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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ अर्थात् इस जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें लक्ष्मीसे स्वर्गखण्डकी तुलना करनेवाला 'विदेह' नामसे प्रसिद्ध एक बड़ा विस्तृत देश है। उस देशका क्या वर्णन किया जाये, जहाँके सुखदायी क्षेत्रमें क्षत्रियोंके नायक स्वयं इक्ष्वाकुवंशी राजा स्वर्गसे च्युत हो उत्पन्न होते हैं । उस विदेह देशमें कुण्डपुर नामका एक ऐसा सुन्दर नगर है जो इन्द्रके नेत्रोंकी पंक्तिरूपी कमलिनियोंके समूहसे सुशोभित है तथा सुखरूपी जलका मानो कुण्ड ही है। 'उत्तरपुराण'के कर्ता आचार्य गुणभद्रने इस प्रसंगको इसी भांति लिखा है 'भरतेऽस्मिन् विदेहाख्ये विषये भवनाङ्गणे ॥७४४२५१ - राज्ञः कुण्डपुरेशस्य वसुधारापतत्पृथुः ॥७४।२५२ अर्थात् भरत क्षेत्रके विदेह नामक देश सम्बन्धी कुण्डपुर नगरके राजा सिद्धार्थके भवनके आँगनमें प्रतिदिन रत्नवर्षा हुई। ___ इन उल्लेखोंसे यह स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि भगवान्का जन्म उस कुण्डपुर नामक नगरमें हुआ था जो विदेह देशमें स्थित था। विदेह जनपद और उसकी सीमाएँ विदेह जनपदकी सीमा इस प्रकार थी गण्डकीतीरमारभ्य चम्पारण्यान्तकं शिवे। विदेहभूः समाख्याता तीरभुक्ताभिधो मनुः ॥ -शक्ति संगम तन्त्र, पटल ७ अर्थात् गण्डकी नदीसे लेकर चम्पारण्य तकका प्रदेश विदेह अथवा तीरभुक्त कहलाता है। ( तीरभुक्त तिरहुतको कहते हैं)। बृहद् विष्णु पुराणके मिथिलाखण्डमें विदेहकी पहचान और सीमाएँ बताते हुए कहा है "गङ्गा-हिमवतोमध्ये नदीपञ्चदशान्तरे । तैरभुक्तरिति ख्यातो देशः परमपावनः।। कौशिकी तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्य वै । योजनानि चतुर्विशत् व्यायामः परिकीर्तितः ॥ गङ्गाप्रवाहमारभ्य यावद्धमवतं वनम् । विस्तारः षोडशः प्रोक्तो देशस्य कुलनन्दनः" । अर्थात् गंगा और हिमालयके मध्यमें तीरभुक्त देश है, जिसमें पन्द्रह नदियाँ बहती हैं। पूर्व में कौशिकी ( आधुनिक कोसी ), पश्चिममें गण्डकी, उत्तरमें हिमालय और दक्षिणमें गंगानदी है । यह पूर्वसे पश्चिमकी ओर २४ योजन है और उत्तरसे दक्षिणकी ओर १६ योजन है। ____ इसी विदेह या तीरभुक्ति प्रदेशमें वैशाली, मिथिला आदि नगर थे। श्वेताम्बर साहित्यमें विदेह कुण्डपुर भगवान् महावीरको कहीं-कहीं 'विदेह' भी कहा गया है। इसका कारण, कुछ विद्वानोंकी रायमें, उनकी माताका कुल है। महावीरकी माता त्रिशला विदेह कुल की थीं। श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें इसके सम्बन्ध में अनेक स्थानोंपर उल्लेख आये हैं। कल्पसूत्र ५।१११ में कहा है
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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