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प्रामुख
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीको इस बातका बहत हर्ष है कि भारतके दिगम्बर जैन तीर्थका द्वितीय भाग कार्यक्रमके अनुसार भगवान् महावीर-जयन्तीके पुनीत अवसरपर प्रकाशित हो रहा है। इसके पहले इस ग्रन्थका प्रथम भाग भगवान् महावीरके २५००वें निर्वाण महोत्सव वर्षके शुभारम्भपर प्रकाशित हो चुका है । हमारी पीढ़ीका यह सौभाग्य है कि हम, जो भगवान्के निर्वाणके ढाई हजारवें वर्षकी परिसमाप्तिके महान् पर्वके साक्षी हैं, उसे मना रहे हैं और भगवान्के तीर्थंकरत्वका गुणगान करके धन्य हो रहे हैं। हमारी आस्थाको आधार देनेवाले, हमारे जीवनको कल्याणमय बनानेवाले, हमारी धार्मिक परम्पराकी अहिंसामूलक संस्कृतिकी ज्योतिको प्रकाशमान रखनेवाले, जन-जनका कल्याण करनेवाले हमारे तीर्थकर ही हैं। जन्म-मरणके भवसागरसे उबारकर अक्षय सुखके तीरपर ले जानेवाले तीर्थंकर प्रत्येक युगमें 'तीर्थ'का प्रवर्तन करते हैं अर्थात् मोक्षका मार्ग प्रशस्त करते हैं। तीर्थंकरों की इस महिमाको अपने हृदयमें बसाये रखने, और अपने श्रद्धानको अक्षुण्ण बनाये रखनेके लिए हमने उन सभी विशेष स्थानों को 'तीर्थ' कहा जहाँ-जहाँ तीर्थंकरोंके जन्मादि 'कल्याणक' हुए, जहाँ से केवली भगवान्, महान् आचार्य और साधु 'सिद्ध'. हुए, जहाँ के 'अतिशय' ने श्रद्धालुओंको अधिक श्रद्धायुक्त बनाया, उन्हें चमत्कारी प्रभावोंसे साक्षात्कार कराया। ऐसे पावन स्थानोंमें-से कुछ हैं जो 'ऐतिहासिक' कालके पूर्वसे ही पूजे जाते हैं और जिनका वर्णन पुराण-कथाओंकी परम्परासे पुष्ट हुआ है। अन्य तीर्थों के साथ इतिहासकी कोटिमें आनेवाले तथ्य जुड़ते चले गये हैं और मनुष्यको कलाने उन्हें अलंकृत किया है। स्थापत्य और मूर्तिकलाने एवं विविध शिल्पकारोंने इन स्थानोंके महत्त्वको बढ़ाया है। अनादि-अनन्त प्रकृतिका मनोरम रूप और वैभव तो प्रायः सभी तीर्थोपर विद्यमान है। - ऐसे सभी तीर्थस्थानोंकी वन्दनाका प्रबन्ध और तीर्थोंकी सुरक्षाका दायित्व समाजकी जो संस्था अखिल भारतीय स्तरपर वहन करती है, उसे 'गौरव' की अपेक्षा अपनी सीमाओं का ध्यान अधिक रहता है, और यही ऐसी संस्थाओं के लिए शुभ होता है, यह ज्ञान उन्हें सक्रिय रखता है।
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी अपनी सीमाओंको अच्छी तरह जानती है, किन्तु वह यह भी जानती है कि जो जैन समाज इन तीर्थों की वन्दना करके धन्य होती है, वह इन तीर्थों की रक्षाके लिए तन-मन-धनका योगदान देने में सहयोगी रही है, तभी कुछ सम्भव हो पाया है। - भगवान् महावीरके पच्चीस-सौर्वे निर्वाणका यह महोत्सव ऐसा अवसर है जब तीर्थोकी सुरक्षाका बहुत बड़ा और व्यापक कार्यक्रम जो कमेटीने बनाया है, और आगे बनाने के लिए तत्पर है, उसमें प्रत्येक भाईबहनको यथासामर्थ्य योगदान देनेको अन्तःप्रेरणा उत्पन्न होना स्वाभाविक है। यह प्रेरणा मूर्त रूप ले और यात्री भाई-बहनोंको तीर्थ-वन्दनाका पूरा सुफल, आनन्द और ज्ञान प्राप्त हो, तीर्थक्षेत्र कमेटीका इस ग्रन्थमालाके प्रकाशनमें यह दृष्टिकोण रहा है।
प्रकाशनकी इस परिकल्पनाको पग-पगपर साधनेका सर्वाधिक श्रेय श्री साह शान्तिप्रसादजीको है, जिनके सभापतित्व-कालमें इस ग्रन्थकी सामग्रीके संकलन और लेखनका कार्य प्रारम्भ हुआ और अबतक इसके दो भागोंका प्रकाशन उनके निर्देशन में सम्पन्न हुआ। आगेके तीनों भाग भी उनके निर्देशनमें तैयार हो रहे