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वैशाली-कुण्डग्राम और कुण्डलपुर
भगवान् महावीरको जन्म-भूमि
सम्पूर्ण. प्राचीन वाङ्मय इस बातमें एकमत है कि भगवान् महावीर विदेहमें स्थित कुण्डग्राममें उत्पन्न हुए थे। जिस ग्रन्थमें भी भगवान् महावीरके जन्म-स्थानका वर्णन आया है, उसमें कुण्डपुरको ही जन्म-स्थान माना है और उस कुण्डपुरकी स्थिति स्पष्ट करनेके लिए 'विदेह कूण्डपूर' अथवा 'विदेह जनपद स्थित कूण्डपूर' दिया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन कालमें कुण्डपुर या इससे मिलते-जुलते नामवाले नगर एकसे अधिक होंगे। अतः भ्रम-निवारण और कुण्डपुरकी सही स्थिति बतानेके लिए कुण्डपुरके साथ विदेह लगाना पड़ा। दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंके साहित्यमें इस विषयपर ऐकमत्य पाया जाता है। यहाँ दोनों ही सम्प्रदायोंके कुछ प्राचीन ग्रन्थोंके उद्धरण दिये जाते हैं। ये विषयको स्पष्ट करनेमें विशेष सहायक होंगेदिगम्बर साहित्यमें कुण्डपुर
आचार्य पूज्यपाद विरचित संस्कृत निर्वाण-भक्तिमें भगवान्की जन्म सम्बन्धी सभो आवश्यक बातोंपर प्रकाश डालते हुए कहा है
"सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे। देव्यां प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान्संप्रदयं विभुः ॥४॥ चैत्रसितपक्षफाल्गुनि शशांकयोगे दिने त्रयोदश्याम् । जज्ञे स्वोच्चस्थेषु ग्रहेषु सौम्येषु शुभलग्ने ।।५।। हस्ताश्रिते शशांके चैत्रज्योत्स्ने चतुर्दशीदिवसे।
पूर्वाल्ले रत्नघटैविबुधेन्द्राश्चक्रुरभिषेकम्" ॥६॥ अर्थात् सिद्धार्थ राजाके पुत्र ( महावीर ) को भारत देशके विदेह कुण्डपुरमें सुन्दर ( सोलह ) स्वप्न देखकर देवी प्रियकारिणी ( त्रिशला ) ने चैत्र शक्ला त्रयोदशीको फाल्गनि नक्षत्रमें अपने उच्च स्थानवाले सौम्यग्रह और शुभलग्नमें जन्म दिया और चतुर्दशीको पूर्वाह्नमें इन्द्रोंने रत्नघटोंसे भगवान्का अभिषेक किया।
'हरिवंश पुराण में कुण्डपुरकी स्थितिको कुछ अधिक विस्तारके साथ दिया है। वह इस प्रकार है
"अथ देशोऽस्ति विस्तारी जम्बूद्वीपस्य भारते। विदेह इति विख्यातः स्वर्गखण्डसमः श्रिया ।।२।१।। किं तत्र वर्ण्यते यत्र स्वयं क्षत्रियनायकाः । इक्ष्वाकवः सुखक्षेत्रे संभवन्ति दिवश्च्युताः ॥२४॥ तत्राखण्डलनेत्रालीपद्मिनीखण्डमण्डनम् । सुखाम्भःकुण्डमाभाति नाम्ना कुण्डपुरं पुरम्" ॥२५॥