यावर्त था और वह सात खंण्डका था । ऐसे वैभवसम्पन्न परिवारमें महावीरका जन्म हुआ था। यह कुण्डपुर नगर वैशाली संघ या वज्जि संघमें स्थित था। वैशाली हिन्दू पुराणोंके अनुसार वैशालीको स्थापना इक्ष्वाकु और अलम्बुषाके पुत्र विशाल राजाने की थी। बौद्ध ग्रन्थोंमें इस नगरीके नामकरणका कारण यह बताया गया है कि जनसंख्या बढ़नेसे कई गाँवोंको सम्मिलित करके तीन बारमें इसे विशाल रूप दिया गया। इससे उसका नाम वैशाली पड़ा। ___ आजकल यह स्थान बसाढ़ नामक गाँवसे पहचाना जाता है। इसके आसपास आज भी बसाढ़के अतिरिक्त बनिया गाँव, कूमन छपरागाछी, वासुकुण्ड और कोल्हुआ आबाद हैं। समयके परिवर्तनके साथ यद्यपि प्राचीन नामोंमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन अवश्य हो गया है किन्तु इन नामोंसे प्राचीन नगरोंकी पहचान की जा सकती है, जैसे वैशाली, वाणिज्यग्राम, कोल्लाग सन्निवेश, कर्मारग्राम और कुण्डपुर। बौद्ध साहित्यके अनुसार वैशालीमें प्राचीन कालमें कुण्डपुर और वाणिज्यग्राम भी मिले हुए थे। दक्षिण-पूर्व में वैशाली थी, उत्तर-पूर्व में कुण्डपुर था और पश्चिममें वाणिज्यग्राम था। कुण्डपुरके आगे उत्तर-पूर्व में 'कोल्लाग' नामक एक सन्निवेश था । उसमें प्रायः ज्ञातृवंशीय क्षत्रिय रहते थे। इसी कोल्लाग सन्निवेशके पास ज्ञातृवंशीय क्षत्रियोंका द्युतिपलाश उद्यान और चैत्य' था। इसीलिए इसे 'नायषंडवणे' अथवा 'नायसंडे उज्जाणे' कहा गया है। कुण्डपुर सन्निवेशको स्थिति ___ कुण्डग्राम या कुण्डपुर वज्जीदेशके अन्तर्गत एक नगर था। यहां ज्ञातृवंशीय क्षत्रिय रहते थे। बौद्ध ग्रन्थ 'दीघ निकाय' के 'महापरिनिव्वाण सुत्त' में महात्मा बुद्धकी उस अन्तिम यात्राका १. आदिपुराण ४३।३३२ । २. उत्तरपुराण ७४।२५२ । ३. षट्खण्डागम भाग ९ (४१११४४) । ४. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित १०१३।४ । ५. कल्पसूत्र २।५० । ६. कल्पसूत्र ४।६८, ४।८६ । ७. कल्पसूत्र ४।७२ । ८. उत्तरपुराण ७४।२५३-२५४। ९. रामायण वाल्मीकि १।४।११-१२, वायुपुराण ८६.१६-२२, विष्णुपुराण (४।१।४८-४९) के अनुसार विशालके पिताका नाम इक्ष्वाकुवंशी तृणबिन्दु था। १०. मज्झिमनिकायअट्ठकथा महासिंहनाद सुत्त वण्णना। ११. विपाकसूत्र १। १२. कल्पसूत्र ११५, आचारांग सूत्र २।१५।२२ ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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